प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक की प्रथा को उच्चतम न्यायालय ने भले ही 'गैरकानूनी और असंवैधानिक' करार दिया हो, लेकिन इस प्रथा की शिकार महिलाओं को अब भी 'पूरे इंसाफ' का इंतजार है. उनकी मांग है कि 'हिंदू विवाह कानून की तरह एक अच्छा कानून बनना चाहिए.' इन महिलाओं और उनके परिवार का कहना है कि हिंदू विवाह अधिनियम की तर्ज पर मुस्लिम विवाह को लेकर एक कानून को संहिताबद्ध किए बिना मुस्लिम महिलाओं का सशक्तीकरण नहीं हो सकता.
पढ़ें- उत्तर प्रदेश : तीन तलाक पीड़ित महिला ने मामला दर्ज कराया
दिल्ली की गुलशन परवीन के पति ने उन्हें एक बार में तीन तलाक दिया और उनको खुद से अलग कर दिया. गुलशन के लिए लड़ाई लड़ने वाले उनके भाई उस्मान अली इस बात से 'निराश' हैं कि सरकार ने कानून नहीं बनाने के संकेत दिए हैं. गुलशन का करीब चार साल पहले तलाक हुआ था और इसके बाद से वह और उनके भाई उस्मान कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.
उस्मान का कहना है, हिंदू विवाह कानून की तरह एक अच्छा कानून बनना चाहिए. अगर किसी औरत को तलाक देकर अलग कर दिया जाए तो वह अपना जीवन यापन कैसे करेगी. मुस्लिम समाज में तलाक के बाद महिलाएं धक्के खाने को मजबूर हो जाती हैं. अपनी बहन की परेशानी को देखा और झेला है इसलिए कह सकता हूं कि मुसलमान महिलाओं को हर हाल में इंसाफ मिलना चाहिए. यह इंसाफ कानून के जरिए ही मिल सकता है.’ तीन तलाक मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय में याचिकाकर्ता और पीड़िता आफरीन रहमान के मुताबिक कानून के बिना यह मामला पूरी तरह से हल नहीं हो सकता.
जयपुर की निवासी आफरीन ने कहा, 'न्यायालय ने सिर्फ तीन तलाक के मामले पर फैसला सुनाया है. तीन तलाक के अलावा निकाह हलाला, बहुविवाह और गुजारा भत्ता के मामले अभी अनसुलझे हैं. इनको कानून के जरिए ही हल किया जा सकता है.' आफरीन की अगस्त, 2014 में शादी हुई थी और जनवरी, 2016 में उनके पति ने उन्हें एक बार में तीन तलाक दिया. कई महीनों की दिक्कत का सामना करने के बाद उन्होंने देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि सरकार एक कानून बनाए जिसमें मुस्लिम महिलाओं से जुड़े मुद्दे शामिल हों. कानून बनने के बाद ही पूरा इंसाफ मिलेगा.' रिश्ते में आफरीन की बहन और ‘नेशनल मुस्लिम वूमेन वेलफेयर सोसायटी’ की उपाध्यक्ष नसीम अख्तर ने अपनी बहन की इस लड़ाई में पूरा साथ दिया और मामले को उच्चतम न्यायालय तक लेकर गईं नसीम ने कहा, 'देश में हर समुदाय के शादी से जुड़े कानून हैं। जब सबके लिए कानून है तो हमारे लिए क्यों नहीं हो? हम सिर्फ एक ऐसा कानून चाहते हैं जिससे मुस्लिम महिलाओं का भला हो.'
VIDEO : कितना लागू हो पाएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला, पत्नी की 3 बार तलाक देकर किया अलग
सरकार की ओर से कानून की जरूरत नहीं होने का संकेत दिए जाने के संदर्भ में नसीम ने कहा, 'सरकार के लोगों ने यह जरूर कहा है, लेकिन हम झुकने वाले नहीं है. हम कानून बनाने की मांग जारी रखेंगे और इसके लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे.' उच्चतम न्यायालय ने पिछले महीने एक बार में तीन तलाक की प्रथा को ‘गैरकानूनी और असंवैधानिक’ करार दिया था.
