चीनी नौसेना की ओर से उपलब्ध कराया गया चीन की न्यूक्लियर पनडुब्बी का फाइल फोटो।
नई दिल्ली:
भारत और अमेरिका हिंद महासागर में एक-दूसरे की पनडुब्बियों को ट्रैक करने में मदद के लिए बातचीत कर रहे हैं। सेना के अधिकारियों के मुताबिक, इस क्षेत्र में बीजिंग की बढ़ती गतिविधियों के बाद यह कदम भारत और अमेरिका के रक्षा संबंधों को और सुदृढ़ बनाने में मददगार हो सकता है।
भारत और अमेरिका, दोनों ही चीनी नौसेना की पहुंच और इसकी महत्वकांक्षा को लेकर चिंतित हैं। दरअसल, चीनी नौसेना दक्षिण चीन सागर में अपने रुख को लेकर मुखर है और हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को चुनौती देने पर आमादा है। भारतीय नौसेना के अधिकारियों के अनुसार, चीन की पनडुब्बियों को को हर तीन माह में औसतन चार बार यहां देखा जाता है। इसमें से कुछ भारत के अंडबार-निकोबार द्वीप समूह के करीब देखी गई हैं।
गौरतलब है कि भारत और अमेरिका के बीच हाल के समय में रक्षा मामलों में सहयोग बढ़ा है। दोनों देशों के बीच हाल ही में एक बेहद समझौता हुआ है, जिसके तहत दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के सामान तथा सैन्य अड्डों का इस्तेमाल मरम्मत और आपूर्ति के लिए कर सकेंगी। इस मुद्दे को लेकर पिछली यूपीए सरकार के समय समझौता नहीं हो पाया था। भारत और अमेरिका द्विपक्षीय रक्षा समझौते को मजबूती देते हुए अपने-अपने रक्षा विभागों और विदेश मंत्रालयों के अधिकारियों के बीच मैरीटाइम सिक्योरिटी डायलॉग स्थापित करने को राजी हुए हैं। इसके साथ ही दोनों देशों ने नौवहन की स्वतंत्रता और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कानून की जरूरत पर जोर दिया है। दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती दखलअंदाजी को देखते हुए संभवत: ऐसा किया गया है।
भारत और अमेरिका, दोनों ही चीनी नौसेना की पहुंच और इसकी महत्वकांक्षा को लेकर चिंतित हैं। दरअसल, चीनी नौसेना दक्षिण चीन सागर में अपने रुख को लेकर मुखर है और हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को चुनौती देने पर आमादा है। भारतीय नौसेना के अधिकारियों के अनुसार, चीन की पनडुब्बियों को को हर तीन माह में औसतन चार बार यहां देखा जाता है। इसमें से कुछ भारत के अंडबार-निकोबार द्वीप समूह के करीब देखी गई हैं।
गौरतलब है कि भारत और अमेरिका के बीच हाल के समय में रक्षा मामलों में सहयोग बढ़ा है। दोनों देशों के बीच हाल ही में एक बेहद समझौता हुआ है, जिसके तहत दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के सामान तथा सैन्य अड्डों का इस्तेमाल मरम्मत और आपूर्ति के लिए कर सकेंगी। इस मुद्दे को लेकर पिछली यूपीए सरकार के समय समझौता नहीं हो पाया था। भारत और अमेरिका द्विपक्षीय रक्षा समझौते को मजबूती देते हुए अपने-अपने रक्षा विभागों और विदेश मंत्रालयों के अधिकारियों के बीच मैरीटाइम सिक्योरिटी डायलॉग स्थापित करने को राजी हुए हैं। इसके साथ ही दोनों देशों ने नौवहन की स्वतंत्रता और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कानून की जरूरत पर जोर दिया है। दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती दखलअंदाजी को देखते हुए संभवत: ऐसा किया गया है।
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