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This Article is From Nov 16, 2016

अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय ने बताया, क्यों 2000 का नोट जायज़ भी है, ज़रूरी भी...

अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय ने बताया, क्यों 2000 का नोट जायज़ भी है, ज़रूरी भी...
चित्र सौजन्य : AFP
नई दिल्ली: जिन लोगों का कहना है कि 2,000 रुपये का नया नोट काले या अघोषित धन की जमाखोरी को रोकने में नाकाम रहेगा, उन लोगों के लिए अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय के पास एक संक्षिप्त सुझाव है, "यह मत समझिए कि सरकार बेवकूफ है..." वैसे उनके पास एक और सलाह है, जो आपकी सेहत के लिए फायदेमंद हो सकती है. उनका कहना है, "यह भी मत समझिए कि हिन्दुस्तानी बेवकूफ हैं... वे इससे (नोटबंदी से जुड़े नए नियम) बचने के रास्ते खोज ही लेंगे, और सरकार इसी कोशिश में है कि पहले से उन तरीकों का अंदाज़ा लगाकर उन्हें रोक सके..."

नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय ने कहा कि 2,000 रुपये का नया नोट ज़रूरी है, क्योंकि 'कीमत के लिहाज़ से बड़ी रकम का नोट ज़्यादा कारगर होता है... उसकी छपाई की लागत कम पड़ती है, और ज़्यादा समय तक चलता है...'

आलोचकों के मुताबिक एक हफ्ते पहले 500 और 1,000 रुपये के नोट अचानक बंद कर दिए जाने से सबसे ज़्यादा तकलीफ गरीबों को हुई है, क्योंकि उनका सारा कामकाज नकद से ही चलता है, लेकिन बिबेक देबरॉय इससे इंकार करते हैं.

500 रुपये का नया नोट पुराने नोटों को बंद किए जाने के कई दिन बाद जारी किया गया, और बैंकों तथा एटीएम पर खाताधारकों को 2,000 रुपये के नए नोट दिए जा रहे हैं. अब 500 रुपये के नोटों के पर्याप्त संख्या में प्रचलन में नहीं होने और 100 रुपये के नोटों के जल्द ही खत्म हो जाने की वजह से लोगों के पास कुछ भी खरीदने के लिए 2,000 रुपये के नोट ही बचते हैं, और इन दिनों किसी भी बड़े नोट का छुट्टा हासिल करना लगभग नामुमकिन हो गया है. सो, बहुत-से लोगों का सवाल था कि इतनी बड़ी रकम के नोट का औचित्य क्या है.

बिबेक देबरॉय कहते हैं, "एटीएम में सीमित संख्या में नोट रखे जा सकते हैं, सो, यह पहली वजह है कि आपको 100 रुपये के नोटों के अलावा बड़ी रकम (2,000 रुपये) के नोटों की ज़रूरत है... दूसरा कारण है कि मुद्रास्फीति होती है, सो, इसलिए भी आपको बड़ी रकम का नोट चाहिए होगा..."

500 तथा 1,000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कदम की ज़्यादातर वित्तीय विशेषज्ञों ने तारीफ की है. सरकार ने कहा कि पुराने नोटों को बंद किए जाने से सिर्फ चार घंटे पहले उसकी घोषणा किया जाना बेहद ज़रूरी था, ताकि काला धन (अघोषित धन) रखने वाले उसे ज़मीन-जायदाद और सोना खरीदकर ठिकाने न लगा सकें.

NDTV से बातचीत में बिबेक देबरॉय ने कहा, "यह बेहद, बेहद गोपनीय ऑपरेशन था... सात या आठ से ज़्यादा लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं थी..." जब उनसे पूछा गया कि क्या वह उन सात-आठ लोगों में शामिल थे, उन्होंने इशारा किया, "क्या आप किसी बात को गोपनीय रख सकती हैं...? क्योंकि मैं तो रख सकता हूं..."

इस समय दिक्कत यह है कि देशभर में सभी लोग, बैंककर्मियों को छोड़कर, नकदी के बिना रहने को मजबूर हो गए हैं. बैंकों (और एटीएम भी) के सामने चौबीसों घंटे सैकड़ों-हज़ारों ऐसे लोगों की लाइनें लगी रहती हैं, जो अपने हिस्से की 'खर्च करने लायक' नकदी हासिल करना चाहते हैं.

उनके ऑफिस से दिखाई देती है रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के बाहर लगी लोगों की भीड़, जो नोट बदलवाने के लिए खड़े हैं. बिबेक देबरॉय बहुत ध्यान से उन लोगों को देखते रहे हैं, और उनका मानना है कि उस भीड़ में ज़्यादातर लोग अपने पुराने नोटों को नए नोटों से बदलवाने के लिए नहीं, दूसरों के नोटों को बदलवाने के लिए आए हैं. यह भी एक वजह है कि सरकार ने कहा कि वह नए नोट ले चुके हर व्यक्ति की अंगुली पर न मिटने वाली स्याही से निशान लगाएगी, जैसा मतदान के वक्त किया जाता है.

बिबेक देबरॉय ने कहा, "न मिटने वाली स्याही लगाने का आज उठाया गया कदम अन्य लोगों को भी नोट बदलने का मौका दिलवाएगा..." गौरतलब है कि पिछले छह दिन में पुराने नोट बदलवा रहे लोगों के ज़रिये 45 अरब अमेरिकी डॉलर जितनी रकम बैंकों में जना हुई है. सो, बिबेक देबरॉय ने कहा, "कुछ समय के लिए दिक्कतें ज़रूर आ रही हैं, लेकिन आगे चलकर लंबे समय तक इस कदम से फायदा होगा, क्योंकि इससे वह पैसा भी सिस्टम में वापस शामिल हो जाएगा, जो अब तक लोगों के घरों में पड़ा था..."

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