वकील आरएस चीमा और उनकी बेटी तरन्नुम चीमा.
नई दिल्ली:
1984 सिख विरोधी दंगों में दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई है. पीड़ितों के वकील एचएस फुल्का एक जाने-माने वकील हैं. वहीं सीबीआई के वकीलों की टीम भी थी, जिसमें सभी सदस्य सिख समुदाय से ताल्लुक रखने वाले थे. इस टीम में एक पिता और बेटी दोनों ही शामिल थे.
आरएस चीमा विशेष अभियोजक थे, जिनसे सीबीआई ने साल 2010 में केस लेने के लिए संपर्क किया था.
वकील चीमा ने इसके अलावा सीबीआई के लिए कई और मामलों में केस लड़ा है. घोयला घोटाले में हाई प्रोफाइल आईएएस अधिकारी और पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता को सजा दिलाने वालों में भी वे शामिल थे. 1984 सिख विरोधी दंगों का केस लड़ने के लिए वे दिल्ली-चंडीगढ़ के बीच सफर करते थे. हालही में कानून की डिग्री हासिल करने वाली उनकी बेटी तरन्नुम चीमा भी इस केस में अपने पिता की मदद कर रही थीं.
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चंडीगढ़ से चीमा ने फोन पर एनडीटीवी से बात करते हुए कहा, 'मैं वास्तव में काम के लिए अपनी बेटी को श्रेय दूंगा. केस के लिए वह दिल्ली शिफ्ट हो गई थीं, उन्होंने सभी गवाहों को हैंडल किया.'
जगदीश कौर और निरप्रीत कौर की गवाही के आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला दिया. दोनों ने ही दंगों में अपने परिवार के लोगों को खोया है. चंडीगढ़ से दिल्ली शिफ्ट होने के पीछे तरन्नुम का मकसद था कि कहीं क्रॉस क्वेश्चन के दौरान कहीं दोनों महिलाएं डर ना जाएं.
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केस में गवाही देने के लिए निरप्रित कौर ने अमृतसर में अपना घर छोड़कर दिल्ली में पंजाब भवन को दो महीने के लिए अपना ठिकाना बना लिया था.
तरन्नुम चीमा ने कहा, 'उन्होंने उन्हें(गवाहों) लगातार कम आंकने की कोशिश की. उन्होंने उन्हें झूठा बताया और उन्होंने निरप्रीत को तो आतंकी तक बोला था. क्योंकि निरप्रीत बतौर छात्र नेता जेल गई थीं.' साथ ही उन्होंने बताया कि उनके खिलाफ जितने भी केस थे बाद में बंद कर दिए गए थे.
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35 साल की तरन्नुम चीमा का सफर यहीं खत्म नहीं हुआ. वह सज्जन कुमार के खिलाफ दूसरा सुल्तानपुरी से जुड़ा एक और केस लड़ रही हैं.
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