उपराष्ट्रपति धनखड़ की टिप्पणी के बाद महिला आरक्षण विधेयक को लेकर चर्चाएं गर्म, क्‍या विशेष सत्र में होगा पेश...?

यह कानून 2010 में राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था, लेकिन 15वीं लोकसभा इस विधेयक को पारित नहीं कर सकी.

उपराष्ट्रपति धनखड़ की टिप्पणी के बाद  महिला आरक्षण विधेयक को लेकर चर्चाएं गर्म, क्‍या विशेष सत्र में होगा पेश...?

विधेयक को लोकसभा में दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता

खास बातें

  • महिलाओं का बढ़ा हुआ प्रतिनिधित्व विशिष्टता का मामला नहीं- के. कविता
  • विधेयक 2014 में भाजपा के चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा था
  • आरक्षण मिल जाए तो 2047 से पहले भारत विश्व शक्ति बन जाएगा- उपराष्ट्रपति
नई दिल्‍ली:

लोकसभा और विधानसभाओं में  महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाले विधेयक को लेकर चर्चाएं गर्म हैं. दरअसल, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा कि वे दिन दूर नहीं हैं, जब महिलाओं को देश की विधानसभाओं में उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा. इससे जुड़ा कानून 2010 में राज्यसभा में पारित किया गया था, लेकिन लोकसभा में मंजूरी न मिलने पर रद्द हो गया था. उपराष्ट्रपति की टिप्पणी से अब ये अटकलें तेज हो गई हैं कि महिला आरक्षण विधेयक 18-22 सितंबर तक संसद के विशेष सत्र के दौरान पेश किया जा सकता है. हालांकि, संसद सत्र का एजेंडा अभी स्पष्ट नहीं है.

के. कविता ने 47 राजनीतिक दलों के अध्यक्षों को लिखा ख़त

मंगलवार को तेलंगाना एमएलसी और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता ने भी संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले सभी 47 राजनीतिक दलों के अध्यक्षों को एक ख़त लिखा और उनसे राजनीतिक मतभेदों को दूर करने और आगामी विशेष सत्र में इस विधेयक को प्राथमिकता से पारित करने का आग्रह किया. मंगलवार को अपने पत्र में भारत राष्ट्र समिति की नेता के. कविता, जो पूर्व लोकसभा सांसद भी हैं, उन्‍होंने जोर देकर कहा कि महिलाओं का बढ़ा हुआ प्रतिनिधित्व विशिष्टता का मामला नहीं है, बल्कि अधिक न्यायसंगत और संतुलित राजनीतिक परिदृश्य बनाने का एक साधन है. उन्होंने सभी दलों से इस मामले की तात्कालिकता को पहचानने और महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन करने का आग्रह किया.

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महिला आरक्षण विधेयक का इतिहास

महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करने की मांग करने वाला विधेयक पहली बार 1996 में देवेगौड़ा सरकार में पेश किया गया था. यूपीए सरकार ने 2008 में इस कानून को फिर पेश किया, जिसे आधिकारिक तौर पर संविधान (एक सौ आठवां संशोधन) विधेयक के रूप में जाना जाता है. यह कानून 2010 में राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था, लेकिन 15वीं लोकसभा इस विधेयक को पारित नहीं कर सकी. समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियों ने "कोटे के भीतर कोटा" की मांग करते हुए मौजूदा स्वरूप में इस विधेयक का विरोध किया है.

जुलाई में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में केंद्र सरकार ने राज्यसभा को बताया था कि महिला आरक्षण विधेयक को संसद में लाने से पहले सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति के आधार पर "सावधानीपूर्वक विचार" की आवश्यकता है. लैंगिक न्याय, सरकार की एक महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता है.

कई राजनीतिक पार्टियां दे रहीं ये तर्क

राजनीतिक पार्टियों का तर्क है कि आरक्षण में दलित, पिछड़े, अति पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के लिए कोटा का प्रावधान होना चाहिए. राजद के एक नेता ने कहा था कि अगर इन वर्गों को कोटा प्रदान करने के लिए महिलाओं के आरक्षण को 50% तक बढ़ाने की आवश्यकता है, तो पार्टी को कोई समस्या नहीं है, लेकिन इसके बिना यह "अर्थहीन" है.

विधेयक को लोकसभा में दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता

संवैधानिक संशोधन होने के कारण इस विधेयक को लोकसभा में दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी. यह 2014 में भाजपा के चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा था और, सूत्रों ने कहा कि इसके पारित होने से महिलाओं के वोटों को मजबूत करने में मदद करके पार्टी को लाभ होने की उम्‍मीद है.

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...तो 2047 से पहले भारत विश्व शक्ति बन जाएगा

सोमवार को जयपुर के एक कॉलेज में "राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की भागीदारी" विषय पर एक कार्यक्रम में बोलते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा था कि वह दिन दूर नहीं जब महिलाओं को संविधान में संशोधन के माध्यम से संसद और विधानसभाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा. उन्होंने कहा कि अगर यह आरक्षण जल्द मिल जाए तो 2047 से पहले भारत विश्व शक्ति बन जाएगा. धनखड़ ने जोर देकर कहा कि महिलाओं के लिए बहुत कुछ नहीं है, क्योंकि वे प्रशासन, कॉर्पोरेट जगत और सेना सहित हर क्षेत्र में सफलता के नए मॉडल बना रही हैं.

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