वाराणसी में तैनात NDTV संवाददाता अजय सिंह ने बताया कि बीजेपी और योगी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं हैं.
उनके शासनकाल में कानून-व्यवस्था ठीक रही, लोगों कोविड काल में मुफ्त राशन मिला, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो रहा है, बीजेपी और संघ का संगठन मजबूत है. ये सभी मुद्दे बीजेपी को लाभ पहुंचा सकते हैं लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीजेपी के खिलाफ जातीय समीकरण को मजबूत गठजोड़ बनाया है. उन्होंने चुनावी घोषणा पत्र में ऐलान किया है कि उनकी सरकार बनी तो वो राज्य में पुरानी पेंशन लागू करेंगे, सेना में भर्ती कराएंगे, अन्य विभागों में नौकरियां देंगे, सभा घरों को 300 यूनिट बिजली फ्री देंगे. किसानों और लड़कियों की शिक्षा पर जोर देंगे.
संकेत उपाध्याय ने बताया कि 2012 में सपा का नारा था- उम्मीद की साइकिल लेकिन 2022 में उसका नारा है- नई हवा है, नई सपा है. सौरव शुक्ला ने बताया कि पहले चरण के चुनाव में हिजाब मुद्दे का नरेटिव गढ़ा गया लेकिन अब वो सोशल मीडिया और मीडिया से गायब है. अब यूक्रेन का मुद्दा छाया हुआ है. उन्होंने बताया कि पश्चिमी यूपी में हिजाब विवाद ने कोई कमाल नहीं किया इसलिए बाद में बीजेपी ने उस नरेटिव को बदल दिया.
UP Election 2022: सपा के गढ़ आजमगढ़ में क्या BJP बढ़ा पाएगी अपनी सीटें, क्या हैं सियासी समीकरण?
पूरे चुनाव में बीजेपी और सपा ने अपनी चुनावी प्रचार की रणनीति बहुत मजबूत और संवेदनशील रखी, इसके तहत जातीय किलेबंदी की गई. बीजेपी को लाभार्थियों से जितना लाभ मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है, लोग बेरोजगारी को मुद्दा मानकर वोटिंग कर रहे हैं. कोविड की वजह से तीन सालों से सेना की भर्ती रुकी पड़ी है. इससे यूपी के युवा नाराज दिखे. हालांकि, पूरे चुनाव में महिलाओं का वोट बढ़ा है. बेरोजगार युवा अपनी मां को वोटिंग के लिए प्रभावित कर सकता है.--
पश्चिम में जब बीजेपी का हिन्दू मुस्लिम कार्ड नहीं चला तो पूरब तक आते-आते बीजेपी कानून व्यवस्था के मुद्दे पर आ गई. अब लोगों के जेहन में यह मुद्दा भी घर कर गया है. बीजेपी लोगों को यह समझाने में कुछ हद तक कामयाब रही कि सपा की सरकार आने पर कहीं गुंडागर्दी वापस न आ जाए? हालांकि, पूरे चुनाव के दौरान बीजेपी नौकरी के नाम पर सीधा जवाब देने से बचती रही और उसके नेता लोगों को सुरक्षा देने की बात कहते नजर आए..
पूर्वांचल में गांव-गांव तक लोग एक स्क्रिप्टेड बात कर रहे हैं. बीजेपी की स्क्रिप्टेड नरेटिव गांव-गांव देखने को मिला. 2017 के चुनाव के वक्त 10 में से आठ लोग बीजेपी के समर्थक थे और खुलकर बीजेपी के पक्ष में बोलते थे. वो भी दबी जुबान में ही बीजेपी का समर्थन करते थे लेकिन इस बार वह आंकड़ा 6-4 पर टिका रहा. इस बार राज्यभर में बीजेपी के खिलाफ खुलकर नाराजगी देखी गई लेकिन वह नाराजगी वोट में तब्दील होती है या नहीं? यह 10 मार्च को ही पता चल सकेगा..
प्रयागराज में बड़ी संख्या में विद्यार्थी अपने-अपने गांवों को जाते दिखे और सपा के पक्ष में नारेबाजी करते दिखे. कई मजदूर जो सरकार के मुफ्त राशन से लाभान्वित हुए थे. बावजूद इसके वो आवारा पशुओं का मुद्दा उठाते देखे गए और कहते मिले कि इतना राशन से क्या होगा, पूरा खेत तो आवारा पशु चर जाते हैं. अगर बीजेपी सत्ता से गई तो उसकी वजहों में सांड भी एक बड़ा कारण होगा.
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संकेत उपाध्याय ने बताया कि 2012 के चुनावों में सपा को 29 फीसदी वोट मिले थे. 2017 में यह घटकर 21 फीसदी हो गया लेकिन इस बार उन्हें 30 से 32 फीसदी तक वोट मिल सकते हैं. 2017 में बीजेपी को 39.5 फीसदी वोट मिले थे. इस बार वह घट सकता है. बीजेपी का गढ़ समझे जाने वाले शहरी क्षेत्रों में पोलिंग कम हुई है लेकिन ग्रामीण इलाकों में पोलिंग बढ़ी है. खासकर देवबंद, मुजफ्फरनगर के इलाकों में वोटिंग बढ़ी.
दलितों ने पिछली बार बीजेपी को वोट दिया था लेकिन इस बार कुरेदने पर उन लोगों ने बदलाव के संकेत दिए. दलित युवकों ने बेरोजगारी का मुद्दा जोर-शोर से उठाया. जो लोग ओवरएज हो गए, वो बड़ा तबका बीजेपी से बहुत नाराज दिखा..
केंद्र सरकार के जिन उपक्रमों का निजीकरण हो रहा है, उसके कर्मचारी बीजेपी से नाराज दिखे. उन्हें लगता है कि किसानों की तरह अडिग रहना होगा और अगर यूपी में सत्ता परिवर्तन होता है तो सरकार अपने फैसले पर विचार कर सकती है.
2017 के चुनावों में 120 से 125 सीटें ऐसी थीं, जहां जीत का मार्जिन 500 से लेकर 15,000 से कम मत था. ऐसे में अगर वो वोट सपा की तरफ खिसके तो कई सीटों पर खेल बदल सकता है. सभी चुनावों में आक्रामक रहने वाली बीजेपी इस बार रक्षात्मक मोड में पूरे चुनाव में नजर आई.
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