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This Article is From Mar 18, 2016

जल विवाद - सुप्रीम कोर्ट की अवज्ञा पर दलों की मान्यता रद्द हो

जल विवाद - सुप्रीम कोर्ट की अवज्ञा पर दलों की मान्यता रद्द हो
सतलज-यमुना लिंक नहर (एसवाईएल), जिसका निर्माण 1986 में पूरा होना चाहिए था, के पानी को गंदा करके पंजाब की सत्ता हासिल करने के लिए नेताओं में होड़ मची है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद पंजाब विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से पारित नए प्रस्ताव से, देश एक बड़ी अराजकता की तरफ बढ़ रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना - हरियाणा ने अपने हिस्से की 92 किलोमीटर नहर पर वर्ष 1980 में ही काम पूरा कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित जनवरी, 2002 के पूर्ववर्ती आदेश से पंजाब को अपने हिस्से की 122 किलोमीटर नहर का काम एक साल में पूरा करना था, जिसे करने की बजाय अमरिंदर सिंह सरकार ने वर्ष 2004 में 'पंजाब समझौता निरस्तीकरण अधिनियम' पारित कर दिया, जिसकी वैधानिकता सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। चुनाव के पहले प्रकाश सिंह बादल सरकार ने नहर के लिए अधिग्रहीत 5,300 एकड़ ज़मीन को गैर-अधिसूचित करने के लिए 14 मार्च को विधानसभा से नया बिल पारित करवा दिया, जिसे राज्यपाल की स्वीकृति मिलने से पहले ही ज़मीन पर दलों द्वारा लागू कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने यथास्थिति बनाए रखने के लिए केंद्रीय गृह सचिव, पंजाब के मुख्य सचिव एवं डीजीपी को संयुक्त रिसीवर नियुक्त किया है, लेकिन इन्हें दरकिनार कर भू-माफिया द्वारा हज़ारों एकड़ ज़मीन पर कब्जा बदस्तूर जारी है।

संघीय व्यवस्था में राज्यों की मनमानी से अराजकता और जलसंकट - पंजाब पांच नदियों की भूमि है, जिस पर पूरे देश को नाज़ है, और वहां नौ लाख एकड़ ज़मीन के बंजर होने का खतरा दिखाकर नेताओं द्वारा इस प्रोजेक्ट का विरोध हो रहा है। इसके बेतुके जवाब में हरियाणा ने भी दिल्ली को पानी के लिए नई नहर बनाने के लिए कहा है। यदि पंजाब के नक्शेकदम पर अन्य राज्यों ने भी पुराने जल समझौतों को एकतरफा रद्द करना चालू कर दिया, तो राजस्थान जैसे राज्यों में भयानक जल संकट पैदा हो सकता है...

अंतरराष्ट्रीय जलसंधियां तथा नदियों को जोड़ने की परियोजना खतरे में - पंजाब-हरियाणा के झगड़े की जड़ में आज़ादी के बाद पाकिस्तान से वर्ष 1960 में हुआ समझौता है, जिसके अनुसार सिन्धु नदी का पानी पाकिस्तान को तथा सतलुज, रावी और व्यास का पानी अविभाजित पंजाब को मिलना था। 1966 में पंजाब और हरियाणा के विभाजित होने के बाद हरियाणा को उसके हिस्से का पानी दिलाने के लिए इस प्रोजेक्ट को बनाया गया था। पंजाब के अनुसार हरियाणा को यमुना का पानी मिल रहा है, इसलिए उसे इस प्रोजेक्ट से पानी मिलने का हक नहीं है। भारत के राज्य अगर ऐसा बर्ताव करेंगे तो भविष्य में चीन भी हिमालय से निकली नदियों पर अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर मनमानी कर सकता है। सतलुज-यमुना लिंक की 40 साल पुरानी परियोजना को अगर एकतरफा रद्द किया जाता है, तो नदियों को जोड़ने की बहुप्रचारित योजना कैसे सफल हो सकेगी, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2012 में आदेश दिए हैं...?

नेताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट की अवज्ञा पर दलों की मान्यता रद्द हो - पंजाब में अकाली-बीजेपी सरकार ने प्रदेश को ड्रग्स तथा अपराध के चंगुल में धकेल दिया है। चुनावों के पहले सुशासन के मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए पानी की राजनीति हो रही है, जिससे आतंकवाद फिर सिर उठा सकता है। जाट आंदोलन के दौरान मुनक नहर में अवरोध से दिल्ली में पानी संकट होने पर अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट के सामने गुहार लगानी पड़ी थी, लेकिन अब पंजाब में अराजकता का ढोल पीटने में वह सबसे आगे हैं। राजनीतिक दलों को भारतीय कानून के तहत चुनाव आयोग से मान्यता मिलती है।  संविधान, कानून तथा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उल्लंघन पर गौरवान्वित होने वाले दलों की मान्यता क्या रद्द नहीं होनी चाहिए...?

पंजाब, हरियाणा, राजस्थान राज्यों में सरकार चलाने वाली केंद्र की बीजेपी सरकार कानूनसम्मत कार्रवाई करने में विफल रही है। संविधान की शपथ लेने वाले नेताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का मखौल उड़ने के बाद यदि आम जनता भी ऐसा ही करना शुरू कर दे तो फिर देश में कानून का राज कैसे रहेगा...? क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जिम्मेदार नेताओं और दलों के विरुद्ध आपराधिक अवमानना की कार्रवाई करके नई मिसाल पेश करेगा...? इस पर हरियाणा ही नहीं, वरन पूरे देश की निगाह रहेगी...!

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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