यदि राजनीतिक रिवायत संघर्ष का आधार बनती है, तो राजनीतिक दलों की ओर से उम्मीदवारों का चुनना, वोटिंग को लेकर व्यवहार का अध्ययन करना और एक कैंपेन तैयार करना भी चुनावी जीत के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है.
कर्नाटक में शनिवार को 136 सीटों के साथ विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाली कांग्रेस अगर इस बार यह कमाल कर सकी तो इसके पीछे 41 वर्षीय लो प्रोफाइल रणनीतिकार और कांग्रेस के सदस्य सुनील कानुगोलू की प्रमुख भूमिका रही. उन्होंने कैंपेन की रूपरेखा तैयार की और अंत तक उस पर से पार्टी की नजर नहीं हटने दी.
उनको एक ऐसे विचारसंपन्न व्यक्ति के रूप में पहचना जाता है जो बड़ा सोचते हैं. कानुगोलू मूल रूप से तेलुगु हैं और उनकी जड़ें कर्नाटक में हैं. वे चेन्नई में पले-बढ़े हैं और अब बेंगलुरु में रहते हैं. वे एक व्यापारिक परिवार से हैं. उनके एक करीबी दोस्त ने बताया कि, उन्होंने पूर्व में बीजेपी, डीएमके और एआईएडीएमके के लिए काम किया है. राहुल गांधी और सोनिया गांधी के साथ लंबी बातचीत करने के बाद कानुगोलू पिछले साल कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि वे चुनौती लेना चाहते थे और एक ऐसी पार्टी के साथ काम करना चाहते थे जो जो अपने मूल्यों पर विश्वास करती है.
उन्हें अच्छी तरह से जानने वालों के अनुसार, कानुगोलू की सबसे बड़ी ताकत पार्टी के अहम नेताओं के साथ व्यक्तिगत समीकरण बनाने की काबलियत और अपनी टीम के कैंपेन को उनके रोजमर्रा के काम के साथ जोड़ने की उनकी क्षमता है.
एक जानकार के अनुसार, "वे शांत लेकिन दृढ़ व्यक्तित्व वाले हैं. वे लो प्रोफाइल, वाहवाही से दूर रहने वाले हैं और हमेशा फील्ड सर्वे के डेटा के साथ होते हैं. उन्हें दबाया नहीं जा सकता है और नेता अपने रोजमर्रा के राजनीतिक कामकाज में उन्हें बहुत अधिक महत्व देते हैं."
कर्नाटक में कानुगोलू ने कैंपेन चलाने वाले अन्य प्रमुख नेताओं, मुख्य रूप से पार्टी के महासचिव रणदीप सुरजेवाला, सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के अलावा केसी वेणुगोपाल के साथ कामकाज के लिए मजबूत संबंध बनाने के लिए कड़ी मेहनत की. इन नेताओं ने उन्हें मौजूदा जमीनी स्थितियां जानने में मदद की. यह कोई अपवाद नहीं था, लगभग हर गैर-बीजेपी कैंपेन में उन्होंने इसी तरह काम किया है. वे नेताओं के साथ व्यक्तिगत समीकरण शेयर करते रहे हैं, चाहे वह डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन हों या उससे पहले एआईएडीएमके प्रमुख ई पलानीस्वामी हों. तेलंगाना में भी वे टीआरएस के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ आक्रामक राजनीतिक हमले के लिए काम कर रहे हैं. उनके बारे में कहा जाता है कि वे रेवंत रेड्डी जैसे नेताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध रखते हैं.
पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा, "इससे उनकी टीम के लिए सिस्टम में रच-बस जाना और नेताओं के साथ काम करना आसान हो जाता है. इससे कैंपेन अधिक मानव-केंद्रित हो जाता है. जनमत सर्वेक्षणों के कुछ मामलों में हमने पार्टी नेताओं को, रणनीतिकारों और उनकी टीम के सदस्यों से परेशान होते देखा है, लेकिन सुनील के साथ ऐसा नहीं होता है."
नरेटिव को सही और पार्टी के पक्ष में करना कानुगोलू की सबसे बड़ी ताकत है. उनकी टीम मार्केट रिसर्च की पृष्ठभूमि के साथ बहुत सारे फील्ड सर्वे, मॉर्डन डे एनालिटिक्स और जमीनी स्थितियों की सटीक जानकारी प्राप्त करने पर भरोसा करती है.
कर्नाटक में कानुगोलू बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के खिलाफ "पे सीएम कैंपेन" के साथ उस समय आए जब उनके विरोधियों ने कहा कि "भ्रष्टाचार दक्षिण भारत में एक बड़ा मुद्दा नहीं है."
कांग्रेस के कैंपेन में काम करने वाले एक व्यक्ति ने कहा, "इस अभियान ने क्या किया, इसने हमारी पार्टी को सरकार पर हमला करने और लोगों से जुड़ने के लिए बहुत गोला-बारूद दे दिया. इसने हमारे कैंपेन को एक नौटंकी की तरह लेती रही भाजपा पर हमारा पलड़ा भारी कर दिया."
कानुगोलू ने कांग्रेस में शामिल होने के ठीक एक महीने बाद, चुनाव से साल भर पहले ही अपनी तैयारी शुरू कर दी थी. समय कम होने के कारण उन्होंने गुजरात में कांग्रेस के कैंपेन से खुद को दूर कर लिया था. हिमाचल प्रदेश में उनकी टीम ने उम्मीदवार तय करने के लिए फील्ड सर्वे का काम किया था.
