संसद में बीजेपी और कांग्रेस लगातार पोस्टर लेकर आ रहे हैं
नई दिल्ली:
सोमवार को होने वाली सर्वदलीय बैठक में शामिल होने के लिए कांग्रेस की शर्त है कि अगर बैठक का एजेंडा बीजेपी के तीन नेताओं पर कार्रवाई के मुद्दे पर होगी तभी वह इसमें शामिल होगी। ये बैठक सरकार की तरफ से बुलायी जा रही है। कांग्रेस लोकसभा स्पीकर की बुलाई सर्वदलीय बैठक में तो शामिल होती रही है, लेकिन सरकार की तरफ से बुलायी गई इस तरह की बैठकों से वह कतराती रही है। सोमवार की बैठक के लिए राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस महासचिव ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस की स्थिति साफ कर दी है।
सर्वदलीय बैठक सोमवार 12 बजे होगी। इससे पहले कांग्रेस ने अपनी संसदीय दल की जेनरल बॉडी मीटिंग बुलाई है। इसमें कांग्रेस के लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसद हिस्सा लेंगे। ख़ुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इसे संबोधित करेंगी। इसमें इस बात की समीक्षा होगी कि ललितगेट और व्यापमं को लेकर मोदी सरकार को घेरने की कांग्रेस की अब तक की रणनीति कितना कारगर साबित हुई है और इसे किस तरह से आगे ले जाया जाए।
पिछले हफ्ते स्पीकर की टेबल कर प्लेकार्ड लहराकर हंगामा करने के बाद लोकसभा की उस दिन की बाकी कार्यवाही से बाहर कर दिए कांग्रेसी सांसद अधीर रंजन चौधरी ने एनडीटीवी से कहा कि हमारा अगला क़दम क्या होगा ये सरकार का रव्वैया देखने के बाद तय होगा। हालांकि उन्होंने ये भी जोड़ा कि इस बाबत सोमवार सुबह जेनरल बॉडी मींटिंग में पार्टी अपनी रणनीति तय करेगी।
इस बीच संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने कहा है कि वे आरोप प्रत्यारोप में नहीं पड़ना चाहते और कांग्रेस से अपील करते हैं कि वो संसद को चलने दे। वेंकैया ने ये भी दोहराया कि सुषमा स्वराज बड़ी नेता हैं और उन्होंने कोई ग़लत काम नहीं किया है। संसद को रोक कर कांग्रेस देश की तरक्की रोक रही है।
सरकार की कोशिश है कि वह विपक्षी एकता में दरार ख़बरों को हवा देकर कांग्रेस को अलग-थलग दिखाने की कोशिश करे। जबकि कांग्रेस अंदर ही अंदर ये जानने के बाद भी सरकार से दो दो हाथ कर रही है कि खासतौर पर सुषमा स्वराज के इस्तीफ़े के सवाल पर कई विपक्षी पार्टियां पहले दिन से ही उसका साथ नहीं दे रही हैं। इनमें समाजवादी पार्टी तो खुलेआम कह चुकी है कि वो कांग्रेस के पीछे पीछे चलने वाली पार्टी नहीं है। उसके अपने मुद्दे हैं जिन पर सरकार से उनका विरोध है।
समाजवादी पार्टी के अलावा आरजेडी, जेडीयू जैसी पार्टियां संसद के वेल में जातीय जनगणना को जारी करने की मांग के साथ आती हैं। इसी तरह टीएमसी के सांसद तेलंगाना के लिए अलग हाईकोर्ट जल्द बनाने की मांग के साथ, लेकिन शोरगुल में सब कुछ साफ साफ सुनाई नहीं पड़ता और मुद्दों का प्लेकार्ड लोकसभा टीवी पर दिखाई नहीं पड़ता। लिहाज़ा विपक्षी सांसदों का हंगामा एक सुर में मान लिया जाता है जो कि स्थिति है नहीं।
कांग्रेस विरोध और गतिरोध को लेकर जहां तक पहुंच गई है वहां से वह खाली हाथ लौटने का ख़तरा नहीं ले सकती। कुछ दूसरी विपक्षी पार्टियों को सरकार साध भी ले और वे खामोश हो जाएं तो भी कांग्रेस अपने क़दम पीछे नहीं खींच सकती। आख़िरकार वह 44 सांसदों के साथ ही सही सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी की भूमिका निभाने की ज़िम्मेदारी भी अपने सिर पर लेकर चल रही है। वह अपना विरोध छोड़ दे, क्योंकि कुछ दूसरी विपक्षी पार्टियां ऐसा कर रही हैं, कांग्रेस के कई रणनीतिकारों को ये आत्मघाती लगता है। ऐसे में कांग्रेस के तने रहने की पूरी उम्मीद है।
21 जुलाई से शुरू हुए मॉनसून सत्र का आधा समय बीत चुका है लेकिन संसद में 12 दिनों से जारी गतिरोध टूट नहीं पा रहा है। सत्ताधारी पार्टी बीजेपी कहती है कि संसद ने चलने के लिए कांग्रेस ज़िम्मेदार है, जबकि कांग्रेस की लाइन है कि संसद चलाना सरकार की ज़िम्मेदारी है और संसद में कामकाज सुनिश्चित करने के लिए उसे विपक्ष की बात सुननी चाहिए।
बीजेपी कहती है कि सरकार बहस को तैयार है, लेकिन कांग्रेस बहस से भाग रही है जबकि कांग्रेस कहती है पहले एक्शन हो तब डिस्कशन हो। यानि सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान पर कार्रवाई की बात के बाद ही वह संसद चलने देगी।
आक्रामण ही बचाव का सबसे अच्छा रास्ता है की नीति पर चलती हुई बीजेपी कांग्रेस के नेताओं, मुख्यमंत्रियों और यहां तक की प्रियंका गांधी और उनके पति रॉबर्ट वाड्रा पर भी हमले कर चुकी है। वो कांग्रेस के गतिरोध को संसद के बाकी सदस्यों के हक़ों को मारने वाला भी करार देती है। लेकिन कांग्रेस बीजेपी को उसके विपक्ष के दिनों की याद दिलाती है जब कई मौक़े पर बीजेपी ने संसद को नहीं चलने दिया।
सर्वदलीय बैठक सोमवार 12 बजे होगी। इससे पहले कांग्रेस ने अपनी संसदीय दल की जेनरल बॉडी मीटिंग बुलाई है। इसमें कांग्रेस के लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसद हिस्सा लेंगे। ख़ुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इसे संबोधित करेंगी। इसमें इस बात की समीक्षा होगी कि ललितगेट और व्यापमं को लेकर मोदी सरकार को घेरने की कांग्रेस की अब तक की रणनीति कितना कारगर साबित हुई है और इसे किस तरह से आगे ले जाया जाए।
पिछले हफ्ते स्पीकर की टेबल कर प्लेकार्ड लहराकर हंगामा करने के बाद लोकसभा की उस दिन की बाकी कार्यवाही से बाहर कर दिए कांग्रेसी सांसद अधीर रंजन चौधरी ने एनडीटीवी से कहा कि हमारा अगला क़दम क्या होगा ये सरकार का रव्वैया देखने के बाद तय होगा। हालांकि उन्होंने ये भी जोड़ा कि इस बाबत सोमवार सुबह जेनरल बॉडी मींटिंग में पार्टी अपनी रणनीति तय करेगी।
इस बीच संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने कहा है कि वे आरोप प्रत्यारोप में नहीं पड़ना चाहते और कांग्रेस से अपील करते हैं कि वो संसद को चलने दे। वेंकैया ने ये भी दोहराया कि सुषमा स्वराज बड़ी नेता हैं और उन्होंने कोई ग़लत काम नहीं किया है। संसद को रोक कर कांग्रेस देश की तरक्की रोक रही है।
