
- केंद्र ने मॉनसून सत्र के अंतिम दिन 3 महत्वपूर्ण बिल संसद में पेश किए थे, जिनमें 130वां संशोधन भी शामिल है.
- बिल के अनुसार मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की कुर्सी तब जा सकती है जब वे लगातार तीस दिन जेल में रहे.
- विपक्ष ने इस बिल का संसद में विरोध किया है. संयुक्त संसदीय समिति का बहिष्कार करने की आशंका जताई जा रही है.
जेल जाने के चलते मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की कुर्सी जाने के प्रावधान वाले संविधान संशोधन बिल पर विपक्ष जेपीसी यानी ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी का बहिष्कार कर सकता है. संसद सत्र के दौरान विपक्ष सदन के भीतर और बाहर इस बिल का विरोध कर चुका है. केंद्र सरकार ने मॉनसून सत्र के अंतिम दिन तीन संविधान संशोधन बिल पेश किए, जिसमें 130वां संविधान संशोधन बिल, जम्मू कश्मीर पुनर्गठन संशोधन बिल और केंद्र शासित प्रदेश संशोधन बिल शामिल है. इस बिल के मुताबिक, किसी भी मौजूदा मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की कुर्सी जा सकती है, यदि वो लगातार 30 दिनों तक हिरासत या जेल में रहे, मामला ऐसा हो कि उसमें 5 या उससे अधिक की सजा का प्रावधान हो.
इस बिल के लोकसभा में पेश होते ही हंगामा हो गया और इस बिल को सेलेक्ट समिति को भेजने का निर्णय लिया गया. ये तय हुआ कि इस बिल की जांच के लिए जेपीसी यानि संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जाएगा. बिल को जेपीसी के पास भेजा जाना है, जो बिल का अध्ययन कर अपनी सिफारिश सरकार को देगी. यह भी तय हुआ कि जेपीसी की सिफारिश संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम हफ्ते में पेश की जाएगी. आशंका है कि विपक्ष बिल का विरोध जारी रखेगा और जेपीसी का भी बहिष्कार कर सकता है.
बता दें कि पिछले दिनों वक्फ के मामलों को लेकर भी एक जेपीसी बनाई गई थी, जिसके अध्यक्ष जगदंबिका पाल थे और उन्होंने अपनी रिपोर्ट सरकार को दे दी है. अभी मौजूदा समय में 'एक देश एक चुनाव' को लेकर बनाई गई जेपीसी की बैठकें लगातार चल रही हैं. वो भी अपनी सिफारिश सरकार को अगले सत्र में सौंपने वाले हैं.
31 सदस्यीय जेपीसी के गठन में मुश्किल
130 वें संविधान संशोधन बिल पर जेपीसी का गठन होना है, जिसमें 31 सदस्य होंगे 21 सदस्य लोकसभा के और 10 राज्यसभा से. इस बिल के पेश होने पर लोकसभा में खूब हंगामा हुआ था, नारेबाजी हुई थी. यहां तक कि सदन के अंदर कागज भी फाड़कर कर फेंके गए थे. और अब बड़ी खबर ये आ रही है कि तृणमूल कांग्रेस अपना कोई भी सदस्य संयुक्त संसदीय समिति में नहीं भेजेगी. टीएमसी ने बिल के पेश होते वक्त लोकसभा में खूब हंगामा किया था.
- दरअसल जेपीसी में सदस्यों की संख्या, दलों की संख्या के आधार पर तय होती है. सदस्य को मनोनीत करने का अधिकार पार्टी को होता है. तृणमूल कांग्रेस को लगता है कि एसआईआर के बाद अब ये बिल भी उनको निशाने पर रखने के लिए लाया जा रहा है.
- ये भी खबर आ रही है कि तृणमूल के बाद समाजवादी पार्टी भी इस बिल के लिए बनाई गई जेपीसी में अपने सदस्यों को शायद मनोनीत ना करे. और यदि ऐसा होता है तो इंडिया गठबंधन के बाकी दल भी इस पर विचार करने के लिए मजबूर होंगे कि वो जेपीसी में शामिल हों या ना हों.
- मॉनसून सत्र के दौरान एसआईआर के मुद्दे पर जो विपक्षी एकता बनी थी, वो उपराष्ट्रपति चुनाव में भी देखने को मिली है और बिहार में जो राहुल और तेजस्वी की यात्रा चल रही है उसमें भी. बिहार की यात्रा में अखिलेश से लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन तक के आने की बात है और 1 सितंबर की रैली में तो पूरा विपक्ष शामिल होगा.
पीछे हटे विपक्षी दल तो भी मुश्किल
जहां तक जेपीसी में शामिल होने की बात है, एक विचार ये भी है कि यदि विपक्ष की तरफ से कोई पार्टी इसमें शामिल नहीं होती है तो सरकार को एनडीए के दलों के और सांसदों को इसमें शामिल करने का बहाना मिल जाएगा. हालांकि यदि दो पार्टी तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी या इंडिया गठबंधन इसमें शामिल नहीं होता है तो ये विपक्ष का ऐतिहासिक कदम माना जाएगा.
विपक्ष के कुछ सांसदों का ये भी कहना है कि ये बिल चूंकि संविधान संशोधन विधेयक है और इसलिए इसे पास कराने के लिए दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत चाहिए, जो सरकार के पास नहीं है. ऐसे में जेपीसी का बहिष्कार कर पूरे इंडिया गठबंधन को अपनी एकता का परिचय कराना चाहिए जिससे आने वाले दिनों में सरकार दबाव में रहे.
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