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Explainer : 95% लोग गरीबी रेखा से ऊपर तो मुफ्त अनाज पाने वाले 81 करोड़ लोग कौन?

नीति आयोग के CEO के मुताबिक, अगर गरीबी रेखा को लें और इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) पर रख कर देखें, तो इस सबसे निचले वर्ग का औसत उपभोग पहले जितना ही बना हुआ है.

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नई दिल्ली:

भारत सरकार (Modi Government) का दावा है कि देश में 95 फीसदी गरीबी (Poverty) घट गई है. महज़ 5 फीसदी लोग ही अब गरीबी रेखा (Poverty Line) के नीचे रह गए हैं. नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी NSSO के एनालिसिस के आधार पर नीति आयोग के CEO बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने किया है. सर्वे अगस्त 2022 से जुलाई 2023 के दौरान 2,61,746 परिवारों के बीच किया गया था. दूसरी ओर देश के 81 करोड़ 35 लाख लोगों को भारत सरकार मुफ़्त अनाज दे रही है. केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्‍याण योजना  (PM Gramin Kalyan Anna Yojana) के तहत 11 लाख 80 हजार करोड़ रुपये की लागत से अगले 5 साल के लिए इस स्कीम को जनवरी में ही आगे बढ़ा दिया. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि अगर 95 फीसदी लोग गरीबी रेखा से बाहर आ गए हैं, तो सरकार की ओर से मुफ्त अनाज पाने वाले 81 करोड़ लोग कौन हैं?

गरीबी रेखा को लेकर NSSO ने अपने सर्वे के लिए लोगों को 20 अलग-अलग वर्गों में रखा था. नीति आयोग के CEO के मुताबिक, सभी वर्गों में औसत प्रति व्यक्ति और मासिक उपभोग खर्च ग्रामीण इलाकों में 3,773 रुपये रहा. शहरी इलाकों में ये 6,459 रुपये रहा. अगर सबसे निचले 5 फीसदी वर्ग में देखें, तो औसत प्रति व्यक्ति और मासिक खर्च ग्रामीण इलाकों में 1,373 रुपये रहा. इसी वर्ग के शहरी इलाकों में ये खर्च 2,001 रुपये रहा.

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नीति आयोग के CEO के मुताबिक, अगर गरीबी रेखा को लें और इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) पर रख कर देखें, तो इस सबसे निचले वर्ग का औसत उपभोग पहले जितना ही बना हुआ है. इसका मतलब है कि देश में गरीबी जीरो से 5 फीसदी के इस वर्ग में ही बची है. हालांकि, इसे उन्होंने अपना आकलन बताया और आगे का आकलन अर्थशास्त्रियों पर छोड़ दिया.

10 साल में दोगुना हुआ प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू उपभोग ख़र्च
इस बीच 2022-23 के लिए NSSO के सर्वे के कुछ और आंकड़ों पर निगाह डाल लेते हैं, जो भारतीय समाज में आए कई अहम बदलावों की ओर इशारा कर रहे हैं. सबसे पहली बात प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू उपभोग ख़र्च की करते हैं. ये बीते 10 साल में दोगुना हो चुका है. यानी ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग अब अपने ऊपर और ज्यादा खर्च करने लगे हैं.

2011-12 में ग्रामीण इलाकों में ये खर्च 1430 रुपये महीने प्रति व्यक्ति था, जो 2022-23 में 3860 रुपये प्रति व्यक्ति हो चुका है. यानी 10 सालों में अपने ऊपर खर्च करने की क्षमता दुगने से भी ज्यादा हो चुकी है. जबकि 2011-12 में शहरी इलाकों में प्रति व्यक्ति ये खर्च 2660 रुपये था, जो अब 6521 रुपये महीने हो चुका है.

कहां बढ़ा ये खर्च? 
NSSO के आंकड़ों में एक दिलचस्प बात ये सामने आई है कि गांव और शहर दोनों जगह अब खाने-पीने के सामान पर खर्च का अनुपात घटा है. यानी पहले लोग अपनी कमाई का जितना खाने-पीने पर खर्च करते थे, अब अनुपात में उससे कम कर रहे हैं. गांवों में खानपान पर अब प्रति महीने प्रति व्यक्ति औसतन 1750 रुपये महीना खर्च होता है, जो प्रति व्यक्ति कुल खर्च का 46% है. जबकि शहरों में लोग 3,950 रुपये महीना खानपान पर खर्च करते हैं, जो कुल खर्च का 39% है.

