रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के 24 फरवरी को एक साल पूरे हो रहे हैं. पिछले साल इसी दिन रूस की तरफ से ताबड़तोड़ मिसाइलें यूक्रेन पर बरसाई गईं और जंग का आगाज किया गया था. मिसाइल अटैक के चंद लम्हों में हजारों की संख्या में निर्दोष नागरिकों की जान चली गई. कई इमारतें तबाह हो गईं. इस हमले के बाद दुनिया ने मान लिया था कि यूक्रेन जल्द ही हार मान लेगा. खुद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी ऐसा दावा किया था, लेकिन यूक्रेन जंग के मैदान में टिका है और पूरे एक साल से टिका हुआ है.
एक साल पहले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के सामने यूक्रेन-रूस जंग के दौरान भारतीय छात्रों को बचाना और वहां से सुरक्षित वापस लाना एक बड़ी चुनौती थी. लेकिन इस चुनौती का सामना भी सरकार ने बखूबी किया. यूक्रेन में जंग के माहौल के बीच भारतीयों और भारतीय छात्रों को वहां से रेस्क्यू करने के लिए सरकार ने 'ऑपरेशन गंगा' चलाया था.
इसके तहत एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था. इसमें चार केंद्रीय मंत्री - हरदीप सिंह पुरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, किरेन रिजिजू और जनरल (आर) वीके सिंह शामिल थे, जिन्हें बचाव अभियान के समन्वय के लिए चार पड़ोसी देशों में भेजा गया था. ऑपरेशन गंगा के एक साल पूरे होने पर सरकार में एक सीनियर अधिकारी ने इसपर विस्तार से बात की.
समाचार एजेंसी ANI से बातचीत में अधिकारी ने कहा, 'रूस और यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले 15 फरवरी, 2022 को यूक्रेन की राजधानी कीव स्थित भारतीय दूतावास (Indian Embassy) ने वहां रह रहे भारतीय छात्रों को एक सलाह दी थी कि जितनी जल्दी हो सके, देश छोड़ दें, अपने घर चले जाएं. उस समय भारत को भी अंदाजा हो गया था कि रूस और यूक्रेन के बीच का तनाव कभी भी बढ़ सकता है.'
अधिकारी ने बताया, 'रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच सबसे बड़ी चिंता भारतीयों को वहां से सुरक्षित निकालने की थी. युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा था, जिसको देखते हुए भारत सरकार ने एक मिशन शुरू किया. भारत सरकार ने यूक्रेन में फंसे भारतीयों को एयरलिफ्ट करने के लिए 'ऑपरेशन गंगा' मिशन लॉन्च किया. बचाव अभियान का पूरा खर्च भारत सरकार ने उठाया. यूद्ध के कारण यूक्रेन का एयरस्पेस बंद हो गया. भारत सरकार ने भारतीय छात्रों के लिए पोलैंड, रोमानिया, हंगरी और स्लोवाकिया से फ्लाइट्स चलाई.'
अधिकारी ने आगे कहा, 'विदेश मंत्रालय ने 24x7 हेल्पलाइन भी लॉन्च की. 27 फरवरी को यूक्रेन से भारतीय छात्रों को लेकर पहली फ्लाइट दिल्ली पहुंची. भारतीय नागरिकों को उजहोरोड, स्लोवाकिया की सीमा पर और हंगरी के साथ सीमा के पास पश्चिम की ओर बढ़ने की सलाह दी गई. भारतीय छात्रों को रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट से एयरलिफ्ट किया गया था. इस मिशन के तहत केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, किरेन रिजिजू और जनरल वी के सिंह यूक्रेन के पड़ोसी देश पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया और रोमानिया गए थे.'
सीनियर अधिकारी ने एएनआई को बताया, "उस अवधि के दौरान प्रधानमंत्री मोदी अपने निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी से वापस आ गए थे और चर्चा हो रही थी, कई नामों पर गहन चर्चा के बाद आखिरकार इस ऑपरेशन के लिए 'गंगा' के नाम पर सहमति बनी." गंगा न केवल एक विशाल जल संसाधन है, बल्कि पूरे भारत में इसकी पूजा की जाती है.
एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री ने एएनआई को बताया, "नामकरण के पीछे विचार यह था कि जिस तरह गंगा को मां गंगा कहा जाता है, यह हमारी रक्षा करती है. उसी तरह यह बचाव अभियान अपने बच्चों की सुरक्षा और उन्हें वापस लाने के लिए था. इसलिए इसे ऑपरेशन गंगा नाम दिया गया था."
एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह एकमात्र मिशन नहीं है, बल्कि अफगानिस्तान में तालिबान के हमले के समय भारत द्वारा चलाए गए बचाव अभियान को ऑपरेशन देवी शक्ति कहा गया था. पीएम मोदी देवी दुर्गा के बड़े भक्त हैं, जैसे दुर्गा अच्छे को बुरे से बचाती हैं और सभी राक्षसों का नाश करती हैं. उसी तरह, यह देवी शक्ति या देवी की शक्ति थी जो अपने लोगों को हिंसा से बचाएगी. इस मिशन को लेकर ऐसा ही विचार था.
ऑपरेशन गंगा 26 फरवरी से 11 मार्च तक चलाया गया था. इसके तहत सैकड़ों छात्र यूक्रेन से रोमानिया, हंगरी, पोलैंड, मोल्दोवा और स्लोवाकिया जैसे पड़ोसी देशों के माध्यम से भारत लौटे थे. सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, संकट के समय 20000 से अधिक भारतीय यूक्रेन में थे, जिनमें से 18000 के करीब छात्र थे. बुखारेस्ट से पहली उड़ान ने 249 छात्रों को 27 फरवरी को दिल्ली लाया गया था.
6 मार्च तक 76 उड़ानों से लगभग 16000 भारतीयों को भारत भेजा जा चुका था. भारतीय वायु सेना, इंडिगो, एअर इंडिया और स्पाइस जेट जैसे निजी उड़ान ऑपरेटरों की उड़ानों के परिणामस्वरूप नागरिकों को वापस लाया गया. लगभग 600 छात्रों के अंतिम समूह को एक सुरक्षा गलियारे के माध्यम से सुमी से बाहर निकाला गया. समन्वय करने वाले अधिकारियों का कहना है कि यह बचाव अभियान के आखिरी चरणों में से एक था, लेकिन सबसे जोखिम भरा था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 मार्च को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी नेता वोलोडोमिर ज़ेलेंस्की के साथ मानवीय गलियारे के माध्यम से सुरक्षित निकास सुनिश्चित करने के लिए चर्चा की थी. एक वरिष्ठ अधिकारी ने एएनआई को बताया, "हर मिनट के विवरण में बहुत सारे विचार रखे गए हैं - जैसे लॉजिस्टिक्स, डिप्लोमैटिक चैनलिंग और यहां तक कि संदेश जो भेजा जा रहा था. प्रधानमंत्री हर मिनट के विवरण में अपनी भागीदारी रखते थे."
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