एचएस फुल्का ने आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. एचएस फुल्का (HS Phoolka resigns from AAP) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को अपना इस्तीफा सौंपा. फुल्का ने आम आदमी पार्टी से इस्तीफा आखिर क्यों दिया? इसका औपचारिक जवाब तो खुद फुल्का शुक्रवार शाम 4 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस में देंगे. फिलहाल आम आदमी पार्टी भी इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोल रही है और पार्टी सूत्रों का यही दावा है कि एचएस फुल्का अपना सारा समय 1984 के पीड़ितों का केस लड़ने के लिए देना चाहते हैं. इसलिए उन्होंने इस्तीफ़ा दिया होगा!
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एचएस फुल्का मार्च 2017 में पंजाब में नेता विपक्ष बने थे, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्होंने नेता विपक्ष पद से यह कहकर इस्तीफा दे दिया था कि वह 1984 के केस पर फोकस करना चाहते हैं. हाल ही में गुरु ग्रंथ साहिब से हुई बेअदबी के मामले में पंजाब सरकार के ढीले रवैय्ये के विरोध में उन्होंने विधायकी से भी इस्तीफा दे दिया था. काफी समय से फुल्का आम आदमी पार्टी की बैठकों में नज़र नहीं आ रहे थे. यही नहीं फुल्का ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि अगर आम आदमी पार्टी का कांग्रेस से गठबंधन हुआ तो मैं इस्तीफा दे दूंगा. हालांकि अब आम आदमी पार्टी का कांग्रेस से गठबंधन नहीं होने जा रहा और पार्टी ने दिल्ली पंजाब और हरियाणा की सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है.
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ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों फुल्का ने आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दिया है? संभावना यह है कि जब एचएस फुल्का ना नेता विपक्ष रहे ना ही विधायक रहे और पार्टी आलाकमान से उनकी कोई खास करीबी भी नहीं रही, बल्कि पार्टी के साथ उनके मतभेद ज़्यादा रहे तो ऐसे में पार्टी में रहकर वो करते भी क्या? फुल्का का नाम 1984 हिंसा पीड़ितों को इंसाफ़ दिलाने के लिए जाना जाता है. लेकिन जब वो एक पार्टी के नेता तौर पर लड़ाई लड़ते हैं तो उनकी इस कोशिश को लोग पॉलिटिकल नज़रिए से भी देखते हैं. पार्टी से जुड़ने से अब उनको कोई फ़ायदा नहीं. इससे अच्छा पार्टी से अलग होकर सिख समाज के लिए लड़ेंगे तो ज़्यादा साख बनेगी.
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इस समय आम आदमी पार्टी की पंजाब में हालत ख़राब है. पार्टी जबरदस्त अंदरूनी लड़ाई से गुज़र रही है. जबकि हाल ही में 1984 सिख विरोधी हिंसा मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा दिलवाकर फुल्का का नाम अब और बड़ा हो गया है. ऐसे में हो सकता है कि फुल्का को अब आम आदमी पार्टी ब्रांड की जरूरत ना लगती हो या जिस मकसद के लिए वह आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे वह अब बिना पार्टी के भी हासिल करने की स्थिति में हों.
एचएस फुल्का ने कई बार यह जिक्र किया था कि दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने 1984 के हिंसा पीड़ितों के लिए उम्मीद के मुताबिक काम नहीं किया. ना पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिलवाया ना नौकरी दी. संभावना है कि फुल्का के मन में ये टीस हो जो अब जाकर बाहर आई.
21 दिसंबर को दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भारत रत्न सम्मान वापस लिए जाने की मांग वाला प्रस्ताव पास कर दिया था. दलील यह दी गई थी कि राजीव गांधी ने 1984 में सिखों के कत्लेआम को जायज ठहराया था, लेकिन बाद में आम आदमी पार्टी इस बात से पलट गई. जबकि 31 दिसंबर को फुलका ने राजीव गांधी के बारे में अपनी राय जाहिर की.
फुल्का ने ट्वीट कर कहा था कि, 'राजीव गांधी ने सज्जन कुमार को बिना किसी जांच के क्लीनचिट दी थी. 7 नवंबर 1984 को विपक्षी नेता प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मिले और 1984 सिख नरसंहार में सज्जन कुमार और दूसरे कांग्रेसी नेताओं के शामिल होने की बात कही. कांग्रेस ने मीडिया को बताया- कोई कांग्रेस नेता शामिल नहीं. कोई भी जांच नकारी. कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते राहुल गांधी को देश को जवाब देना चहिए. राजीव गांधी ने सज्जन कुमार को क्यों बचाया? संभावना है इस मुद्दे पर फुल्का के मतभेद हुए हो, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दिया हो.
VIDEO: यह फैसला पीड़ितों के लिए जीत की तरह - एचएस फुल्का
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