सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली:
कानपुर में 1984 में हुए सिख दंगे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक नई एसआईटी का गठन किया है. सुप्रीम कोर्ट ने 186 बंद मामलों की जांच के लिए नई एसआईटी का गठन किया. सुपरवाइजरी पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि 239 मामलों में से 186 को बिना जांच बंद किया गया है. नई एसआईटी में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज, वर्तमान आईपीएस और रिटायर्ड आईपीएस होंगे. 6 दिसंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सुपरवाइजरी पैनल ने एसआईटी द्वारा बंद किए गए 241 केसों की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी. कोर्ट अब इस रिपोर्ट पर तय करेगा कि ये मामले फिर से खोले जाएं या नहीं. कोर्ट ने कहा कि अगर रिपोर्ट में कुछ होगा तो कार्रवाई के आदेश देंगे.
एक सितंबर को 1984 की सिख विरोधी हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी द्वारा छंटनी के बाद बंद किए गए केसों की छानबीन के लिए सुप्रीम कोर्ट के दो रिटायर जजों के सुपरवाइजरी पैनल का गठन किया था. पैनल में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस जेएम पांचाल और जस्टिस केएस राधाकृष्णन हैं. कोर्ट ने कहा था कि जज पांच सितंबर से काम शुरू करेंगे और तीन महीने में रिपोर्ट देंगे.पैनल को रिकॉर्ड देखने के बाद यह तय करना था कि केस बंद करने का फैसला सही है या नहीं और इन केसों की दोबारा जांच शुरू की जाए या नहीं. पैनल शुरुआत में ही बंद किए गए 199 केसों के अलावा 42 अन्य मामलों की फाइलों को देखेगा.
यह भी पढ़ें: '84 का सिख-विरोधी दंगा : कानपुर में हुई मौतों की जांच एसआईटी से कराने की मांग, सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि कानपुर में 1984 के सिख विरोधी हिंसा की जांच एसआईटी से कराई जाए या नहीं, ये उत्तर प्रदेश सरकार तय करे. केंद्र सरकार हलफनामे में कहा कि कि कानून व्यस्था राज्य का विषय है, ऐसे में एसआईटी जांच का फैसला राज्य सरकार ले. केंद्र ने यह भी कहा कि अगर वो एसआईटी जांच को लेकर कोई निर्णय लेती है, तो वो राज्य सरकार के अधिकार में दखल देना होगा. दरअसल, कानपुर में 1984 के सिख विरोधी हिंसा के पीड़ितों की न्याय की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. पिछली सुनवाई में एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की हामी भरते हुए उसे सिख हिंसा के मुख्य मामले के साथ लगाने का कोर्ट ने आदेश दिया था. साथ ही केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था.
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याचिका में कहा गया है कि कानपुर हिंसा में 127 लोगों की मौत हुई थी. ज्यादातर मामले सबूत के अभाव में बंद किये जा चुके हैं. इसमें मुआवजे की भी बात की गई है. दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके और अखिल भारतीय दंगा पीड़ित राहत कमेटी के अध्यक्ष जत्थेदार कुलदीप सिंह भोगल ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है. उन्होंने कहा कि दिल्ली राजधानी है इसलिए उसका मामला सबकी निगाह में आ गया, लेकिन कानपुर में भी 1984 में हुए सिख विरोधी हिंसा में 127 लोगों की मौत हुई थी. पूरे उत्तर प्रदेश में इन दंगों की कुल 2800 एफआईआर दर्ज हुई थी, लेकिन ज्यादातर मामले सबूतों के अभाव में बंद कर दिये गये. उन्होंने कहा कि पीड़ित 33 वर्ष से न्याय के लिए इधर उधर भटक रहे हैं.
यह भी पढ़ें: 1984 सिख विरोधी दंगा मामला : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 199 केसों की फाइल पेश की
याचिका में कहा गया है कि ये मामला पुलिस और सरकारी तंत्र के अमानवीय क्रूर और लापरवाह रवैये से जुड़ा है. यहां तक कि जिस क्षेत्र में लोग मारे गए वहां के संबंधित पुलिस थाने कहते हैं कि यहां कोई मौत नहीं हुई, न ही दंगा हुआ या संपत्ति लूटी गई, जबकि आरटीआई में इन थानों से निल रिपोर्ट की बात कही गई है.गोविन्द नगर और नौबस्ता पुलिस थाने के क्षेत्र में जहां सबसे ज्यादा मौतें हुईं, वहां के थानों से कोई रिपोर्ट नहीं उपलब्ध कराई गई. याचिका में विशेषतौर पर बजरिया थाने में दर्ज छह एफआईआर और नजीराबाद थाने मे दर्ज एक एफआईआर और दंगे के बारे में अन्य थानों में दर्ज बाकी मामलों की एसआईटी से जांच कराने की मांग की गई है.
