नई दिल्ली:
मुंबई बम विस्फोटों के दोषी याकूब मेमन को गुरुवार सुबह फांसी दे दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने देर रात मौत के वांरट पर रोक लगाने के लिए उसके वकीलों की ओर से दायर की गई याचिका खारिज कर दी।
तीन न्यायाधीशों वाली पीठ के अध्यक्ष दीपक मिश्रा ने अदालत कक्ष संख्या 4 में एक आदेश में कहा, मौत के वारंट पर रोक लगाना न्याय का मजाक होगा। याचिका खारिज की जाती है। सुनवाई के लिए अदालत कक्ष अभूतपूर्व रूप से रात में खोला गया। तीन बजकर 20 मिनट पर शुरू हुई सुनवाई 90 मिनट तक चली।
कोर्ट के फैसले से फांसी रुकवाने के याकूब के वकीलों का अंतिम प्रयास विफल हो गया। बुधवार को तेजी से हुए घटनाक्रमों के बाद यह अंतिम फैसला आया। बुधवार को कोर्ट ने याकूब की मौत के वारंट को बरकरार रखा था और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तथा महाराष्ट्र के राज्यपाल विद्यासागर राव ने मेमन की दया याचिका को खारिज कर दिया था।
देर रात, याकूब की ओर से पेश वकीलों ने अपनी रणनीति बदली और वे प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू के घर गए तथा इस आधार पर फांसी की सजा रुकवाने के लिए उन्हें तत्काल सुनवाई के लिए याचिका दी कि मौत की सजा पाए दोषी को 14 दिन का समय दिया जाए, जिससे कि वह दया याचिका खारिज किए जाने को चुनौती देने और अन्य उद्देश्यों के लिए तैयार हो सके।
विचार-विमर्श के बाद प्रधान न्यायाधीश ने उन्हीं तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित कर दी, जिन्होंने पूर्व में मौत के वारंट पर फैसला किया था।
वरिष्ठ अधिवक्ताओं आनंद ग्रोवर और युग चौधरी ने कहा कि अधिकारी याकूब को दया याचिका खारिज किए जाने के राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देने का अधिकार दिए बिना उसे फांसी लगाने पर तुले हैं।
ग्रोवर ने कहा कि मौत की सजा का सामना कर रहा दोषी दया याचिका खारिज होने के बाद विभिन्न उद्देश्यों के लिए 14 दिन की मोहलत पाने का हकदार है। याकूब की याचिका का विरोध करते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि उसकी ताजा याचिका प्रणाली का उल्लंघन करने के समान है।
उन्होंने कहा कि 10 घंटे पहले तीन न्यायाधीशों द्वारा मौत के वारंट को बरकरार रखे जाने के फैसले को निरस्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि समूचा प्रयास लंबे समय तक जेल में रहने और सजा कम कराने का प्रयास प्रतीत होता है।
तीन न्यायाधीशों वाली पीठ के अध्यक्ष दीपक मिश्रा ने अदालत कक्ष संख्या 4 में एक आदेश में कहा, मौत के वारंट पर रोक लगाना न्याय का मजाक होगा। याचिका खारिज की जाती है। सुनवाई के लिए अदालत कक्ष अभूतपूर्व रूप से रात में खोला गया। तीन बजकर 20 मिनट पर शुरू हुई सुनवाई 90 मिनट तक चली।
कोर्ट के फैसले से फांसी रुकवाने के याकूब के वकीलों का अंतिम प्रयास विफल हो गया। बुधवार को तेजी से हुए घटनाक्रमों के बाद यह अंतिम फैसला आया। बुधवार को कोर्ट ने याकूब की मौत के वारंट को बरकरार रखा था और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तथा महाराष्ट्र के राज्यपाल विद्यासागर राव ने मेमन की दया याचिका को खारिज कर दिया था।
देर रात, याकूब की ओर से पेश वकीलों ने अपनी रणनीति बदली और वे प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू के घर गए तथा इस आधार पर फांसी की सजा रुकवाने के लिए उन्हें तत्काल सुनवाई के लिए याचिका दी कि मौत की सजा पाए दोषी को 14 दिन का समय दिया जाए, जिससे कि वह दया याचिका खारिज किए जाने को चुनौती देने और अन्य उद्देश्यों के लिए तैयार हो सके।
विचार-विमर्श के बाद प्रधान न्यायाधीश ने उन्हीं तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित कर दी, जिन्होंने पूर्व में मौत के वारंट पर फैसला किया था।
वरिष्ठ अधिवक्ताओं आनंद ग्रोवर और युग चौधरी ने कहा कि अधिकारी याकूब को दया याचिका खारिज किए जाने के राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देने का अधिकार दिए बिना उसे फांसी लगाने पर तुले हैं।
ग्रोवर ने कहा कि मौत की सजा का सामना कर रहा दोषी दया याचिका खारिज होने के बाद विभिन्न उद्देश्यों के लिए 14 दिन की मोहलत पाने का हकदार है। याकूब की याचिका का विरोध करते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि उसकी ताजा याचिका प्रणाली का उल्लंघन करने के समान है।
उन्होंने कहा कि 10 घंटे पहले तीन न्यायाधीशों द्वारा मौत के वारंट को बरकरार रखे जाने के फैसले को निरस्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि समूचा प्रयास लंबे समय तक जेल में रहने और सजा कम कराने का प्रयास प्रतीत होता है।
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