उपचुनाव का झुनझुना या फिर वाकई मध्यप्रदेश में सिर्फ स्थानीय युवाओं को मिलेगी सरकारी नौकरी?

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उपचुनाव का झुनझुना या फिर वाकई मध्यप्रदेश में सिर्फ स्थानीय युवाओं को मिलेगी सरकारी नौकरी?

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सरकारी नौकरी सिर्फ स्थानीय युवाओं को देने की घोषणा की है.

भोपाल:

कोरोना संकट के दौर में मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की शिवराज सरकार ने सरकारी नौकरी (Government Job) को लेकर बड़ा ऐलान किया है. मंगलवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने कहा, अब मध्यप्रदेश की सभी सरकारी नौकरियां सिर्फ राज्य के लोगों को ही मिलेंगी. इसके लिए जल्द ही जरूरी कानूनी बदलाव पेश किए जाएंगे. हालांकि जानकार कहते हैं सरकार की ये मंशा शायद ही कानूनी कठघरे में टिक पाए. वैसे सरकार ने भी ऐलान कर दिया है, लेकिन कहा है कि नियम कायदे अभी बनेंगे. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा "आज मध्यप्रदेश सरकार ने महत्वपूर्ण फैसला किया है. शासकीय नौकरी सिर्फ मध्यप्रदेश के बच्चों को देंगे. आवश्यक कानूनी प्रावधान कर रहे हैं.'' 

इस ऐलान पर विपक्ष ने भी रवायत के तहत ऑनलाइन-ऑफलाइन हमला बोला. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने याद दिलाया कि उन्होंने निजी नौकरियों में 70 फीसदी आरक्षण की बात कही थी. उन्होंने कहा ''मैंने अपनी 15 माह की सरकार में प्रदेश के युवाओं को प्राथमिकता से रोज़गार मिले, इसके लिए कई प्रावधान किए. मैंने हमारी सरकार बनते ही उद्योग नीति में परिवर्तन कर 70% प्रदेश के स्थानीय युवाओं को रोज़गार देना अनिवार्य किया. हमने युवा स्वाभिमान योजना लागू कर युवाओं को रोज़गार मिले, इसके लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय किए.''

कमलनाथ ने कहा कि ''आपकी 15 साल की सरकार में प्रदेश में बेरोज़गारी की क्या स्थिति रही, यह किसी से छिपी नहीं. युवा हाथों में डिग्री लेकर नौकरी के लिए दर-दर भटकते रहे. क्लर्क व चपरासी की नौकरी तक के लिए हज़ारों डिग्री धारी लाइनों में लगते रहे. मज़दूरों व गरीबों के आंकड़े इसकी वास्तविकता ख़ुद  बयां कर रहे हैं. अपनी पिछली 15 वर्ष की सरकार में कितने युवाओं को आपकी सरकार ने रोज़गार दिया, यह भी पहले आपको सामने लाना चाहिए. आपने प्रदेश के युवाओं को प्राथमिकता से नौकरी देने के हमारे निर्णय के अनुरूप ही घोषणा की लेकिन यह पूर्व की तरह ही सिर्फ़ घोषणा बनकर ही न रह जाए. प्रदेश के युवाओं के हक के साथ पिछले 15 वर्ष की तरह वर्तमान में भी छलावा ना हो, वे ठगे ना जाएं. यह आगामी उपचुनावों को देखते हुए मात्र चुनावी घोषणा बनकर ना रह जाए, इस बात का ध्यान रखा जाए अन्यथा कांग्रेस चुप नहीं बैठेगी.''

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कांग्रेस प्रवक्ता अभय दुबे ने का कि ''हाईकोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि राज्य सरकार संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 का उल्लंघन नहीं कर सकती, जिसमें स्पष्ट है कि कोई भी राज्य नौकरी देने के संदर्भ में किसी की जाति, धर्म, लिंग अथवा निवासी होने के आधार पर विभेद नहीं कर सकती. ये फैसला 7 मार्च 2018 को आया. इसके बाद विधि विभाग से अभिमत भी आया जिसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी को वापस ले लिया. छोटे राजनीतिक उद्देश्य को लेकर प्रदेश की जनता को भ्रमित किया जा रहा है.''

अब जुबानी जमा-पूंजी में इन बच्चों से कौन पूछे जो मध्यप्रदेश के ही हैं. 2017 में करीब चौबीस हजार महीने के वेतन वाली पटवारी भर्ती में दस लाख आवेदन आए. 2018 में इसका नतीजा आया, 9233 उम्मीदवार बुलाए गए, 7800 को नौकरी मिल गई, बाकी प्रतीक्षा सूची में रह गए. 3500 सहायक प्राध्यापकों के चयन के लिए 1992 के बाद प्रदेश में पहली बार परीक्षा हुई थी, जिसकी वजह से कई अतिथि विद्वान सालों तक पढ़ाने के बावजूद बेरोजगार हुए. कई बार आंदोलन किया, अब सरकार से सवाल पूछ रहे हैं. 

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पटवारी परीक्षा संघ के अध्यक्ष संदीप पांडे ने कहा "हमने 10वीं 12वीं के साथ पटवारी परीक्षा पास की है. हमें नियुक्ति नहीं दे रहे. क्या सिर्फ चुनाव को देखते हुए ऐसे कानून बना रहे हैं? जो पहले से परीक्षा पास करके बैठे हैं पहले उन्हें नियुक्ति दीजिए. वहीं गिरवर सिंह राजपूत जो फालेन आउट अतिथि विद्वान हैं, का कहना है "क्या हम मूल निवासी नहीं हैं. 25 साल से ठगे हैं, फॉलेन आउट आपकी नीतियों से हुए हैं. शिवराज जी, हम 8 महीने से कोरोना काल में बेरोजगार हैं, हमें कब देंगे फायदा? "
  
सन 2019 में विधानसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बताया था कि अक्टूबर 2018 में मध्यप्रदेश में पंजीकृत शिक्षित बेरोजगारों की संख्या 20,77,222 थी जो अक्तूबर 2019 में यह 27,79,725 हो गई. इस दौरान सिर्फ 34,000 बच्चों को नौकरी मिली. आर्थिक सर्वेक्षण 2019 से पता लगा था कि राज्य में पिछले 10 सालों में जनसंख्या लगभग 20% बढ़ गई है, लेकिन सरकारी नौकरियां बढ़ने के बजाय 2.5% कम हो गई. राज्य में कुल 565849 सरकारी नौकरियां हैं, जिसमें से 4,72,307 भरी हुई हैं, 93,533 पद खाली हैं.

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राज्य में 27 सीटों पर उपचुनाव हैं, सो बेरोजगारी का कार्ड बड़ा है. वाकई फिक्र होती तो करीब एक लाख पद रिक्त नहीं होते, जिन पटवारियों का चयन हो गया है वो बेरोजगार नहीं होते, महीनों तक अतिथि विद्वान प्रदर्शन पर बैठे नहीं होते.