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This Article is From Dec 31, 2017

2017 में बीजेपी की चुनौती झेल नहीं पाए विपक्षी दल, 2018 में हैं कई विधानसभा चुनाव

आने वाले समय में देश के आठ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी विपक्षी पार्टियों के समक्ष भाजपा के विस्तार को रोकने की कठिन चुनौती होगी.

2017 में बीजेपी की चुनौती झेल नहीं पाए विपक्षी दल, 2018 में हैं कई विधानसभा चुनाव
नई दिल्ली: देश भर की विपक्षी पार्टियों को इस साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा)  के उदय और विस्तार की चुनौती का सामना करना पड़ा. आने वाले समय में देश के आठ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी विपक्षी पार्टियों के समक्ष भाजपा के विस्तार को रोकने की कठिन चुनौती होगी. वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं, जिसके लिए भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने को लेकर भी विपक्षी दलों की परीक्षा होनी है.  राज्यों में विपक्षी पार्टियों का प्रदर्शन मुख्यत: कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष राहुल गांधी पर निर्भर करेगा. राहुल गांधी कैसे अन्य विपक्षी दलों को लेकर आगे बढ़ते हैं, इससे भी इन चुनावों में काफी कुछ तय होगा.

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वर्ष 2018 में कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इनमें से चार बड़े राज्यों में कांग्रेंस का मुकाबला सीधे भाजपा से है. त्रिपुरा में इस बार सीधा मुकाबला मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और भाजपा में है. पिछले तीन वर्षो में कांग्रेस ने कई चुनाव हारे हैं, इसी वजह से 2019 लोकसभा चुनाव के संदर्भ में 'सामूहिक नेतृत्व' पर काफी बातें हो रही हैं. मोदी के विरोध में राष्ट्रपति चुनाव की तरह उम्मीदवार चुने जाने की भी बात कही जा रही है.

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इस वर्ष 18 विपक्षी पार्टियों ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए सामूहिक उम्मीदवार खड़ा किया था. लेकिन कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(राकांपा) और बहुजन समाज पार्टी(बसपा) गुजरात विधानसभा चुनाव में एक साथ नहीं लड़ पाए, जिसमें कांग्रेस कड़ी टक्कर देने के बावजूद चुनाव हार गई. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद इन 18 विपक्षी पार्टियों ने एक साथ आने का फैसला किया था. जबकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा और समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया था और जीत भाजपा के हाथ लगी थी.

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राकांपा नेता तारिक अनवर ने कहा, "कांग्रेस को गुजरात में 12 सीटों पर इसलिए हार मिली, क्योंकि कांग्रेस ने इन पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं किया था. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में इन पार्टियों को फिर से ऐसा नहीं करना चाहिए. अगर कांग्रेस इन राज्यों में अच्छा करती है तो 2019 विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को काफी ऊर्जा मिलेगी." अनवर ने कहा कि अगले वर्ष विधानसभा चुनावों से यह तस्वीर साफ हो जाएगी कि 2019 लोकसभा चुनाव में क्या होने वाला है.

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बसपा और समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में एक-दूसरे की विरोधी हैं, वहीं पश्चिम बंगाल में कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस, और वामपंथी दल एक-दूसरे के विरोधी हैं. कांग्रेस हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल, तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति और ओडिशा में बीजू जनता दल(बीजद) की विरोधी है. इन विरोधाभाषों और वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथों कांग्रेस की बुरी हार पर तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने ऐसे 'सामूहिक नेतृत्व' पर जोर दिया है, जो भाजपा के विरुद्ध सभी राज्यों में सभी विपक्षी पार्टियों को एक साथ ला सके. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम(डीएमके) के नेता टी.के.एस. एलंगोवन ने कहा, "गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी के अभियान ने कांग्रेस का मनोबल बढ़ाया और आगामी चुनावों में चुनाव लड़ने की तैयारी बहुत पहले से कर देनी चाहिए."

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उन्होंने कहा, "सभी विपक्षी पार्टियों को सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए एक साथ आना चाहिए। वे लोग हम पर हिंदुत्व थोपना चाहते हैं। वे लोग समाज में नफरत भी फैला रहे हैं.' माकपा के मोहम्मद सलीम ने कहा, "धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ वैकल्पिक रणनीति तलाशनी चाहिए और उन्हें हराना चाहिए."

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जनता दल (युनाइटेड) के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वापस भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(राजग) में शामिल होने से इस वर्ष विपक्षी पार्टियों को बड़ा झटका लगा. वह एक ऐसे नेता थे, जो मोदी को चुनौती देने वाले नेता के रूप में उभर सकते थे. बिहार में ही एक अन्य घटनाक्रम में राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद के चारा घोटाला मामले में में दोषी ठहराए जाने से भी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश को झटका लगा है. इस कड़ी में काफी अध्याय हैं और यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि 2018 में कैसे नतीजे आते हैं।

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