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This Article is From May 03, 2013

नम आंखों से हजारों ने दी सरबजीत को अंतिम विदाई, महत्वपूर्ण अंग थे गायब

भिखीविंड (पंजाब): पाकिस्तान की जेल में कैदियों के जानलेवा हमले में मारे गए भारतीय कैदी सरबजीत सिंह का शुक्रवार को उनके पैतृक शहर भिखीविंड में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। सरबजीत को उनकी बहन दलबीर कौर ने मुखाग्नि दी। इससे पहले पंजाब विधानसभा ने एक विशेष सत्र बुलाकर उन्हें शहीद का दर्जा देने से संबंधित प्रस्ताव पारित किया।

सरबजीत सिंह का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि किडनी और हृदय जैसे कई अंग उनके शरीर में नहीं मिले।

सरबजीत के अंतिम संस्कार में हजारों आम लोगों के साथ-साथ कई राजनीतिज्ञ एवं विशिष्ट हस्तियां मौजूद थीं। लोगों ने पाकिस्तान और वहां के नेताओं के खिलाफ नारेबाजी की।

सरबजीत की चिता को अग्नि दिए जाने से पहले उनके शव पर पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल, विदेश राज्य मंत्री परणीत कौर, अकाल तख्त के प्रमुख गुरबचन सिंह तथा पंजाब सरकार के मंत्रियों ने पुष्पचक्र अर्पित किए।

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी सरबजीत के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने पहुंचे। गुरुवार को उन्होंने दिल्ली में सरबजीत की बहन दलबीर से मुलाकात की थी।

सरबजीत की अंतिम यात्रा में बच्चे-बड़े, महिलाओं तथा पुरुषों ने हिस्सा लिया। लोगों ने उन्हें अश्रुपूर्ण नेत्रों से विदाई दी।

पंजाब पुलिस की एक टुकड़ी ने अपने हथियार उल्टा कर सरबजीत के सम्मान में तीन बार हवा में गोलियां दागी।

अंतिम संस्कार स्थल पर सरबजीत की पत्नी सुखप्रीत कौर तथा उनकी दो बेटियों- स्वपनदीप तथा पूनम भी थीं, जो मुश्किल से अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कर पा रही थीं। भाई की मौत से दुखी बहन दलबीर ने कहा, "मैंने सबकुछ खो दिया। लेकिन मैं पाकिस्तान की जेलों में बंद अन्य भारतीय कैदियों की रिहाई के लिए संघर्ष जारी रखूंगी।"

सरबजीत का तिरंगे से लिपटा शव पहले उनके घर में रखा गया था और फिर इसे सरकारी स्कूल के एक मैदान में लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। सरबजीत की मौत पर पंजाब सरकार ने तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। शहर में दुकानें तथा अन्य प्रतिष्ठान शुक्रवार को लगातार दूसरे दिन बंद रहे।

पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने सरबजीत के परिवार को एक करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता देने तथा उनकी दोनों बेटियों को सरकारी नौकरी देने की बात कही है।

सरबजीत 23 साल तक पाकिस्तान की जेल में बंद रहे। उन्हें दो बम विस्फोटों के लिए पाकिस्तान की अदालतों ने मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन उनका परिवार लगातार दावा करता रहा कि पाकिस्तान ने उन्हें मंजीत सिंह समझकर सजा सुनाई है, जबकि वह मंजीत सिह नहीं हैं। वह गलती से वर्ष 1990 में भारतीय सीमा पार कर पाकिस्तान के क्षेत्र में प्रवेश कर गए थे।

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