सरकार की कोशिश है कि वह विपक्षी एकता में दरार ख़बरों को हवा देकर कांग्रेस को अलग-थलग दिखाने की कोशिश करे। जबकि कांग्रेस अंदर ही अंदर ये जानने के बाद भी सरकार से दो दो हाथ कर रही है कि खासतौर पर सुषमा स्वराज के इस्तीफ़े के सवाल पर कई विपक्षी पार्टियां पहले दिन से ही उसका साथ नहीं दे रही हैं। इनमें समाजवादी पार्टी तो खुलेआम कह चुकी है कि वो कांग्रेस के पीछे पीछे चलने वाली पार्टी नहीं है। उसके अपने मुद्दे हैं जिन पर सरकार से उनका विरोध है।
समाजवादी पार्टी के अलावा आरजेडी, जेडीयू जैसी पार्टियां संसद के वेल में जातीय जनगणना को जारी करने की मांग के साथ आती हैं। इसी तरह टीएमसी के सांसद तेलंगाना के लिए अलग हाईकोर्ट जल्द बनाने की मांग के साथ, लेकिन शोरगुल में सब कुछ साफ साफ सुनाई नहीं पड़ता और मुद्दों का प्लेकार्ड लोकसभा टीवी पर दिखाई नहीं पड़ता। लिहाज़ा विपक्षी सांसदों का हंगामा एक सुर में मान लिया जाता है जो कि स्थिति है नहीं।
कांग्रेस विरोध और गतिरोध को लेकर जहां तक पहुंच गई है वहां से वह खाली हाथ लौटने का ख़तरा नहीं ले सकती। कुछ दूसरी विपक्षी पार्टियों को सरकार साध भी ले और वे खामोश हो जाएं तो भी कांग्रेस अपने क़दम पीछे नहीं खींच सकती। आख़िरकार वह 44 सांसदों के साथ ही सही सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी की भूमिका निभाने की ज़िम्मेदारी भी अपने सिर पर लेकर चल रही है। वह अपना विरोध छोड़ दे, क्योंकि कुछ दूसरी विपक्षी पार्टियां ऐसा कर रही हैं, कांग्रेस के कई रणनीतिकारों को ये आत्मघाती लगता है। ऐसे में कांग्रेस के तने रहने की पूरी उम्मीद है।
21 जुलाई से शुरू हुए मॉनसून सत्र का आधा समय बीत चुका है लेकिन संसद में 12 दिनों से जारी गतिरोध टूट नहीं पा रहा है। सत्ताधारी पार्टी बीजेपी कहती है कि संसद ने चलने के लिए कांग्रेस ज़िम्मेदार है, जबकि कांग्रेस की लाइन है कि संसद चलाना सरकार की ज़िम्मेदारी है और संसद में कामकाज सुनिश्चित करने के लिए उसे विपक्ष की बात सुननी चाहिए।
बीजेपी कहती है कि सरकार बहस को तैयार है, लेकिन कांग्रेस बहस से भाग रही है जबकि कांग्रेस कहती है पहले एक्शन हो तब डिस्कशन हो। यानि सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान पर कार्रवाई की बात के बाद ही वह संसद चलने देगी।
आक्रामण ही बचाव का सबसे अच्छा रास्ता है की नीति पर चलती हुई बीजेपी कांग्रेस के नेताओं, मुख्यमंत्रियों और यहां तक की प्रियंका गांधी और उनके पति रॉबर्ट वाड्रा पर भी हमले कर चुकी है। वो कांग्रेस के गतिरोध को संसद के बाकी सदस्यों के हक़ों को मारने वाला भी करार देती है। लेकिन कांग्रेस बीजेपी को उसके विपक्ष के दिनों की याद दिलाती है जब कई मौक़े पर बीजेपी ने संसद को नहीं चलने दिया।
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