दुनियाभर में फैल चुके कोरोनावायरस और उससे होने वाले रोग COVID-19 के मद्देनज़र सीरोलॉजिकल सर्वे (Serological Survey) कराए जा रहे हैं. भारत में दिल्ली, मुंबई और पुणे जैसे शहरों में सीरो सर्वे कराए गए हैं, जिनके नतीजों में सामने आया है कि यहां ऐसे लोगों की बड़ी तादाद है, जिनके शरीर में कोविड-19 महामारी के खिलाफ एंटीबॉडी बन चुकी है. इसका मतलब है कि ये लोग महामारी फैलने के बाद कभी न कभी कोविड-19 के संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं और इनमें बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें संक्रमण का पता ही नहीं चला और वे ठीक भी हो चुके हैं.
बता दें कि पिछले गुरुवार को दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने दिल्ली में दूसरे राउंड के सीरो सर्वे की रिपोर्ट जारी की, जिसके मुताबिक, 29 फीसदी दिल्लीवासियों में एंटीबॉडी मिले. यानी, दिल्ली में लगभग 58 लाख लोगों में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी बनी पाई गई. इस सर्वे के लिए दिल्ली में 1 से 7 अगस्त तक सीरो सर्वे सैंपल लिए गए थे. पहले राउंड में सैंपल साइज 21,387 था, वहीं इस बार 15,000 लोगों के सैंपल लिए गए. मुंबई और पुणे में भी मिलते-जुलते नतीजे देखे गए हैं, जिसका अर्थ है कि देश में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जो वायरस की चपेट में आकर ठीक हो चुके हैं और उनके शरीर में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी का विकास हो चुका है.
संक्रामक रोगों के मामलों में इसलिए कराए जाते हैं सीरोलॉजिकल सर्वे...
क्या होता है सीरोलॉजिकल सर्वे...?
संक्रामक बीमारियों के संक्रमण को मॉनिटर करने के लिए सीरो सर्वे कराए जाते हैं. इन्हें एंटीबॉडी सर्वे भी कहते हैं. इसमें किसी भी संक्रामक बीमारी के खिलाफ शरीर में पैदा हुए एंटीबॉडी का पता लगाया जाता है. कोरोनावायरस या SARS-CoV-2 जैसे वायरस से संक्रमित मामलों में ठीक होने वाले मरीजों में एंटीबॉडी बन जाती है, जो वायरस के खिलाफ शरीर को प्रतिरोधक क्षमता देती है. बता दें कि कोरोनावायरस पहले से मौजूद रहा है, लेकिन SARS-CoV-2 इसी फैमिली का नया वायरस है, ऐसे में हमारे शरीर में पहले से इसके खिलाफ एंटीबॉडी नहीं है, लेकिन हमारा शरीर धीरे-धीरे इसके खिलाफ एंटीबॉडी बना लेता है.
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इस सर्वे में एक जनसंख्या विशेष (18 साल से अधिक उम्र के लोग) का ब्लड सैंपल, नेज़ल या थ्रोट स्वाब लिया जाता है. इसमें उनके सैंपल की जांच करने से पता चलता है कि उनके शरीर में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनी हैं या नहीं.
क्या होता है सीरो सर्वे का उद्देश्य...?
Indian Journal of Medical Research के मुताबिक, सीरो सर्वे से पता लगाया जाता है कि जिस बीमारी के लिए सर्वे किया जा रहा है, वह जनसंख्या में कितनी आम हो चुकी है. संक्रमण असल में कितना फैल रहा है और टेस्टिंग के आंकड़ों के मुकाबले ये आंकड़े कहां हैं. इससे पता चलता है कि बिना लक्षण के यह वायरस कितने लोगों में फैल रहा है और ऐसे संक्रमण के कितने मामले हैं, जो बिना सामने आए ठीक हो चुके हैं. इसमें कम्युनिटी ट्रांसमिशन और हर्ड इम्युनिटी का पता चलता है.
इसके साथ ही संक्रमण के फैलाव का सही-सही अनुमान लगने पर इससे बचाव को लेकर उचित कदम उठाने में मदद मिलती है.
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सीरो सर्वे के नतीजे
सीरो सर्वे में देखा जाता है कि कितने लोगों के शरीर में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बन चुकी हैं. एंटीबॉडी एक तरीके का प्रोटीन होता है, जो वायरस के प्रति शरीर को प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है. अमेरिका के सेंटर फॉर डिज़ीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की परिभाषा के अनुसार, सीरो सर्वे में लिए गए ब्लड सैंपल में पॉज़िटिव और नेगेटिव आते हैं. पॉज़िटिव आने का मतलब है कि व्यक्ति पहले वायरस के संक्रमण की चपेट में आ चुका है और उसके शरीर में वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है. यही प्रवृत्ति जब बड़ी जनसंख्या में दिखने लगती है, तो इसे हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं.
वहीं अगर टेस्ट निगेटिव आता है तो इसका मतलब हो सकता है कि या तो वह व्यक्ति वायरस की चपेट में कभी नहीं आया, या वायरस की चपेट में आने के बाद अभी इतना वक्त नहीं हुआ है कि उसके शरीर में एंटीबॉडी बनी हों. बता दें कि एक कोरोना मरीज़ के शरीर में एंटीबॉडी बनने में कम से कम एक से तीन हफ्ते का वक्त लगता है.
Video: दूसरी सीरो सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 29% दिल्लीवासियों में मिले एंटीबॉडी
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