यह ख़बर 21 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

पर्यावरण कानूनों को बदलने की तैयारी, सुब्रमण्यम कमेटी की रिपोर्ट पर एनडीटीवी इंडिया का खुलासा

नई दिल्ली:

सरकार आने वाले दिनों में पर्यावरण से जुड़े कानून पूरी तरह से बदल सकती है। पर्यावरण से जुड़े नियमों की समीक्षा के लिए बनाई गई टीएसआर सुब्रमण्यम कमेटी की सिफारिशें यही कहती हैं। एनडीटीवी ने कमेटी की इन सिफारिशों का पता लगाया है।
 
कोयला खदानों के आवंटन के नियम हों, या घने जंगलों में माइनिंग के कानून, पर्यावरण मामलों की अदालत नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अधिकार हों या आदिवासी इलाकों में प्रोजेक्ट लगाने में जनसुनवाई के अधिकार, आने वाले दिनों में बहुत कुछ बदलने वाला है।
 
सरकार ने कुछ दिन पहले पूर्व ब्यूरोक्रेट टीएसआर सुब्रमण्यम की अगुवाई में कमेटी बनाई थी, जिसकी सिफारिशें कहती हैं कि पर्यावरण कानूनों और नियमों में भारी बदलाव होना चाहिए।
 
पर्यावरण मंत्रालय को दी रिपोर्ट में कमेटी ने जो कहा है उससे
 
1)      ग्रीन ट्रिब्यूनल के अधिकार कम होंगें
2)      किसी भी प्रोजेक्ट के खिलाफ सीधे ट्रिब्यूनल में शिकायत नहीं की जा सकती
3)      शिकायतकर्ता को पहले सरकार के पास जाना होगा
 
सुब्रहमण्यम कमेटी ने किसी भी प्रोजेक्ट में गंभीर उल्लंघन करने पर ही मुकदमा चलाए जाने की बात कही है। साथ ही उद्योग जगत की लंबे समय से चली आ रही वह मांग भी मांग ली है, जिसमें कंपनियां प्रोजेक्ट के लिए सेल्फ सर्टिफिकेशन यानी खुद अपने मूल्यांकन की मांग कर रही थीं।
 
कमेटी द्वारा सुझाए जा रहे कई बदलावों की कोशिश सरकार ने पहले ही शुरू कर दी थी। इसके बाद तीन महीने पहले पूर्व ब्यूरोक्रेट टीएसआर सुब्रमण्यम की अगुवाई में पांच सदस्यों की कमेटी बनाई गई। माना जा रहा है कि सरकार ने डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स की रफ्तार तेज़ करने के लिए इन बदलावों का मन बनाया है और इसी के तहत सुब्रमण्यम कमेटी ने सुझाव दिए हैं।

कमेटी के सुझाव मान लिए जाते हैं तो ज़्यादातर प्रोजेक्ट्स राज्य के स्तर पर ही पास कराए जाएंगे और उसके लिए केंद्र की सहमति की ज़रूरत नहीं होगी। खनन के लिए प्रतिबंधित ‘नो गो’ इलाकों को भी काफी सीमित किया जा रहा है। कई छोटे बड़े कानूनों को खत्म करके एक बड़ा वृहद पर्यावरण कानून बनेगा। कमेटी ने सरकार से जंगल की परिभाषा भी तय करने को कहा है, जिसे लेकर अभी कोई स्पष्टता नहीं है।

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