उक्त व्यक्ति ने कहा कि, "सुनील बड़े मामलों को अच्छे से संभालते हैं और कभी विवरणों को नहीं भूलते. जब ब्यौरा की बात आती है तो वे अपनी टीम को जिम्मा सौंपते हैं और उस पर भरोसा करते हैं. उन्हें राजनीतिक प्रचार के दैनिक स्नैपशॉट पर काम करना पसंद है. लेकिन नरेटिव सेटिंग उनके लिए एक रोजमर्रा का काम है, जिसमें वे अनथक लगे रहते हैं. उनका दृढ़ विश्वास है कि राजनीति में यदि आप अपना नरेटिव सामने नहीं रखेंगे, तो कोई और करेगा. इसलिए इसे बनाए रखना होगा."
जब नरेटिव की बात आती है तो इसको लेकर कानुगोलू के पास अपनी ताकत होती है. यह वही हैं जो 2017 में जल्लीकट्टू विरोध के दौरान तमिल गौरव और द्रविड़ मॉडल जैसे पहलुओं को एक साथ लाए थे. इससे डीएमके को आक्रामक भाजपा का मुकाबला करने में मदद मिली थी.
फील्ड सर्वे
पे सीएम के साथ शुरू हुआ कानुगोलू द्वारा डिजाइन किया गया कैंपेन कीवी मेले हूवा (कान पर फूल) के साथ जारी रहा. इसमें बताया गया कि कैसे लोगों को धोखा दिया गया था. कांग्रेस की पांच गारंटी को कानूनगोलू की टीम ने बेहतर बनाया. जोर देकर कहा गया कि प्रत्याशी चयन के सबसे जरूरी काम के साथ हर घर में गारंटी कार्ड की हार्ड कॉपी लोगों के लिए याद रखना और इस पर साथ देना आसान है. यह पहली बार है जब कांग्रेस ने केवल स्थानीय नेताओं की व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के बजाय व्यापक फील्ड सर्वे पर भरोसा किया. पोलिंग डेटा के साइंटिफिक एनालिसिस पर जोर देने के लिए जाने जाने वाले कानुगोलू के साथ काम करने वालों के अनुसार, वे कॉल-सेंटर के जरिए डेटा एकत्र करने के बजाय व्यापक फील्ड सर्वे, स्टेटिस्टिक्स, एनालिसिस और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके रुझानों का पता करने पर जोर देते हैं.
पार्टी के कैंपेन पर काम करने वाले एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि, जब कर्नाटक में कांग्रेस पीएम की रैलियों को लेकर थोड़ी आशंकित थी और मुश्किल महसूस कर रही थी तब भी कानुगोलू ने बारीकियों पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया.
उन्होंने कहा, "यदि आप सिर्फ यह कहें कि "हवा बदल रही है" तो वे इसे स्वीकार नहीं करते हैं. वे यह जानने की दिशा में काम करेंगे कि क्या प्रभाव मतदान के पैटर्न को बदलने के लिए काफी अच्छा है, और फिर उस दिशा में काम करेंगे."
आगामी चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों में भी कानुगोलू के महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है. लेकिन उनके पास तत्काल की जिम्मेदारी तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्यों में पार्टी की कैंपेन को संभालना होगा.
बैकग्राउंड
कानुगोलू पहले कई चुनाव कैंपेनों का हिस्सा रहे हैं, खास तौर पर भाजपा के लिए. यह संयोग ही है कि 2018 में उन्होंने कर्नाटक में भाजपा के लिए चुनाव कैंपेन का काम संभाला था और पार्टी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनने में कामयाब रही थी. कानुगोलू ने राजनीतिक दलों के साथ काम शुरू करने से पहले ग्लोबल मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म मैकिन्से (McKinsey) के साथ काम किया है. उन्होंने एसोसिएशन ऑफ बिलियन माइंड्स (ABM) का नेतृत्व किया. यह एसोसिएशन भाजपा को चुनाव संबंधी विभिन्न कामों पर सलाह देता है. कोनुगोलू ने चार साल पहले इसे छोड़कर अपना काम शुरू किया था. वे पेरियार से गहराई से प्रभावित माने जाते हैं. पेरियार को देश में जाति आंदोलन, जातिगत भेदभाव का मुकाबला करने के लिए सामाजिक संगठनों के उपयोग और तमिल सिनेमा के क्षेत्र में पहचाना जाता है.
साल 2014 में नरेंद्र मोदी के कैंपेन का हिस्सा होने के अलावा कानुगोलू 2017 में विशेष रूप से यूपी और गुजरात में बीजेपी के कई कैंपेनों का हिस्सा रहे थे. वे एमके स्टालिन के साथ भी जुड़े थे और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने उनके 'नामक्कू नाम' (हम खुद के लिए हैं) कैंपेन की देखरेख की थी. तब पार्टी ने कुल 39 सीटों में से 38 सीटें जीती थीं. बाद में कानुगोलू ने डीएमके के खिलाफ एआईएडीएमके (AIADMK) के साथ भी काम किया, जिसने 2021 के तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में 75 सीटें जीतकर नेतृत्व किया.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं