याकूब मेमन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्यूरेटिव पिटीशन खारिज हो जाने के बाद महाराष्ट्र की नागपुर जेल में 1993 बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी की तैयारी हो रही है।
कुछ दिन पहले याकूब को 30 जुलाई को नागपुर सेंट्रल जेल में फांसी देने का फैसला सुनाया गया था, जिस पर याकूब ने क्यूरेटिव पिटीशन दायर की थी।
यानी 53 साल के याकूब को उसी दिन फांसी दी जाएगी, जिस दिन उसका जन्मदिन है। यानी 30 जुलाई को। सूत्रों के मुताबिक, डॉक्टरों की एक टीम याकूब की हेल्थ पर पूरा ध्यान रखे हुए है।
गौरतलब है कि मुंबई में 1993 में हुए विस्फोटों के मामले में एकमात्र याकूब अब्दुल रजाक मेमन को फांसी की सजा दी जानी है, लेकिन इस मामले में मेमन खानदान के अन्य कुछ सदस्य भी आरोपी रहे और इनमें से कुछ को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया।
याकूब के माता-पिता, अब्दुल रजाक मेमन और हनीफा मेमन मध्य मुंबई के माहिम में मखदूम शाह बाबा की दरगाह के पास आठ मंजिला इमारत अल-हुसैनी में रहते थे।
याकूब के भाई मुश्ताक उर्फ टाइगर मेमन ने इसी इमारत में बम विस्फोटों की साजिश रची थी। टाइगर भगोड़े आरोपी और विस्फोटों के मास्टरमाइंड दाउद इब्राहिम का दायां हाथ था।
बम विस्फोटों से पहले 12 मार्च, 1993 को टाइगर मेमन के लोगों ने अल-हुसैनी इमारत के गैरेजों में कारों और स्कूटरों में आरडीएक्स लगाया, जिसका इस्तेमाल पहली बार भारत में विस्फोटों के लिए किया गया था।
याकूब चार्टर्ड एकाउंटेंट है और उसके नाम पर इस इमारत में दूसरी मंजिल पर एक फ्लैट है। इस मामले में मुकदमे का सामना करने वाले मेमन परिवार के कुछ सदस्यों के नाम निम्नलिखित हैं (अब्दुल रजाक मेमन) टाइगर मेमन के पिता। वह क्रिकेट के शौकीन थे और मुंबई लीग में खेले। वह पूर्व क्रिकेट कप्तान नवाब पटौदी के बाद ‘टाइगर’ नाम से लोकप्रिय होने लगे। वह चाहते थे कि उनका बेटा मुश्ताक भी क्रिकेटर बने।
अब्दुल रजाक को 1994 में मेमन परिवार के अन्य सदस्यों के साथ विदेश से लौटने पर गिरफ्तार किया गया था। वह जेल में बीमार हो गये और कुछ साल बाद उन्हें जमानत दे दी गई। 2001 में 73 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।
हनीफा मेमन यानी टाइगर की मां की पूरा मेमन खानदान इज्जत करता था। उन पर अपने बेटे टाइगर और उसके दोस्तों को आतंकवादी गतिविधियों के लिए उकसाने के लिए मामला दर्ज किया गया। कुछ साल तक जेल में रहने के बाद हनीफा को भी छोड़ दिया गया। बाद में टाडा अदालत ने सबूतों की कमी के चलते उन्हें बरी कर दिया। मुश्ताक मेमन उर्फ टाइगर कथित रूप से तस्कर था। वह भारत में दाउद इब्राहिम के अवैध कामकाज को देखता था। विस्फोटों से एक दिन पहले वह दुबई चला गया और वहां से पाकिस्तान चला गया। माना जाता है कि वह दाउद के साथ पाकिस्तान में छिपा हुआ है। वह भारत के सर्वाधिक वांछित अपराधियों में शामिल है। उसने बाबरी मस्जिद गिराये जाने की घटना का बदला लेने के लिए दाउद के साथ 1993 के विस्फोटों की साजिश रची थी।
याकूब मेमन : चार्टर्ड एकाउंटेंट था। उसकी एक एकाउंटिंग कंपनी थी जहां वह हवाला कारोबार करने वाली टाइगर की कंपनी के खातों को देखता था। उसने इस मामले के आरोपियों को टिकट मुहैया कराया जो हथियारों के प्रशिक्षण के लिए दुबई के रास्ते पाकिस्तान गये थे। टाडा अदालत में उसके खिलाफ लगे आरोपों में यह बात कही गयी। उसे 1994 में गिरफ्तार किया गया और टाडा अदालत में उस पर मुकदमा चला।
टाडा अदालत ने 2006 में उसे दोषी करार दिया और 27 जुलाई, 2007 को इस अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई। 21 मार्च, 2013 को उच्चतम न्यायालय ने उसकी मौत की सजा को बरकरार रखा। 2014 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उसकी दया याचिका को खारिज कर दिया और उच्चतम न्यायालय ने इस साल 10 अप्रैल को उसकी दया याचिका को खारिज कर दिया। टाडा अदालत ने 29 अप्रैल को उसकी मौत की सजा के लिए 30 जुलाई की तारीख तय की थी।
सुलेमान मेमन (याकूब का भाई)। मिलनसार और भला आदमी था। अपने पिता की तरह वह भी क्रिकेट में दिलचस्पी रखता था। उसे 1994 में मेमन परिवार के अन्य सदस्यों के साथ गिरफ्तार किया गया और उस पर आतंकी गतिविधियों को भड़काने और उनमें मदद देने के आरोप लगे। उसे गिरफ्तार करने के कुछ साल बाद जमानत दे दी गई और अंतत: सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया। याकूब की पत्नी राहिन मेमन को भी इस मामले में उसके पति के साथ गिरफ्तार किया गया था। उस पर भी आतंकी गतिविधियों में मदद देने के आरोप लगे, लेकिन सबूतों की कमी के चलते सितंबर, 2006 में उसे छोड़ दिया गया।
सुलेमान की पत्नी रूबीना को टाडा अदालत ने दोषी करार दिया था और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई, क्योंकि बम विस्फोटों में इस्तेमाल मारति वैन उसके नाम पर रजिस्टर्ड थी। यह वैन वरली में लावारिस मिली थी और इसमें एके-56 राइफल और हैंडग्रेनेड मिले।
टाइगर के भाई इस्सा को भी अन्य सदस्यों के साथ गिरफ्तार किया गया था। उसे ट्यूमर होने का पता चला और उसने खराब सेहत के आधार पर छोड़ने की मांग की। हालांकि टाडा अदालत ने उसे दोषी करार दिया। वह औरंगाबाद जेल में उम्रकैद काट रहा है।
टाइगर के एक और भाई यूसूफ को भी अन्य सदस्यों के साथ गिरफ्तार किया गया था। उसे सिजोफ्रेनिया होने की आशंका थी और उसने उपचार के लिए छूट मांगी। हालांकि टाडा अदालत ने उसे भी दोषी करार दिया और वह औरंगाबाद जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा है।
अब्दुल रजाक और हनीफा का सबसे बड़ा बेटा अयूब फरार है और समझा जाता है कि वह पाकिस्तान में टाइगर के साथ रहता है। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में 1993 बम विस्फोट मामला सबसे लंबा रहा जो 14 साल तक चला।
कुछ दिन पहले याकूब को 30 जुलाई को नागपुर सेंट्रल जेल में फांसी देने का फैसला सुनाया गया था, जिस पर याकूब ने क्यूरेटिव पिटीशन दायर की थी।
यानी 53 साल के याकूब को उसी दिन फांसी दी जाएगी, जिस दिन उसका जन्मदिन है। यानी 30 जुलाई को। सूत्रों के मुताबिक, डॉक्टरों की एक टीम याकूब की हेल्थ पर पूरा ध्यान रखे हुए है।
गौरतलब है कि मुंबई में 1993 में हुए विस्फोटों के मामले में एकमात्र याकूब अब्दुल रजाक मेमन को फांसी की सजा दी जानी है, लेकिन इस मामले में मेमन खानदान के अन्य कुछ सदस्य भी आरोपी रहे और इनमें से कुछ को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया।
याकूब के माता-पिता, अब्दुल रजाक मेमन और हनीफा मेमन मध्य मुंबई के माहिम में मखदूम शाह बाबा की दरगाह के पास आठ मंजिला इमारत अल-हुसैनी में रहते थे।
याकूब के भाई मुश्ताक उर्फ टाइगर मेमन ने इसी इमारत में बम विस्फोटों की साजिश रची थी। टाइगर भगोड़े आरोपी और विस्फोटों के मास्टरमाइंड दाउद इब्राहिम का दायां हाथ था।
बम विस्फोटों से पहले 12 मार्च, 1993 को टाइगर मेमन के लोगों ने अल-हुसैनी इमारत के गैरेजों में कारों और स्कूटरों में आरडीएक्स लगाया, जिसका इस्तेमाल पहली बार भारत में विस्फोटों के लिए किया गया था।
याकूब चार्टर्ड एकाउंटेंट है और उसके नाम पर इस इमारत में दूसरी मंजिल पर एक फ्लैट है। इस मामले में मुकदमे का सामना करने वाले मेमन परिवार के कुछ सदस्यों के नाम निम्नलिखित हैं (अब्दुल रजाक मेमन) टाइगर मेमन के पिता। वह क्रिकेट के शौकीन थे और मुंबई लीग में खेले। वह पूर्व क्रिकेट कप्तान नवाब पटौदी के बाद ‘टाइगर’ नाम से लोकप्रिय होने लगे। वह चाहते थे कि उनका बेटा मुश्ताक भी क्रिकेटर बने।
अब्दुल रजाक को 1994 में मेमन परिवार के अन्य सदस्यों के साथ विदेश से लौटने पर गिरफ्तार किया गया था। वह जेल में बीमार हो गये और कुछ साल बाद उन्हें जमानत दे दी गई। 2001 में 73 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।
हनीफा मेमन यानी टाइगर की मां की पूरा मेमन खानदान इज्जत करता था। उन पर अपने बेटे टाइगर और उसके दोस्तों को आतंकवादी गतिविधियों के लिए उकसाने के लिए मामला दर्ज किया गया। कुछ साल तक जेल में रहने के बाद हनीफा को भी छोड़ दिया गया। बाद में टाडा अदालत ने सबूतों की कमी के चलते उन्हें बरी कर दिया। मुश्ताक मेमन उर्फ टाइगर कथित रूप से तस्कर था। वह भारत में दाउद इब्राहिम के अवैध कामकाज को देखता था। विस्फोटों से एक दिन पहले वह दुबई चला गया और वहां से पाकिस्तान चला गया। माना जाता है कि वह दाउद के साथ पाकिस्तान में छिपा हुआ है। वह भारत के सर्वाधिक वांछित अपराधियों में शामिल है। उसने बाबरी मस्जिद गिराये जाने की घटना का बदला लेने के लिए दाउद के साथ 1993 के विस्फोटों की साजिश रची थी।
याकूब मेमन : चार्टर्ड एकाउंटेंट था। उसकी एक एकाउंटिंग कंपनी थी जहां वह हवाला कारोबार करने वाली टाइगर की कंपनी के खातों को देखता था। उसने इस मामले के आरोपियों को टिकट मुहैया कराया जो हथियारों के प्रशिक्षण के लिए दुबई के रास्ते पाकिस्तान गये थे। टाडा अदालत में उसके खिलाफ लगे आरोपों में यह बात कही गयी। उसे 1994 में गिरफ्तार किया गया और टाडा अदालत में उस पर मुकदमा चला।
टाडा अदालत ने 2006 में उसे दोषी करार दिया और 27 जुलाई, 2007 को इस अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई। 21 मार्च, 2013 को उच्चतम न्यायालय ने उसकी मौत की सजा को बरकरार रखा। 2014 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उसकी दया याचिका को खारिज कर दिया और उच्चतम न्यायालय ने इस साल 10 अप्रैल को उसकी दया याचिका को खारिज कर दिया। टाडा अदालत ने 29 अप्रैल को उसकी मौत की सजा के लिए 30 जुलाई की तारीख तय की थी।
सुलेमान मेमन (याकूब का भाई)। मिलनसार और भला आदमी था। अपने पिता की तरह वह भी क्रिकेट में दिलचस्पी रखता था। उसे 1994 में मेमन परिवार के अन्य सदस्यों के साथ गिरफ्तार किया गया और उस पर आतंकी गतिविधियों को भड़काने और उनमें मदद देने के आरोप लगे। उसे गिरफ्तार करने के कुछ साल बाद जमानत दे दी गई और अंतत: सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया। याकूब की पत्नी राहिन मेमन को भी इस मामले में उसके पति के साथ गिरफ्तार किया गया था। उस पर भी आतंकी गतिविधियों में मदद देने के आरोप लगे, लेकिन सबूतों की कमी के चलते सितंबर, 2006 में उसे छोड़ दिया गया।
सुलेमान की पत्नी रूबीना को टाडा अदालत ने दोषी करार दिया था और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई, क्योंकि बम विस्फोटों में इस्तेमाल मारति वैन उसके नाम पर रजिस्टर्ड थी। यह वैन वरली में लावारिस मिली थी और इसमें एके-56 राइफल और हैंडग्रेनेड मिले।
टाइगर के भाई इस्सा को भी अन्य सदस्यों के साथ गिरफ्तार किया गया था। उसे ट्यूमर होने का पता चला और उसने खराब सेहत के आधार पर छोड़ने की मांग की। हालांकि टाडा अदालत ने उसे दोषी करार दिया। वह औरंगाबाद जेल में उम्रकैद काट रहा है।
टाइगर के एक और भाई यूसूफ को भी अन्य सदस्यों के साथ गिरफ्तार किया गया था। उसे सिजोफ्रेनिया होने की आशंका थी और उसने उपचार के लिए छूट मांगी। हालांकि टाडा अदालत ने उसे भी दोषी करार दिया और वह औरंगाबाद जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा है।
अब्दुल रजाक और हनीफा का सबसे बड़ा बेटा अयूब फरार है और समझा जाता है कि वह पाकिस्तान में टाइगर के साथ रहता है। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में 1993 बम विस्फोट मामला सबसे लंबा रहा जो 14 साल तक चला।
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