वित्त मंत्रालय ने 2018 के बजट में 13 साल बाद एक बार फिर स्टैंडर्ड डिडक्शन अर्थात मानक कटौती का लाभ लोगों को दिया. स्टैंडर्ड डिडक्शन वह कटौती या छूट है जो आपके निवेश और खर्च पर व्यक्तिगत तौर पर होती है. दरअसल यह वह रकम होती है, जिसे आपके अपनी आमदनी से सीधे-सीधे काटकर (घटाकर) अलग कर दी जाती है. बची हुई आमदनी पर ही टैक्स स्लैब के हिसाब से गणना की जाती है. 2005 के बजट से पहले तक इसका लाभ कर्मचारियों को मिलता रहा था लेकिन 2005 के बजट में इसे खत्म कर दिया गया.
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2018 के बजट के अनुसार स्टैंडर्ड डिडक्शन के तहत कर्मचारियों को उसके बेतन से 40 हजार रुपये घटाकर ही टैक्स देने होते थे. लेकिन सरकार ने इसके बदले में ट्रांसपोर्ट अलाउंस और मेडिकल रीइंबर्समेंट की सुविधा खत्म कर दी थी. लोगों को उस समय तक ट्रांसपोर्ट अलाउंस के तौर पर 19,200 रुपये पर टैक्स की छूट मिलती थी और मेडिकल रीइंबर्समेंट के रूप में 15,000 रुपये तक पर टैक्स से छूट मिलती थी. मतलब सरकार के इस फैसले से लोगों को कुल 5,800 रुपये पर ही टैक्स छूट का लाभ मिल पाया था. 2019 के बजट में स्टैंडर्ड डिडक्शन के सीमा को बढ़ाकर 50,000 हजार रुपये कर दिया था, जिसके बाद लोगों को राहत मिली.
उदाहरण में आप देख सकते हैं कि अगर आप का वेतन 8 लाख रुपये हैं तो स्टैंडर्ड डिडक्शन के बाद आपको 7.5 लाख रुपये पर ही टैक्स देने होंगे.स्टैंडर्ड डिडक्शन का लाभ पेंशनधारियों और वेतनधारी नागरिकों दोनों को ही समान रूप से मिलता है. इसके आ जाने के बाद लोगों को मेडिकल रीइंबर्समेंट और ट्रांसपोर्ट अलाउंस के अलग-अलग कागजों को जमा करने की समस्या से निजात मिल गई.
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