नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) का कहना है कि सरकारी अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की झूठी और बेवजह शिकायतें करने वालों को दंडित करने के लिए ज़्यादा कड़े नियम लागू करने होंगे।
सूत्रों ने बताया है कि पीएमओ इस बात से चिंतित है कि इस तरह की फर्ज़ी शिकायतों के चलते अधिकारियों को निर्णय लेने में देर लग सकती है, या वे निर्णय लेने से ही कतराने लग सकते हैं। पीएमओ ने कथित रूप से इस तरह के दिशानिर्देश मंगाए हैं, जिनमें तय किया गया हो कि नौकरशाहों और अन्य लोगों की पैरवी करने के लिए वकीलों को किस तरह तैनात किया जाए।
सरकारी अधिकारियों के खिलाफ की जाने वाली शिकायतें कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel and Training - DoPT) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) तक पहुंचती हैं। सूत्रों ने NDTV को बताया है कि सबूतों के बिना भेजी गई इन शिकायतों की जांच में न सिर्फ बहुत ज़्यादा 'मैन-पॉवर और समय' खर्च होता है, बल्कि इनके कारण अधिकारियों को भी प्रताड़ना तथा मानसिक कष्ट से गुज़रना पड़ता है।
पीएमओ ने सरकारी अधिकारियों को भ्रष्टाचार की झूठी शिकायतों से बचाने के लिए DoPT से कहा है कि वह इस मामले में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नियम तैयार करे। यह सुझाव भी दिया गया है कि जिन अधिकारियों को बिना वजह निशाना बनाया जा रहा हो, उनके मामले में सरकार उनकी तरफ से मुकदमा लड़ सकती है।
गौरतलब है कि पिछले साल चुनाव में जीत हासिल करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में बदनाम लालफीताशाही को खत्म कर देने के प्रति कटिबद्धता जताई थी, और नौकरशाहों को सृजनात्मक तरीके से सोचने और लगन-मेहनत से काम करने का आग्रह किया था, ताकि नौकरशाही मजबूत हो सके, तथा पिछले कुछ दशकों में कांग्रेस-नीत सरकार के भ्रष्टाचार के बहुत-से मामलों में फंसे-उलझे रहने के कारण पैदा हुई प्रशासनिक पंगुता की स्थिति से उबरा जा सके। उन्होंने उत्तरदायित्व समझने को भी महत्वपूर्ण बताया था, और एक इलेक्ट्रॉनिक सर्वेलैन्स सिस्टम लॉन्च किया था, जिसके जरिये यह जांचा जा सके कि अधिकारी वक्त पर ऑफिस आ रहे हैं या नहीं।
सूत्रों ने बताया है कि पीएमओ इस बात से चिंतित है कि इस तरह की फर्ज़ी शिकायतों के चलते अधिकारियों को निर्णय लेने में देर लग सकती है, या वे निर्णय लेने से ही कतराने लग सकते हैं। पीएमओ ने कथित रूप से इस तरह के दिशानिर्देश मंगाए हैं, जिनमें तय किया गया हो कि नौकरशाहों और अन्य लोगों की पैरवी करने के लिए वकीलों को किस तरह तैनात किया जाए।
सरकारी अधिकारियों के खिलाफ की जाने वाली शिकायतें कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel and Training - DoPT) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) तक पहुंचती हैं। सूत्रों ने NDTV को बताया है कि सबूतों के बिना भेजी गई इन शिकायतों की जांच में न सिर्फ बहुत ज़्यादा 'मैन-पॉवर और समय' खर्च होता है, बल्कि इनके कारण अधिकारियों को भी प्रताड़ना तथा मानसिक कष्ट से गुज़रना पड़ता है।
पीएमओ ने सरकारी अधिकारियों को भ्रष्टाचार की झूठी शिकायतों से बचाने के लिए DoPT से कहा है कि वह इस मामले में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नियम तैयार करे। यह सुझाव भी दिया गया है कि जिन अधिकारियों को बिना वजह निशाना बनाया जा रहा हो, उनके मामले में सरकार उनकी तरफ से मुकदमा लड़ सकती है।
गौरतलब है कि पिछले साल चुनाव में जीत हासिल करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में बदनाम लालफीताशाही को खत्म कर देने के प्रति कटिबद्धता जताई थी, और नौकरशाहों को सृजनात्मक तरीके से सोचने और लगन-मेहनत से काम करने का आग्रह किया था, ताकि नौकरशाही मजबूत हो सके, तथा पिछले कुछ दशकों में कांग्रेस-नीत सरकार के भ्रष्टाचार के बहुत-से मामलों में फंसे-उलझे रहने के कारण पैदा हुई प्रशासनिक पंगुता की स्थिति से उबरा जा सके। उन्होंने उत्तरदायित्व समझने को भी महत्वपूर्ण बताया था, और एक इलेक्ट्रॉनिक सर्वेलैन्स सिस्टम लॉन्च किया था, जिसके जरिये यह जांचा जा सके कि अधिकारी वक्त पर ऑफिस आ रहे हैं या नहीं।
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