नई दिल्ली:
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को रविवार रात को 'कार्डियक अरेस्ट' होने की ख़बर मिली, जिसके बाद कहा जाने लगा कि उन्हें 'दिल का दौरा' पड़ा है, लेकिन दिल का दौरा पड़ना दरअसल हार्ट अटैक कहलाता है, और कार्डियक अरेस्ट इससे अलग और ज़्यादा खतरनाक साबित हो सकता है. आइए, समझते हैं, दोनों में क्या अंतर है...
हार्ट अटैक या मायोकार्डियल इन्फ्रैक्शन तब होता है, जब शरीर की कोरोनरी आर्टरी (धमनी) में अचानक गतिरोध पैदा हो जाता है. इस आर्टरी से हमारे हृदय की पेशियों तक खून पहुंचता है, और जब वहां तक खून पहुंचना बंद हो जाता है, तो वे निष्क्रिय हो जाती हैं, यानी हार्ट अटैक होने पर दिल के भीतर की कुछ पेशियां काम करना बंद कर देती हैं. धमनियों में आए इस तरह आई ब्लॉकेज को दूर करने के लिए कई तरह के उपचार किए जाते हैं, जिनमें एंजियोप्लास्टी, स्टंटिंग और सर्जरी शामिल हैं, और कोशिश होती है कि दिल तक खून पहुंचना नियमित हो जाए.
दूसरी ओर, कार्डियक अरेस्ट तब होता है, जब दिल के अंदर वेंट्रीकुलर फाइब्रिलेशन पैदा हो. आसान भाषा में कहें तो इसमें दिल के भातर विभिन्न हिस्सों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान गड़बड़ हो जाता है, जिसकी वजह से दिल की धड़कन पर बुरा असर पड़ता है. स्थिति पूरी तरह बिगड़ने पर दिल की धड़कन रुक जाती है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है. कार्डियक अरेस्ट के इलाज के लिए मरीज को कार्डियोपल्मोनरी रेसस्टिसेशन (सीपीआर) दिया जाता है, जिससे उसकी उसकी हृदयगति को नियमित किया जा सके. मरीज को 'डिफाइब्रिलेटर' से बिजली का झटका दिया जाता है, जिससे दिल की धड़कन को नियमित होने में मदद मिलती है.
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वैसे, जिन लोगों को पहले से दिल की बीमारी हो, उनमें कार्डियक अरेस्ट होने की आशंका ज़्यादा रहती है. जिन लोगों को पहले हार्ट अटैक हो चुका हो, उनमें कार्डियक अरेस्ट की आशंका बढ़ जाती है. अगर किसी के परिवार में दिल की बीमारी का इतिहास रहा है, तो भी उन्हें सावधान रहना चाहिए.
हार्ट अटैक या मायोकार्डियल इन्फ्रैक्शन तब होता है, जब शरीर की कोरोनरी आर्टरी (धमनी) में अचानक गतिरोध पैदा हो जाता है. इस आर्टरी से हमारे हृदय की पेशियों तक खून पहुंचता है, और जब वहां तक खून पहुंचना बंद हो जाता है, तो वे निष्क्रिय हो जाती हैं, यानी हार्ट अटैक होने पर दिल के भीतर की कुछ पेशियां काम करना बंद कर देती हैं. धमनियों में आए इस तरह आई ब्लॉकेज को दूर करने के लिए कई तरह के उपचार किए जाते हैं, जिनमें एंजियोप्लास्टी, स्टंटिंग और सर्जरी शामिल हैं, और कोशिश होती है कि दिल तक खून पहुंचना नियमित हो जाए.
दूसरी ओर, कार्डियक अरेस्ट तब होता है, जब दिल के अंदर वेंट्रीकुलर फाइब्रिलेशन पैदा हो. आसान भाषा में कहें तो इसमें दिल के भातर विभिन्न हिस्सों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान गड़बड़ हो जाता है, जिसकी वजह से दिल की धड़कन पर बुरा असर पड़ता है. स्थिति पूरी तरह बिगड़ने पर दिल की धड़कन रुक जाती है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है. कार्डियक अरेस्ट के इलाज के लिए मरीज को कार्डियोपल्मोनरी रेसस्टिसेशन (सीपीआर) दिया जाता है, जिससे उसकी उसकी हृदयगति को नियमित किया जा सके. मरीज को 'डिफाइब्रिलेटर' से बिजली का झटका दिया जाता है, जिससे दिल की धड़कन को नियमित होने में मदद मिलती है.
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वैसे, जिन लोगों को पहले से दिल की बीमारी हो, उनमें कार्डियक अरेस्ट होने की आशंका ज़्यादा रहती है. जिन लोगों को पहले हार्ट अटैक हो चुका हो, उनमें कार्डियक अरेस्ट की आशंका बढ़ जाती है. अगर किसी के परिवार में दिल की बीमारी का इतिहास रहा है, तो भी उन्हें सावधान रहना चाहिए.
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