भारतीय जनता पार्टी गुजरात में किसी तरह एक बार फिर से सत्ता बचाने में कामयाब हो गई और छठी बार अपनी सरकार बना ली. विजय रूपाणी भले ही दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले चुके हैं, मगर गुजरात चुनाव के नतीजों ने बीजेपी को सबक दे दी है कि अगर समय रहते नहीं चेते तो कांग्रेस का पलड़ा कभी भी भारी हो सकता है. चुनाव में बीजेपी 150 का मिशन लेकर चल रही थी, मगर नतीजे आने के बाद महज 99 सीटों पर सिमट जाना बीजेपी के लिए एक बड़ा धक्का था. यही वजह है कि नतीजे के पूर्व ही सीएम कैंडिडेट की घोषणा करने के बावजूद बीजेपी को विजय रूपाणी के नाम पर दोबारा माथा-पच्ची करने की जरूरत पड़ गई. गुजरात में जीत हासिल करने के कुछ दिनों तक मुख्यमंत्री के नाम को लेकर प्रदेश नेताओं से लेकर हाई कमान तक उहापोह की स्थिति बनी रही. इससे साफ प्रतीत होता है कि विजय रूपाणी को दोबारा सत्ता सौंपने से पहले बीजेपी ने पूरी तरह से अपने नफे-नुकसान का आंकलन किया होगा.
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खैर, पार्टी के आलाकमान ने भले ही रूपाणी पर दोबारा भरोसा जताया है, मगर उनके लिए ये डगर काफी मुश्किल है. क्योंकि अभी तक उनकी जो छवि रही है वो एक 'कार्यवाहक' मुख्यमंत्री के रूप में ही रही है. उन्हें उस तरह के कद्दावर नेता के रूप में नहीं जाना जाता जैसे मोदी, अमित शाह और केशुभाई पटेल जाने जाते रहे हैं. कुछ लोग गुजरात में बीजेपी के इस लचर प्रदर्शन के लिए विजय रूपाणी को ही जिम्मेवार मानते हैं. बावजूद इसके अगर पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है तो उम्मीद करिये कि उनके लिए ये कार्यकाल इतना आसान नहीं होने वाला है क्योंकि उनके सामने ऐसी कई चुनौतियां मुंह बाये खड़ी है, जिसका समाधान सीएम रूपाणी को निकालना होगा.
आंदोलन और उसके नेताओं को अपनी ओर करना या उन पर अंकुश लगाना
गुजरात की सत्ता से पीएम मोदी के बाहर निकलते ही सत्ता के विरोध में आवाज मुखर हुई है. पाटीदार आंदोलन और दलित आंदोलन ने कहीं न कहीं बीजेपी की वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है. इसी दौर में बीजेपी के खिलाफ युवा नेताओं मसलन हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी ने भी अपनी आवाज बुलंद की है और सत्ता से संघर्ष किया है. विजय रूपाणी की के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब यही होगी कि गुजरात में सत्ता के खिलाफ किसी तरह से आंदोलन न हो और कोई आंदोलन से नेता न निकले. क्योंकि आंदोलन अक्सर सत्ता के खिलाफ में ही होती है. इस लिहाज से सीएम रूपाणी को अपने कार्यकाल में युवा नेताओं को अपनी ओर लुभाना होगा या फिर उन पर किसी तरह का अंकुश लगाना होगा ताकि सत्ता विरोधी लहर कायम करने में वो विफल हो जाएं.
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युवाओं के बीच रोजगार को बढ़ाना
गुजरात के नतीजों में भले ही सत्ता विरोधी लहर की महज थोड़ी सी ही झलक देखने को मिली थी. मगर ये बात हकीकत है कि गुजरात में बेरोजगारी भी खूब बढ़ी है. अगर भाजपा के वोट शेयर में गिरावट दर्ज की गई है तो इसे युवाओं के बीच बेरोजगारी की समस्या से जोड़ कर देखा जाना चाहिए. सीएम रूपाणी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब ये होगी कि कैसे युवाओं को संतुष्ट किया जाए और अगर सरकार इसके लिए कुछ कदम उठाती है तो उसे सबसे पहले युवाओं में रोजगार को बढ़ावा देना होगा. विजय रूपाणी और नितिन पटेल नेतृत्व को ये सोचना होगा कि कैसे युवाओं के बीच के रोष को खत्म किया जाए और उन्हें कैसे रोजगार मुहैया कराई जाए. अगर विजय रूपाणी इस चुनौती को साधने में कामयाब हो जाते हैं तो उनकी कुर्सी पर किसी तरह के संशय की स्थिति नहीं रहेगी.
