पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और शिअद प्रमुख सुखबीर सिंह बादल सतलज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर मुद्दे को लेकर शनिवार को ट्विटर पर भिड़ गये और दोनों ने खुद को राज्य के सबसे बड़े हितैषी के तौर पर पेश किया. इसकी शुरुआत तब हुई जब शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष बादल ने शुक्रवार को एसवाईएल मुद्दे पर नयी दिल्ली में हुई पंजाब, हरियाणा और केंद्र सरकार के अधिकारियों की बैठक के मद्देनजर अपने ट्विटर हैंडल से मुख्यमंत्री को 'इस विवादास्पद मुद्दे को लेकर किसी भी दबाव में नहीं झुकने' के लिये चेतावनी देनी चाही.
There is no need for Punjab govt to participate in any meeting on the Sutlej Yamuna Link (SYL) canal. I warn Pb CM @capt_amarinder not to succumb to any pressure & bargain away the river waters of Punjab. The SAD stand is clear: Pb doesn't hv even a single drop of water to spare. pic.twitter.com/Vzvchytzhg
— Sukhbir Singh Badal (@officeofssbadal) August 16, 2019
इसके बाद मुख्यमंत्री सिंह ने अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर बादल को याद दिलाया कि उन्होंने ही पंजाब के हित की रक्षा की खातिर 2004 में अंतरराज्यीय जल बंटवारा समझौते को रद्द कर दिया था.
Ironic to see @officeofssbadal advising me on protecting Punjab's interests. It was I who brought in 'The Punjab Termination of Agreements Act, 2004', abrogating the inter-state agreement to protect Punjab. Let me not say more. Unlike you Punjab is always first for me. https://t.co/HbATpIQEbP
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) August 17, 2019
बता दें कि पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज यमुना के जल-बंटवारे को लेकर विवाद पिछले 50 साल से भी ज्यादा समय से गहराया हुआ है. पंजाब सरकार का कहना है कि राज्य में जल का स्तर बहुत कम है. अगर हम सतलुज-यमुना नहर के जरिए हरियाणा को पानी देते हैं तो पंजाब में पानी का संकट पैदा हो जाएगा. वहीं हरियाणा सरकार सतलुज के पानी पर अपना अधिकार जता रही है.
क्या है पूरा मामला
- 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के साथ विवाद शुरू
- 24 मार्च, 1976 - केंद्र सरकार का पानी बंटवारे का नोटिफिकेशन
- सतलुज, रावी और ब्यास नदी के पानी का बंटवारा होना था
- पंजाब ने इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी
- 31 दिसंबर, 1981 - पंजाब ने सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ली
- मुद्दा राजनीतिक हुआ, अकाली दल ने फ़ैसले के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला
- 8 अप्रैल, 1982 - इंदिरा गांधी ने नहर की नींव रख दी
- पंजाब में आतंकवादियों ने भी इसे मुद्दा बनाया
- 1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौता
- 1990 तक 750 करोड़ रुपये की लागत से नहर का एक बड़ा हिस्सा तैयार
- 15 जनवरी, 2002 - पंजाब को नहर का बाकी हिस्सा बनाने का निर्देश
- 2004 में पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट 2004 पास
- पंजाब सरकार के फ़ैसले को यूपीए सरकार ने राष्ट्रपति की राय के लिए भेजा
- राष्ट्रपति ने ये मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच के पास भेजा
- हरियाणा की पिछली हुड्डा सरकार ने इस मुद्दे पर जल्द सुनवाई के लिए कहा
- इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.
- पंजाब कैबिनेट ने नहर पर खर्च हरियाणा का पैसा लौटाने का फ़ैसला किया
- जिन लोगों जमीन ली गई उन्हें जमीन लौटाने का फैसला
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं