जीका वायरस के बारे में जानिए सबकुछ
नई दिल्ली:
Zika Virus: जयपुर में 22 लोगों में जीका वायरस का संक्रमण पाया गया है. इस वायरस की चपेट में आने वाला बिहार का एक स्टूडेंट भी है, जो जयपुर में पढ़ाई करता है. यही स्टूडेंट एग्ज़ाम देने के लिए बिहार गया था. इसी वजह से बिहार सरकार ने भी अपने सभी 38 जिलों में इस जीका वायरस के लक्षणों से पीड़ित लोगों पर खास निगरानी रखने को कहा है. वहीं, भारत के जयपुर के अलावा यह वायरस अभी तक 86 देशों में भी फैल चुका है. जयपुर से पहले जीका वायरस फैलने की खबरें अहमदाबाद से आईं थी. लेकिन फिलहाल जयपुर के लोग कड़ी निगरानी में हैं और स्वास्थ्य मंत्रालय भी इस वायरस को लेकर सतर्क हो चुका है. अब समय है कि आप भी इस जीका वायरस को लेकर जानकारी रखें, कि आखिर ये है क्या और किस वजह से फैल रहा है. साथ ही यहां जानिए कि जीका वायरस के लक्षण और इलाज क्या हैं.
जयपुर में 22 लोगों में जीका वायरस का संक्रमण, PMO ने स्वास्थ्य मंत्रालय से मांगी रिपोर्ट
जीका वायरस कैसे फैलता है?
यह वायरस डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया की ही तरह मच्छरों से फैलता है. यह एक प्रकार का एडीज मच्छर ही है, जो दिन में सक्रिय रहते हैं. अगर यह मच्छर किसी संक्रमित व्यक्ति को काट लेता है, जिसके खून में वायरस मौजूद है, तो यह किसी अन्य व्यक्ति को काटकर वायरस फैला सकता है. मच्छरों के अलावा असुरक्षित शारीरिक संबंध और संक्रमित खून से भी जीका बुखार या वायरस फैलता है.
जीका वायरस के लक्षण?
जीका वायरस से संक्रमित कई लोग खुद को बीमार महसूस नहीं करते. लेकिन इसके आम लक्षण डेंगू बुखार की ही तरह होते हैं. जैसे थकान, बुखार, लाल आंखे, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द और शरीर पर लाल चकत्ते.
यह वायरस इतना खतरनाक है कि अगर किसी गर्भवती महिला को हो जाए तो गर्भ में पल रहे बच्चे को भी यह बुखार हो सकता है. जिस वजह से बच्चे के सिर का विकास रूक सकता है और वर्टिकली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन भी फैल सकता है. वर्टिकली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन में स्किन रैशेज़ या दाग, पीलिया, लिवर से जुड़ी बीमारियां, अंधापन, दिमागी बीमारी, ऑटिज़्म, सुनने में दिक्कत और कई बार बच्चे की मौत भी हो सकती है. वहीं, वयस्कों में जीका वायरस गुलैन-बैरे सिंड्रोम का कारण बन सकता है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नसों पर हमला करती हैं, इस वजह से शरीर में कई दिक्कतों की शुरुआत होती है.
जीका वायरस का इलाज?
इस वायरस का कोई टीका नहीं है, न ही कोई उपचार है. इस संक्रमण से पीड़ित लोगों को दर्द में आराम देने के लिए पैरासिटामॉल (एसिटामिनोफेन) दी जाती है.
जीका वायरस से बचने के लिए क्या करें?
जीका वायरस को फैलाने वाले मच्छर से बचने के लिए वही उपाय हैं जो आप डेंगू से बचने के लिए करते आए हैं. जैसे मच्छरदानी का प्रयोग, पानी को ठहरने नहीं देना, आस-पास की साफ-सफाई, मच्छर वाले एरिया में पूरे कपड़े पहनना, मच्छरों को मारने वाली चीज़ों का इस्तेमाल और खून को जांचे बिना शरीर में ना चढ़वाना.
जीका वायरस का इतिहास क्या है?