तीन तलाक के मामले पर लड़ाई की अगुवाई करने वाले संगठन 'भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन' की संस्थापक जकिया सोमान ने से कहा, 'न्यायालय ने तीन तलाक को रद्द कर दिया. अब इसके आगे क्या? आगे की चीजों का क्रियान्वयन कौन करेगा? यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह हमें कानून की सुरक्षा दे जैसे हिंदू महिलाओं को कानून के जरिए सुरक्षा मिली हुई है इसलिए हम चाहते हैं कि सरकार कानून बनाए.'
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दिल्ली की गुलशन परवीन के पति ने उन्हें एक बार में तीन तलाक दिया और उनको खुद से अलग कर दिया. गुलशन के लिए लड़ाई लड़ने वाले उनके भाई उस्मान अली इस बात से 'निराश' हैं कि सरकार ने कानून नहीं बनाने के संकेत दिए हैं. गुलशन का करीब चार साल पहले तलाक हुआ था और इसके बाद से वह और उनके भाई उस्मान कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.
उस्मान का कहना है, हिंदू विवाह कानून की तरह एक अच्छा कानून बनना चाहिए. अगर किसी औरत को तलाक देकर अलग कर दिया जाए तो वह अपना जीवन यापन कैसे करेगी. मुस्लिम समाज में तलाक के बाद महिलाएं धक्के खाने को मजबूर हो जाती हैं. अपनी बहन की परेशानी को देखा और झेला है इसलिए कह सकता हूं कि मुसलमान महिलाओं को हर हाल में इंसाफ मिलना चाहिए. यह इंसाफ कानून के जरिए ही मिल सकता है.’ तीन तलाक मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय में याचिकाकर्ता और पीड़िता आफरीन रहमान के मुताबिक कानून के बिना यह मामला पूरी तरह से हल नहीं हो सकता.
जयपुर की निवासी आफरीन ने कहा, 'न्यायालय ने सिर्फ तीन तलाक के मामले पर फैसला सुनाया है. तीन तलाक के अलावा निकाह हलाला, बहुविवाह और गुजारा भत्ता के मामले अभी अनसुलझे हैं. इनको कानून के जरिए ही हल किया जा सकता है.' आफरीन की अगस्त, 2014 में शादी हुई थी और जनवरी, 2016 में उनके पति ने उन्हें एक बार में तीन तलाक दिया. कई महीनों की दिक्कत का सामना करने के बाद उन्होंने देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि सरकार एक कानून बनाए जिसमें मुस्लिम महिलाओं से जुड़े मुद्दे शामिल हों. कानून बनने के बाद ही पूरा इंसाफ मिलेगा.' रिश्ते में आफरीन की बहन और ‘नेशनल मुस्लिम वूमेन वेलफेयर सोसायटी’ की उपाध्यक्ष नसीम अख्तर ने अपनी बहन की इस लड़ाई में पूरा साथ दिया और मामले को उच्चतम न्यायालय तक लेकर गईं नसीम ने कहा, 'देश में हर समुदाय के शादी से जुड़े कानून हैं। जब सबके लिए कानून है तो हमारे लिए क्यों नहीं हो? हम सिर्फ एक ऐसा कानून चाहते हैं जिससे मुस्लिम महिलाओं का भला हो.'
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सरकार की ओर से कानून की जरूरत नहीं होने का संकेत दिए जाने के संदर्भ में नसीम ने कहा, 'सरकार के लोगों ने यह जरूर कहा है, लेकिन हम झुकने वाले नहीं है. हम कानून बनाने की मांग जारी रखेंगे और इसके लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे.' उच्चतम न्यायालय ने पिछले महीने एक बार में तीन तलाक की प्रथा को ‘गैरकानूनी और असंवैधानिक’ करार दिया था.
तीन तलाक के मामले पर लड़ाई की अगुवाई करने वाले संगठन 'भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन' की संस्थापक जकिया सोमान ने से कहा, 'न्यायालय ने तीन तलाक को रद्द कर दिया. अब इसके आगे क्या? आगे की चीजों का क्रियान्वयन कौन करेगा? यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह हमें कानून की सुरक्षा दे जैसे हिंदू महिलाओं को कानून के जरिए सुरक्षा मिली हुई है इसलिए हम चाहते हैं कि सरकार कानून बनाए.'
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