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एक कबीला, जो बना बारूद साम्राज्य...जानिए Ottoman Empire के फैलने और पतन की कहानी

कहानी उस ऑटोमन साम्राज्य की जो तोप और राइफलों के सहारे एशिया और यूरोप से लेकर अफ्रीका तक फैला था. आइए जानते हैं कि इस साम्राज्य का पतन कैस और कब हुआ.

एक कबीला, जो बना बारूद साम्राज्य...जानिए Ottoman Empire के फैलने और पतन की कहानी
नई दिल्ली:

इन दिनों तुर्की की काफी चर्चा है. एक ऐसा देश, जहां करीब 600 साल तक इस्लामिक झंडा लहराया, जिसकी गूंज ना सिर्फ यूरोप, बल्कि एशिया और अफ्रीका तक रही. लेकिन वो आज एक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र बन चुका है, जिसका संविधान धर्म को शासन से अलग रखता है. हालांकि विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि यह एक ऐसा हाइब्रिड मॉडल है, जहां धर्मनिरपेक्षता और इस्लामी मूल्य सह-अस्तित्व में हैं.

ऑटोमन साम्राज्य से तुर्की गणराज्य बनने की यह पूरी कहानी दिलचस्प है.

13वीं सदी में एक कबीला था काय (Kay Tribe) जिसका शासक था, एर्तुगरुल गाज़ी (Ertuğrul Ghazi). एक जनजाति कबीला, जिसने आगे चलकर ऑटोमन साम्राज्य की नींव रखी. एर्तुगरुल ने मंगोल आक्रमण से बचने के लिए  पश्चिमी मध्य एशिया से अनातोलिया (आज के तुर्की का मध्य भाग) जाकर बस गया. उसके बेटे उस्मान प्रथम ने ही 1299 में ऑटोमन साम्राज्य की नींव रखी. इसे 'बारूद साम्राज्य' भी कहा जाता था, क्योंकि यह साम्राज्य तोप और राइफलों के सहारे एक बड़ी सैन्य शक्ति बन गया था. 

करीब 150 साल बाद ऑटोमन साम्राज्य के शासक को खलीफा कहा जाने लगा. हालांकि ऑटोमन साम्राज्य के संविधान में खलीफा शब्द को 1870 के आसपास औपचारिक तौर पर शामिल किया गया. धीरे-धीरे बढ़ रहे ऑटोमन साम्राज्य के लिए अहम मोड़ 1453 में आया, जब खलीफा सुल्तान महमद द्वितीय ने कॉन्स्टेंटिनोपल पर कब्जा कर उसे इस्तांबुल बना दिया था.

साल 1453 में सुल्तान महमद द्वितीय ने कॉन्स्टेंटिनोपल पर कब्जा कर उसे इस्तांबुल बना दिया था.

साल 1453 में सुल्तान महमद द्वितीय ने कॉन्स्टेंटिनोपल पर कब्जा कर उसे इस्तांबुल बना दिया था.

तुर्की का स्वर्ण काल 

तुर्की के इतिहास पर लिखी किताब 'Osman's Dream: The History of the Ottoman Empire' में कैरोलिन फिंकेल 16वीं सदी और 17वीं सदी के प्रारंभ को ऑटोमन साम्राज्य का गोल्डन युग मानते हैं. इस दौर में ऑटोमन अपनी सैन्य ताकतों के बढ़ाने के साथ ही सांस्कृतिक और आर्थिक शक्ति के तौर पर भी उभरा. सुलेमान के नेतृत्व में ऑटोमन साम्राज्य ने यूरोप, एशिया और अफ्रीका में विस्तार किया. मस्जिद, मदरसे और इस्लामी कला इस युग की पहचान बनने लगी थी.

हालांकि इन सबके बीच महत्वपूर्ण घटना थी- 1683 में वियना की दूसरी घेराबंदी (Second Siege of Vienna). जब ऑटोमन पर विस्तारवाद का भूत सवार था.ऑटोमन शासक ने यूरोप के कोने-कोने में पैर पसारने की कोशिश की, साम्राज्य का यह अंतिम प्रयास था, क्योंकि इसके बाद ऑटोमन की बुरी तरह हार हुई.

