नई दिल्ली : फिल्में हमारे सपनों का फैक्चुअल अकांउट होती है, लेकिन इसे विडंबना ही कह सकते हैं कि ये सपना देखने का अधिकार तो हम सभी को मिलता है, लेकिन जीने का नहीं। ख़ासकर तब जब आप बिहार या यूपी के किसी छोटे से गांव या कस्बे के रहने वाले हों। लेकिन इस असंभव से लगने वाले सपने को सच किया है छह युवाओं ने अपने-अपने घरों को छोड़ दिल्ली पढ़ाई करने आए। दिल्ली के नॉर्थ कैंपस में पढ़ाई करते हुए इन युवाओं ने सोचा कि क्यों न फिल्म बनाई जाए और जैसा कि होता है जहां चाह-वहां राह।
मार्च के पहले हफ्ते में इन युवाओं ने फ़िल्म बनाने का सपना देखा और आधा महीना बीतने के साथ ही 15 मार्च को इन्होंने यू-ट्यूब पर अपनी एक कंपनी बना डाली- एमसीबीसी फिल्मस यानि मेंटल क्रेज़ी बुलशिट सर्किल।
क्षितिज रॉय, पवन मोर, अनुज कुमार, मयंक मधुकर, अभिनव शेख़र और चित्रांशी ये लोग इस अभियान के सदस्य हैं। अपने आसपास ये इंटरनेट रिवोल्यूशन होता देख रहे थे। इन्होंने यू-ट्यूब पर एआईबी भी देखा था और रेडियो पर नीलेश मिश्रा की याद शहर भी।
यह देख रहे थे कि भारत में फोटो रिवोल्यूशन आ गया है और लोगों को ऐसी कहानियां भा रही हैं जो उनके दिल को छू रही थी। अनुज के पास निकोन डीएसएलआर- 5500 कैमरा था और पवन अमैच्योर फोटोग्राफी करता था। अभिनव कॉलेज में डांस किया करते थे और चित्रांशी को एक्टिंग में रुचि थी।
क्षितिज बताते हैं कि 95 का वैलेंटाइन शूट करने जब वह निकले तो उस दिन अचानक बारिश हो गई और उन्हें उसी वक्त़ स्क्रिप्ट में बदलाव करना पड़ा। चित्रांशी को अपने घर-वालों से डर था, इसलिए उसने उन्हें फेसबुक पर ब्लॉक कर दिया है। क्षितिज को छोड़कर किसी के भी माता-पिता इन कामों में इनका समर्थन नहीं करते थे। लेकिन फिर भी इनका दिल था कि मानता नहीं।
तो इसी तरह इन छह अलग-अलग कस्बों के युवा अपने मिलते-जुलते सपनों को साकार करने में लग गए दिल्ली के मुख़र्जी नगर, इंडिया गेट और जामा मस्जिद में... और सिर्फ़ एक दिन में एक पूरी फ़िल्म शूट कर ली गई। दोनों ही फिल्में दो अलग-अलग संदेश के साथ बनाई गईं। 95 का वैलेंटाइन जहां प्यार जैसे रूहानी सब्जेक्ट पर बनाई गई, तो एबीसीडी का लीड कैरेक्टर दिल्ली का मुख़र्जी नगर इलाका था जहां देश के लाखों-करोड़ों युवा अपने माता-पिता के सपनों को जीने आते हैं।
इन लोगों ने एक दिन में तस्वीरें खींची, फिर स्क्रिप्ट रेडी की और उसके हिसाब से तस्वीरें खींची। ख़ुद ही आईपैड पर वॉयस ओवर भी कर किया। यू-ट्यूब पर ट्यूरोटियल्स करके एडिटिंग और रिकॉर्डिंग कर ली। मयंक ने ऑनलाइन ही गैरेज बैंड पर म्यूज़िक भी कंपोज़ और रिकॉर्ड कर ली और इसके साथ ही इनकी फिल्म यू-ट्यूब पर रिलीज़ हो गई।
फिल्म यूपीएसई यू-ट्यूब पर 18 मार्च को रिलीज़ हुई और अब तक उसे 15,000 से ज्य़ादा लोग देख चुके हैं। वहीं 95 का वैलेंटाइन 5 अप्रैल को यूट्यूब पर अपलोड की गई और इसे 10,000 से ज्य़ादा लोग देख चुके हैं। फिल्म को बनाने में कुल 1500 रुपये का खर्चा हुआ, जिसमें इन कलाकारों का खाना-पीना और आने-जाने का खर्चा भी शामिल है।
इन युवाओं को लगता है कि काम की जो आज़ादी उन्हें यू-ट्यूब पर मिलती है, उतना किसी लोकतांत्रिक व्यक्ति या सिस्टम से उन्हें आजतक नहीं मिला और शायद यही वह वजह है कि अब उनके सपने बड़े होने लगे हैं।
(डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस वीडियो के कुछ संवाद कुछ दर्शको के लिए आपत्तिजनक हो सकते हैं, सो, कृपया विवेक का इस्तेमाल करें)
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