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This Article is From Dec 25, 2017

इसी हफ्ते लोकसभा में पेश होगा ट्रिपल तलाक बिल, राजनीतिक खेमेबाजी तेज

वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद केटीएस तुलसी ने कहा है कि विधेयक में एक बार में तीन तलाक़ के दोषियों के लिए 3 साल तक की सज़ा का प्रावधान गलत है.

इसी हफ्ते लोकसभा में पेश होगा ट्रिपल तलाक बिल, राजनीतिक खेमेबाजी तेज
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
केटीएस तुलसी ने कहा, 'ऐसे अपराधों में बेल का प्रावधान शामिल किया जाए'
सुप्रीम कोर्ट पहले ही एक बार में ट्रिपल तलाक को गैरकानूनी करार दे चुका है
सपा की मांग है कि विधेयक लाने से पहले सभी पक्षों से बातचीत करनी चाहिए
नई दिल्‍ली: ससंद में इसी हफ्ते गुरुवार को पेश होने वाले ट्रिपल तलाक बिल को लेकर राजनीतिक खेमेबाज़ी तेज हो गई है और विधेयक में बदलाव की मांग भी उठने लगी है. वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद केटीएस तुलसी ने कहा है कि विधेयक में एक बार में तीन तलाक़ के दोषियों के लिए 3 साल तक की सज़ा का प्रावधान गलत है. उनके मुताबिक बिल में दोषियों के लिए 2 हफ़्ते तक की सजा का प्रावधान होना चाहिए, प्रारूप में ये संज्ञेय और गैरज़मानती है जिसे असंज्ञेय और ज़मानती किया जाना चाहिए और पीड़ित महिला को अपने पति के घर में रहने का अधिकार होना चाहिए.

केटीएस तुलसी ने एनडीटीवी से कहा, "अगर सज़ा का प्रावधान ज़्यादा रखा जाता है तो पीड़ित महिला के खिलाफ उसका पति अत्याचार बढ़ा सकता है, हिंसक हो सकता है...ऐसे में ये ज़रूरी होगा कि ऐसे अपराधों में बेल का प्रावधान शामिल किया जाए."

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उधर समाजवादी पार्टी ने मांग की है कि सरकार को विधेयक लाने से पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत सभी पक्षों से बातचीत करनी चाहिए. पर्सनल लॉ बोर्ड बिल के प्रारूप को खारिज़ कर चुका है और सरकार ने उनसे बात भी नहीं की. कानून में सबकी चाहतों को तरजीह मिलनी चाहिए. नरेश अग्रवाल ने एनडीटीवी से कहा, "लॉ बोर्ड ने कहा है कि सरकार ने उनसे बात भी नहीं की है. लॉ बोर्ड ने ट्रिपल तलाक बिल का खारिज कर दिया है... जब तक कानून सबकी इच्छा से नहीं बनता है तब तक वो सफल साबित नहीं हो सकता है.

VIDEO: ट्रिपल तलाक बिल में बदलाव की मांग, विपक्षी दलों ने भी उठाए सवाल

जबकि कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट पहले ही एक बार में ट्रिपल तलाक को गैरकानूनी करार दे चुका है ऐसे में नया कानून लाने की क्या ज़रूरत है?" ट्रिपल तलाक बिल के मौजूदा प्रारूप को लेकर उठ रहे इन सवालों से साफ है कि इस संवेदनशील बिल पर राजनीतिक सहमति बनाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा. अब देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार आने वाले दिनों में संसद के अंदर और बाहर इन सवालों से कैसे निपटती है.

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