बीमार पिता, 6 साल का बेटा बना राजा 

दरअसल, मानसिक रूप से बीमार पिता की जगह केवल छह साल की उम्र में गद्दी पर बैठे सुल्तान महमद चतुर्थ को उनकी दादी और मां के गुट चला रहे थे. इसी दौरान जुलाई 1683 में करीब 1.50 लाख ऑटोमन सैनिकों ने वियना को घेर लिया. इस शहर की सुरक्षा का जिम्मा रोमन साम्राज्य की 15 हजार सैनिकों की छोटी सेना और उसके निवासियों के पास था. ऑटोमन की बड़ी सेना के सामने उसका टिक पाना जाहिर तौर पर मुश्किल था. इस घेराबंदी के खिलाफ सितंबर 1683 में पोलिश, जर्मन और ऑस्ट्रियाई गठबंधन सेना ने मोर्चा संभाल लिया. पोलैंड के राजा जॉन-3 सोबिएस्की के नेतृत्व में गठबंधन सेनाओं ने विएना के लिए युद्ध लड़ा. 12 सितंबर 1683 को कोहलनबर्ग की लड़ाई (Battle of Kahlenberg) में गठबंधन सेना ने ऑटोमन को मात दी. इसके लिए कारा मुस्तफा पाशा को जिम्मेदार ठहराया गया. बाद में उन्हें सजा देकर मार दिया गया. हालांकि यह युद्ध अगले 16 साल तक जारी रहा.युद्ध के बीच में 1986 के आसपास रूसी सेना भी पोलैंड के साथ आ गई थी.

आज की तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब इरदुगान.

आज की तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब इरदुगान.

ऑटोमन सम्राज्य का बिखराव

26 जनवरी 1699 को ऑटोमन साम्राज्य और Holy League (ऑस्ट्रिया, पोलैंड, वेनिस, रूस) के बीच कार्लोवित्ज़ संधि (Treaty of Karlowitz) के बाद युद्ध खत्म हुआ. समझौते के अनुसार ऑटोमन को हंगरी, ट्रांसिल्वेनिया, क्रोएशिया और स्लावोनिया के बड़े हिस्से ऑस्ट्रिया को सौंपने पड़े. पोलैंड और रूस को भी क्षेत्रीय लाभ हुआ.इस युद्ध के बाद पोलैंड के राजा ने अपनी पत्नी को पत्र लिखा, जिसमें उसने इस ऐतिहासिक जीत को साझा किया, "हमारे पास अनसुने खजाने हैं ...टेंट, भेड़, मवेशी और बहुत सारे ऊंट...यह एक ऐसी जीत है जिसे पहले कभी किसी ने नहीं देखा था,दुश्मन अब पूरी तरह से बर्बाद हो गया है,उनके लिए सब कुछ खो गया है.उन्हें अपनी जान बचाने के लिए भागना होगा. जनरल स्टारहेमबर्ग (विएना के गवर्नर) ने मुझे गले लगाया और चूमा और मुझे अपना उद्धारकर्ता कहा."

पहले विश्व युद्ध के बाद बदला इतिहास

डेढ़ दशक तक चली लंबी लड़ाई के बाद ऑटोमन का हौंसला डगमगा रहा था. आंतरिक तौर पर फैलते भ्रष्टाचार ने इस राज्य की जड़ें खोखली कर दी थीं. दूसरी ओर, औद्योगिकरण के दौर में ब्रिटिश और फ्रांस जैसी उभरती यूरोपीय शक्तियां भी इसके लिए चुनौती पेश कर रही थीं. यूरोप में उभरा राष्ट्रवादी आंदोलन भी ऑटोमन साम्राज्य को कमजोर करता चला गया. जिसका असर प्रथम विश्व युद्ध में दिखा. युद्ध के अंत के बाद साम्राज्य खत्म हो गया. यह दौर ऑटोमन के लिए सुधारवादी नीतियों का था, जिसमें धर्मनिरपेक्ष कानूनों को बढ़ावा दिया गया. बावजूद इसके इस्लामी पहचान बनी रही.

प्रथम विश्व युद्ध में हार के बाद खलीफा का शासन खत्म हो गया. तीन मार्च, 1924 को अंतिम ऑटोमन खलीफा, अब्दुल मेसिड द्वितीय को हटा दिया गया. मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने तुर्की गणराज्य की स्थापना की और धर्मनिरपेक्षता को संविधान का आधार बनाया. खलीफा प्रथा (1924) खत्म होने के साथ ही शरिया कानून भी खत्म कर दिया गया.

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