यह ख़बर 12 जून, 2013 को प्रकाशित हुई थी

उत्तराखंड में विजय बहुगुणा सरकार पर संकट

खास बातें

  • उत्तराखंड में पांच असंतुष्ट विधायकों के मुख्यमंत्री द्वारा आहूत बैठक का बहिष्कार कर देने के मद्देनजर 15 महीने पुरानी विजय बहुगुणा सरकार में बुधवार को संकट गहरा गया। सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस ने इसे मुख्यमंत्री का ‘अपमान’ करार देते हुए इसकी आलोचना की है।
देहरादून:

उत्तराखंड में पांच असंतुष्ट विधायकों के मुख्यमंत्री द्वारा आहूत बैठक का बहिष्कार कर देने के मद्देनजर 15 महीने पुरानी विजय बहुगुणा सरकार में बुधवार को संकट गहरा गया। सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस ने इसे मुख्यमंत्री का ‘अपमान’ करार देते हुए इसकी आलोचना की है।

कांग्रेस विधायक हरीश धामी ने चेतावनी दी थी कि यदि उनकी शिकायतों को 15 दिन के भीतर दूर नहीं किया गया तो वह त्यागपत्र दे देंगे। इस पर चार और विधायक उनके साथ हो गए। इसके बाद बहुगुणा ने गत सोमवार को उनकी शिकायतें सुनने के लिए बैठक बुलाई थी।

विधायकों ने सचिवालय में बैठक के आमंत्रण को खारिज करते हुए इसकी बजाय राज्य के खेल मंत्री एवं केंद्रीय मंत्री हरीश रावत के नजदीकी माने जाने वाले दिनेश अग्रवाल से उनके आवास पर मुलाकात की और अपनी शिकायतें बतायीं।

बहुगुणा की बैठक का बहिष्कार ऐसे समय में किया गया है जब हरिद्वार से सांसद रावत असंतुष्टों को शांत करने और संकट को समाप्त करने के मुख्यमंत्री के अनुरोध पर गत तीन दिन से यहां पर रुके हुए हैं।

इस बीच प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धीरेंद्र प्रताप ने पांच विधायकों द्वारा बैठक के बहिष्कार को मुख्यमंत्री का अपमान करार देते हुए मांग की कि उनमें से तीन विधायकों को सरकार के वे पद छोड़ देने चाहिए जिन पर वे बने हुए हैं।

वह मयूख महार, हिमेश खरवाल और मनोज तिवारी का उल्लेख कर रहे थे जो सरकार में कैबिनेट स्तरीय पद पर बने हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यदि उनका मुख्यमंत्री में कोई विश्वास नहीं है तो उन्हें पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।’’

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महार राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष हैं जबकि खरकवाल और मनोज तिवारी संसदीय सचिव हैं। रोचक बात यह है कि वे कुमायूं क्षेत्र स्थित विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे रावत का गढ़ माना जाता हैं और जिन्होंने मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद पाल रखी थी।