बिहार चुनाव से पहले मोहन भागवत ने ऐसा ही बयान दिया था जो मुद्दा बना था...
नई दिल्ली:
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आरएसएस के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य के आरक्षण खत्म करने के बयान पर विवाद खड़ा हो गया है. मनमोहन वैद्य के बयान के बाद राजनीतिक माहौल गर्म हो गया. बयान के कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, जेडीयू, समाजवादी पार्टी, आरजेडी और बीएसपी सबने मोर्चा खोल दिया है. यूपी चुनाव से पहले आरएसएस के बयान को लेकर विपक्षी पार्टियों को बड़ा मुद्दा मिल गया है. गौरतलब है कि बिहार चुनाव से पहले मोहन भागवत ने ऐसा ही बयान दिया था जो मुद्दा बना था. इसके बाद खुद प्रधानमंत्री मोदी को कई बार सफाई देनी पड़ी थी कि आरक्षण को कोई खत्म नहीं कर पाएगा लेकिन भाजपा को इसका खामियाजा बिहार चुनाव में हार झेलकर चुकाना पड़ा.
हालांकि विवाद बढ़ता देख राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने देर शाम अपने बयान पर सफाई दी. आरएसएस ने आरक्षण के मुद्दे पर स्पष्ट किया कि संविधान के तहत दिए गए आरक्षण के प्रावधानों जारी रहने चाहिए और इसमें बिना वजह किसी प्रकार का विवाद पैदा नहीं होना चाहिए.
क्यों मायने रखता है वैद्य का बयान?
चुनावी बयार में वैद्य के बयान इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का सारा गणित आरक्षण का लाभ लेने वाली जातियों पर टिका हुआ है. पूरे सूबे में लगभग 40 प्रतिशत वोट ऐसा है, जिसमें भाजपा को शायद ही कुछ हिस्सा मिले. ये वोटबैंक है मुसलमानों, जाटवों और यादवों का है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में 21 फीसदी दलित हैं.
चालीस फीसदी ओबीसी में से इस वक्त गैर यादव ओबीसी को बीजेपी का वोटबैंक माना जा रहा है. ऐसे में अगर मनमोहन वैद्य का बयान को विपक्ष ने जोर शोर से उठाकर प्रचार का नारा बना लिया तो भाजपा के लिए बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी.
बीजेपी की मुश्किलें इसलिए भी बढ़ सकती हैं क्योंकि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय ने बीजेपी को आगामी विधानसभा चुनाव में समर्थन नहीं देने की बात कही है. समुदाय के नेताओं का कहना है कि पार्टी ने उन्हें शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत आरक्षण की सरकारी नौकरियों में शामिल नहीं किया है.
बिहार में पीएम मोदी देते रह गए थे सफाई
वर्ष 2015 में आरएसप्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण नीतियों की समीक्षा करने की बात कही थी. बिहार में पार्टी कैंपेन का चेहरा नरेंद्र मोदी थे. भागवत के बयान के बाद पीएम मोदी ने बार-बार अपनी जनसभाओं में विश्वास दिलाया कि आरक्षण समाप्त नहीं होगा. लेकिन जनता ने एक न सुनी और पार्टी को करारी शिकस्त खानी पड़ी. मजे की बात यह है कि उत्तर प्रदेश चुनाव भी प्रधानमंत्री के भरोसे लड़ा जा रहा है. ऐसे में आरएसएस के बयान से निश्चित रूप से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. विपक्ष इस मुद्दे को उठाने से नहीं चूकेगा. ऐसे में इस बात की आशंका बढ़ गई है कि कहीं बिहार जैसे हालात से पार्टी को यहां भी दोचार न होना पड़े.
हालांकि विवाद बढ़ता देख राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने देर शाम अपने बयान पर सफाई दी. आरएसएस ने आरक्षण के मुद्दे पर स्पष्ट किया कि संविधान के तहत दिए गए आरक्षण के प्रावधानों जारी रहने चाहिए और इसमें बिना वजह किसी प्रकार का विवाद पैदा नहीं होना चाहिए.
क्यों मायने रखता है वैद्य का बयान?
चुनावी बयार में वैद्य के बयान इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का सारा गणित आरक्षण का लाभ लेने वाली जातियों पर टिका हुआ है. पूरे सूबे में लगभग 40 प्रतिशत वोट ऐसा है, जिसमें भाजपा को शायद ही कुछ हिस्सा मिले. ये वोटबैंक है मुसलमानों, जाटवों और यादवों का है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में 21 फीसदी दलित हैं.
चालीस फीसदी ओबीसी में से इस वक्त गैर यादव ओबीसी को बीजेपी का वोटबैंक माना जा रहा है. ऐसे में अगर मनमोहन वैद्य का बयान को विपक्ष ने जोर शोर से उठाकर प्रचार का नारा बना लिया तो भाजपा के लिए बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी.
बीजेपी की मुश्किलें इसलिए भी बढ़ सकती हैं क्योंकि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय ने बीजेपी को आगामी विधानसभा चुनाव में समर्थन नहीं देने की बात कही है. समुदाय के नेताओं का कहना है कि पार्टी ने उन्हें शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत आरक्षण की सरकारी नौकरियों में शामिल नहीं किया है.
बिहार में पीएम मोदी देते रह गए थे सफाई
वर्ष 2015 में आरएसप्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण नीतियों की समीक्षा करने की बात कही थी. बिहार में पार्टी कैंपेन का चेहरा नरेंद्र मोदी थे. भागवत के बयान के बाद पीएम मोदी ने बार-बार अपनी जनसभाओं में विश्वास दिलाया कि आरक्षण समाप्त नहीं होगा. लेकिन जनता ने एक न सुनी और पार्टी को करारी शिकस्त खानी पड़ी. मजे की बात यह है कि उत्तर प्रदेश चुनाव भी प्रधानमंत्री के भरोसे लड़ा जा रहा है. ऐसे में आरएसएस के बयान से निश्चित रूप से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. विपक्ष इस मुद्दे को उठाने से नहीं चूकेगा. ऐसे में इस बात की आशंका बढ़ गई है कि कहीं बिहार जैसे हालात से पार्टी को यहां भी दोचार न होना पड़े.
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