इसका संबंध अफ्रीका के जिका जंगल से है. जहां से 1947 में अफ्रीकी विषाणु अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक पीले बुखार पर रिसर्च करने रीसस मकाक (एक प्रकार का लंगूर) को लाए. इस लंगूर को हुए बुखार की जांच की गई, जिसमें पाए गए संक्रामक घटक (Infectious component) को जगंल का ही नाम 'जिका' दिया गया. इसके 7 साल बाद 1954 में नाइजीरिया के एक व्यक्ति में यह वायरस पाया गया. इस वायरस के ज्यादा मामले पहली बार 2007 में अफ्रीका और एशिया के बाहर देखने को मिले. और अब 2018 में राजस्थान के जयपुर में जीका वायरस के 22 मामले सामने आए हैं.
VIDEO: जीका वायरस है जानलेवा, कैसे करें बचाव
जयपुर में 22 लोगों में जीका वायरस का संक्रमण, PMO ने स्वास्थ्य मंत्रालय से मांगी रिपोर्ट
जीका वायरस कैसे फैलता है?
यह वायरस डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया की ही तरह मच्छरों से फैलता है. यह एक प्रकार का एडीज मच्छर ही है, जो दिन में सक्रिय रहते हैं. अगर यह मच्छर किसी संक्रमित व्यक्ति को काट लेता है, जिसके खून में वायरस मौजूद है, तो यह किसी अन्य व्यक्ति को काटकर वायरस फैला सकता है. मच्छरों के अलावा असुरक्षित शारीरिक संबंध और संक्रमित खून से भी जीका बुखार या वायरस फैलता है.
जीका वायरस के लक्षण?
जीका वायरस से संक्रमित कई लोग खुद को बीमार महसूस नहीं करते. लेकिन इसके आम लक्षण डेंगू बुखार की ही तरह होते हैं. जैसे थकान, बुखार, लाल आंखे, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द और शरीर पर लाल चकत्ते.
जीका वायरस से क्या है खतरा?
यह वायरस इतना खतरनाक है कि अगर किसी गर्भवती महिला को हो जाए तो गर्भ में पल रहे बच्चे को भी यह बुखार हो सकता है. जिस वजह से बच्चे के सिर का विकास रूक सकता है और वर्टिकली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन भी फैल सकता है. वर्टिकली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन में स्किन रैशेज़ या दाग, पीलिया, लिवर से जुड़ी बीमारियां, अंधापन, दिमागी बीमारी, ऑटिज़्म, सुनने में दिक्कत और कई बार बच्चे की मौत भी हो सकती है. वहीं, वयस्कों में जीका वायरस गुलैन-बैरे सिंड्रोम का कारण बन सकता है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नसों पर हमला करती हैं, इस वजह से शरीर में कई दिक्कतों की शुरुआत होती है.
जीका वायरस का इलाज?
इस वायरस का कोई टीका नहीं है, न ही कोई उपचार है. इस संक्रमण से पीड़ित लोगों को दर्द में आराम देने के लिए पैरासिटामॉल (एसिटामिनोफेन) दी जाती है.
जीका वायरस से बचने के लिए क्या करें?
जीका वायरस को फैलाने वाले मच्छर से बचने के लिए वही उपाय हैं जो आप डेंगू से बचने के लिए करते आए हैं. जैसे मच्छरदानी का प्रयोग, पानी को ठहरने नहीं देना, आस-पास की साफ-सफाई, मच्छर वाले एरिया में पूरे कपड़े पहनना, मच्छरों को मारने वाली चीज़ों का इस्तेमाल और खून को जांचे बिना शरीर में ना चढ़वाना.
जीका वायरस का इतिहास क्या है?
इसका संबंध अफ्रीका के जिका जंगल से है. जहां से 1947 में अफ्रीकी विषाणु अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक पीले बुखार पर रिसर्च करने रीसस मकाक (एक प्रकार का लंगूर) को लाए. इस लंगूर को हुए बुखार की जांच की गई, जिसमें पाए गए संक्रामक घटक (Infectious component) को जगंल का ही नाम 'जिका' दिया गया. इसके 7 साल बाद 1954 में नाइजीरिया के एक व्यक्ति में यह वायरस पाया गया. इस वायरस के ज्यादा मामले पहली बार 2007 में अफ्रीका और एशिया के बाहर देखने को मिले. और अब 2018 में राजस्थान के जयपुर में जीका वायरस के 22 मामले सामने आए हैं.
VIDEO: जीका वायरस है जानलेवा, कैसे करें बचाव
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