किसानों से संबंधित समस्याएं को दूर करना
गुजरात चुनाव के नतीजों में जिस तरह से बीजेपी को ग्रामीण इलाकों में कम वोट मिले, उसने पार्टी की नींद ही उड़ा दी. यही वजह भी है कि आलाकमान को विजय रूपाणी को दोबारा सत्ता की चाबी सौंपने में दिमाग लगाना पड़ा. नतीजों से ये कायास लगाए गये कि बीजेपी की सरकार से ग्रामीण इलाकों के किसान काफी दुखी हैं. नोटबंदी और जीएसटी से किसानों और मंझोले व्यापारियों पर काफी फर्क पड़ा. वहीं किसानों की कर्जमाफी के मुद्दे पर भी बीजेपी किसानों का वोट खोती नजर आई. इसलिए अब सीएम रूपाणी को ये सोचना होगा कि आखिर किसानों की समस्याओं को कैसे दूर किया जाए और राज्य भर के किसानों को बीजेपी के साथ लाने के लिए ऐसी कौन सी तरकीब अपनाई जाए.
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छोटे उद्योग-धंधों में आने वाली परेशानी को दूर करने का उपाए तलाशना
अगर गुजरात चुनाव के कैंपेन के दिनों को याद करें तो छोटे उद्योग धंधें करने वाले व्यापारियों में बीजेपी सरकार के खिलाफ जबरदस्त रोष देखने को मिले थे. जीएसटी की वजह से भी छोटे-मोटे व्यापारी बीजेपी से नाराज नजर आए. मगर अब जब बीजेपी को एक बार फिर से सत्ता मिल ही गई है तो राज्य में अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने के लिए छोटे-मोटे व्यापारियों की समस्याओं का हल निकालना होगा और विजय रूपाणी को छोटे उद्योग-धंधों में आने वाली परेशानी को दूर करने के ठोस उपाय तलाशने होंगे. इसके लिए विजय रूपाणी को पीएम मोदी कै जैसे विजन को अपनाना होगा और ये समझना होगा कि किस काम से कौन सा वर्ग खुश होगा.
गांव के स्तर पर पार्टी को मजबूत करना
गुजरात के ग्रामीण इलाकों में बीजेपी को कांग्रेस ने मात दे दिया है. गांव के स्तर पर बीजेपी इस बार कमजोर साबित हुई है और कांग्रेस ने बीजेपी को पछाड़ते हुए अपनी बढ़त बना ली है. इसलिए विजय रूपाणी के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती है कि ग्रामीण इलाकों में खोई हुई बीजेपी के जनाधार को वापस लाना और गांव के स्तर पर भी पार्टी को मजबूत बनाना. इसके लिए रूपाणी-पटेल नेतृत्व को अपनी योजनाओं के केंद्र में गांव और ग्रामीण लोगों को रखना होगा और उनकी समस्याओं को अपनी नीतियों में शामिल करना होगा. अपने विकास मॉडल में गांवों को भी प्रमुखता से जगह देनी होगी, तभी सीएम रूपाणी अपनी नैया पार लगाने में कामयाब हो पाएंगे.
ध्यान रहे कि इन्हीं समस्याओं ने गुजरात में बीजेपी को उहापोह की स्थिति में रखा था और सरकार विरोधी लहर की वजह से एक समय ऐसा भी आया कि ऐसा लगा कि इस बार गुजरात में बीजेपी अपना किला नहीं बचा पाएगी और कांग्रेस बाजी मार ले जाएगी.
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