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बदल रहे खानपान के तरीके
गांवों में लोग खानपान से अलग अन्य सामान पर 2023 रुपये खर्च करते हैं, जो 54% है. शहरों में खानपान से अलग अन्य सामान पर 3939 रुपये खर्च होते हैं, जो 61% है. इस सर्वे के मुताबिक खानपान के तरीके बदल रहे हैं. लोग अब अनाज पर कम और फल, दूध, अंडों पर ज़्यादा ख़र्च कर रहे हैं. (सभी आंकड़े प्रति व्यक्ति, प्रति महीना औसत खर्च के हैं) 

मासिक प्रति व्यक्ति खपत के हिसाब से देखें तो गांवों में अनाज पर खर्च 185 रुपये है. यानी 4.91% जबकि शहरों में 235 रुपये यानी 3.6%. दूध और दुग्ध उत्पादों पर गांवों में 314 रुपये खर्च हो रहा है यानी 8.33%. शहरों में 466 रुपये यानी 7.22% . गांवों में अंडा-मछली और मटन पर 185 रुपये ख़र्च किया जा रहा है, जो 4.91% है. जबकि शहरों में 231 रुपये है यानी 3.57%. दिलचस्प ये है कि सबसे ज़्यादा ख़र्च लोग शीतल पेय, स्नैक्स, और प्रोसेस्ड खाने पर कर रहे हैं.

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मुफ़्त अनाज योजना भी हो सकता है कारण
अनाज पर खर्च घटने की वजह 81 करोड़ से ज्यादा लोगों के लिए केंद्र सरकार की मुफ्त अनाज योजना का असर भी हो सकता है. गौर करने वाली बात ये है कि गांवों में लोग लोग पान-तंबाकू पर ज़्यादा खर्च कर रहे हैं पढ़ाई-लिखाई पर कम खर्च कर रहे हैं.

गांवों में पान-तंबाकू पर मासिक प्रति व्यक्ति खपत पर ख़र्च 143 रुपये (3.79%) है, जबकि शहरों में ये खर्च 157 रुपये (2.43%) है. गांवों में पढ़ाई-लिखाई पर 125 रुपये खर्च किए जाते हैं, जबकि शहरों में 374 रुपये. दो महत्वपूर्ण बातें इस सर्वे से निकल कर आ रही हैं. एक तो ये कि सबसे कम खर्च हमारे खेतिहर परिवार कर पा रहे हैं.

कृषि में लगे लोग मासिक प्रति व्यक्ति खपत पर 3702 रुपये खर्च कर रहे हैं. गैरकृषि क्षेत्रों में लगे लोग इससे ज़्यादा 4074 रुपये खर्च कर रहे हैं. यानी कृषि क्षेत्र में लगे लोगों की कमाई गैर-कृषि में लगे लोगों से कम है. कृषि क्षेत्र के नियमित कामगार प्रति माह प्रति व्यक्ति 3597 रुपये खर्च कर रहे हैं. गैर-कृषि क्षेत्र में नियमित कामगार 4533 रुपये ख़र्च कर रहे हैं.

इस सर्वे से एक अंदाज़ा राज्यों की हालत का भी मिलता है. साफ दिखता है कि हिंदी पट्टी के राज्य अब तक पिछड़े हुए हैं. वहां मासिक प्रति व्यक्ति खपत पर खर्त का अनुपात सबसे कम है. 

राज्यों की हालत का भी मिलता है नतीजा
सर्वे के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में सबसे कम 2466 रुपये घरेलू खर्च है. झारखंड में ये खर्च 2763 रुपये है. ओडिशा प्रति माह 2950 रुपये खर्च करता है. मध्य प्रदेश 3113 रुपये महीने खर्च करता है, जबकि यूपी में ये खर्च 3191 रुपये है. पश्चिम बंगाल में 3239 रुपये खर्च किए जाते हैं. बिहार में 3384 रुपये का खर्च है. असम में 3432 रुपये खर्च होते हैं. गुजरात में मासिक प्रति व्यक्ति खपत पर खर्च 3798 रुपये रहा.

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किन राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में होता है सबसे ज्यादा खर्च?
-सिक्किम के लोग महीने में औसत प्रति व्यक्ति खर्च 7731 रुपये करते हैं.
-चंडीगढ़ में ये खर्च 7467 का है.
-गोवा में ये खर्च 7367 रुपये का है.
-अंडमान-निकोबार में 7332 रुपये है.
-दिल्ली में 6576 रुपये खर्च किया जाता है.

बता दें कि प्रधानमंत्री गरीब कल्‍याण योजना को 2020 में शुरू किया गया था. अब इसे 2029 तक बढ़ा दिया गया है. प्रधानमंत्री गरीब कल्‍याण योजना के तहत देश की करीब 81.35 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दिया जाता है. इस योजना में परिवार के हर सदस्‍य को 5 किलो गेहूं या चावल हर महीने मिलता है. साथ ही एक किलोग्राम साबुत चना दिया जाता है.

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