VIDEO: दिल्ली : सिखों ने 1984 दंगों पर कांग्रेस मुख्यालय के सामने प्रदर्शन किया
यह भी कहा गया है कि कोर्ट इन मामलों की दोबारा जांच करने का आदेश दे, जिनमें पुलिस पहले ही अंतिम क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर चुकी है. इसके साथ ही अन्य थानों में दर्ज बाकी मामलों की भी दोबारा जांच कराई जाए.
एक सितंबर को 1984 की सिख विरोधी हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी द्वारा छंटनी के बाद बंद किए गए केसों की छानबीन के लिए सुप्रीम कोर्ट के दो रिटायर जजों के सुपरवाइजरी पैनल का गठन किया था. पैनल में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस जेएम पांचाल और जस्टिस केएस राधाकृष्णन हैं. कोर्ट ने कहा था कि जज पांच सितंबर से काम शुरू करेंगे और तीन महीने में रिपोर्ट देंगे.पैनल को रिकॉर्ड देखने के बाद यह तय करना था कि केस बंद करने का फैसला सही है या नहीं और इन केसों की दोबारा जांच शुरू की जाए या नहीं. पैनल शुरुआत में ही बंद किए गए 199 केसों के अलावा 42 अन्य मामलों की फाइलों को देखेगा.
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इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि कानपुर में 1984 के सिख विरोधी हिंसा की जांच एसआईटी से कराई जाए या नहीं, ये उत्तर प्रदेश सरकार तय करे. केंद्र सरकार हलफनामे में कहा कि कि कानून व्यस्था राज्य का विषय है, ऐसे में एसआईटी जांच का फैसला राज्य सरकार ले. केंद्र ने यह भी कहा कि अगर वो एसआईटी जांच को लेकर कोई निर्णय लेती है, तो वो राज्य सरकार के अधिकार में दखल देना होगा. दरअसल, कानपुर में 1984 के सिख विरोधी हिंसा के पीड़ितों की न्याय की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. पिछली सुनवाई में एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की हामी भरते हुए उसे सिख हिंसा के मुख्य मामले के साथ लगाने का कोर्ट ने आदेश दिया था. साथ ही केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था.
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याचिका में कहा गया है कि कानपुर हिंसा में 127 लोगों की मौत हुई थी. ज्यादातर मामले सबूत के अभाव में बंद किये जा चुके हैं. इसमें मुआवजे की भी बात की गई है. दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके और अखिल भारतीय दंगा पीड़ित राहत कमेटी के अध्यक्ष जत्थेदार कुलदीप सिंह भोगल ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है. उन्होंने कहा कि दिल्ली राजधानी है इसलिए उसका मामला सबकी निगाह में आ गया, लेकिन कानपुर में भी 1984 में हुए सिख विरोधी हिंसा में 127 लोगों की मौत हुई थी. पूरे उत्तर प्रदेश में इन दंगों की कुल 2800 एफआईआर दर्ज हुई थी, लेकिन ज्यादातर मामले सबूतों के अभाव में बंद कर दिये गये. उन्होंने कहा कि पीड़ित 33 वर्ष से न्याय के लिए इधर उधर भटक रहे हैं.
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याचिका में कहा गया है कि ये मामला पुलिस और सरकारी तंत्र के अमानवीय क्रूर और लापरवाह रवैये से जुड़ा है. यहां तक कि जिस क्षेत्र में लोग मारे गए वहां के संबंधित पुलिस थाने कहते हैं कि यहां कोई मौत नहीं हुई, न ही दंगा हुआ या संपत्ति लूटी गई, जबकि आरटीआई में इन थानों से निल रिपोर्ट की बात कही गई है.गोविन्द नगर और नौबस्ता पुलिस थाने के क्षेत्र में जहां सबसे ज्यादा मौतें हुईं, वहां के थानों से कोई रिपोर्ट नहीं उपलब्ध कराई गई. याचिका में विशेषतौर पर बजरिया थाने में दर्ज छह एफआईआर और नजीराबाद थाने मे दर्ज एक एफआईआर और दंगे के बारे में अन्य थानों में दर्ज बाकी मामलों की एसआईटी से जांच कराने की मांग की गई है.
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यह भी कहा गया है कि कोर्ट इन मामलों की दोबारा जांच करने का आदेश दे, जिनमें पुलिस पहले ही अंतिम क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर चुकी है. इसके साथ ही अन्य थानों में दर्ज बाकी मामलों की भी दोबारा जांच कराई जाए.
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