यूक्रेन पर आक्रमण को लेकर रूस से तेल आयात पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिया है. व्हाइट हाउस ने इससे पहले कहा था कि यूक्रेन पर बिना किसी वजह और अनुचित युद्ध के लिए रूस को जवाबदेह ठहराने के लिए कार्रवाई की घोषणा करने के लिए राष्ट्रपति कार्रवाई करेंगे. दरअसल, बाइडेन प्रशासन पर रूस के खिलाफ कार्रवाई के लिए अमेरिकी सांसदों की ओर से भारी दबाव है. ब्रिटेन की कंपनी शेल ने भी रूस से तेल न खरीदने का निर्णय़ पहले ही कर लिया है. वो रूस में अपने सारे पेट्रोल पंप बंद करने का भी निर्णय़ कर चुकी है. अमेरिका ने एनर्जी सेक्टर की कंपनी गज़प्रोम और 12 अन्य कंपनियों को पश्चिमी वित्तीय बाजारों में पूंजी जुटाने पर भी रोक लगा दी है.
अमेरिकी पाबंदियों के तहत स को रक्षा और विमानन टेक्नोलॉजी निर्यात पर रोक और यूक्रेन पर क्रेमलिन के हमले का समर्थन करने और सहायता करने के आरोपी 24 बेलारूस नेताओं और संगठनों को भी प्रतिबंधित करना शामिल है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि यूक्रेन पर रूस का हमला केवल इस देश (यूक्रेन) पर हमला नहीं है, बल्कि यूरोप और वैश्विक शांति पर हमला है. अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई अन्य देशों ने भी रूस पर प्रतिबंधों का ऐलान किया है.
रूस में पेट्रोलियम पदार्थों के अमेरिकी आयात का 10 फीसदी से भी कम हिस्सा है. इसमें कोलंबिया विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ ग्लोबल एनर्जी पॉलिसी के एक रिसर्च स्कॉलर बताते हैं कि यूएस एनर्जी में इस छोटे हिस्से रूसी तेल की वजह से आयातों पर प्रतिबंध लगाने के लिए किसी और की तुलना में अमेरिका के लिए यह आसान है. तेल की कीमतों में 30 प्रतिशत बढ़ोतरी पहले ही हो चुकी है.
अमेरिकन ऑटोमोबाइल एसोसिएशन के अनुसार, अमेरिकी गैसोलीन की कीमतें सोमवार को औसतन $4.07 प्रति गैलन रहीं. एक महीने पहले की तुलना में $0.62 की बढ़ोतरी और 1 साल पहले के स्तर से 47 प्रतिशत ज्यादा हैं. वाशिंगटन और ब्रुसेल्स ने मॉस्को पर कड़े वित्तीय प्रतिबंध लगाए हैं. इसका मकसद देश को वैश्विक अर्थव्यवस्था से अलग करना और धन की आपूर्ति को बंद करना था. वहीं रूस का कहना है कि उसके तेल पर प्रतिबंध लगाया गया तो वो गैस की आपूर्ति बंद कर सकता है. आर्थिक प्रतिबंधों के कारण तेल के दाम 300 डॉलर प्रति बैरल तक भी पहुंच सकते हैं.
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