इन बच्चों का न तो कोई देश है और न ही कोई पहचान, दर-दर भटकने को हैं मजबूर

इन बच्चों का न तो कोई देश है और न ही कोई पहचान, दर-दर भटकने को हैं मजबूर

शरणार्थी शिविर से एक बच्ची की तस्वीर

नई दिल्ली:

नफरत और दहशत का ये भूगोल जैसे दुनिया का एक नया नक्शा बना रहा है। इस नक्शे में वे नागरिक दिखते हैं, जिनका कोई मुल्क नहीं है- ये 21वीं सदी के वे शरणार्थी हैं, जो ना जाने कहां से हासिल करेंगे अपनी पहचान। सीरिया में आईएसआईएस के आने के बाद, वहां से तुर्की के रास्ते यूरोप निकलने की कोशिश कर रहे सीरियाई लोग वहां के राहत शिविरों में हैं।

NDTV ने सीरिया की सीमा से लगे तुर्की के एक शरणार्थी शिविर का दौरा किया, तो एक और बड़ी त्रासदी समझ में आई। करीब 60 हज़ार सीरियाई बच्चे तुर्की में पैदा हुए हैं, अब मुश्किल ये है कि तुर्की इन्हें अपना नागरिक नहीं मानता और सीरिया वापसी पर इन बच्चों को पहचान मिल पाना लगभग असंभव है। ऐसे में बिना मुल्क के इन बच्चों का क्या होगा?

सीरियाई सीमा के बिल्कुल करीब एक शरणार्थी शिविर में हम चार महीने के शेरवान से मिले। शेरवान का जन्म यहीं हुआ। उसके माता-पिता सीरिया के कोबाने शहर पर जब आईएस ने हमला किया तो सीमा पार करके यहां आ गए। उस लड़ाई ने ही उसे ये नाम दिया। शेरवान के परिवार वाले बताते हैं कि शेरवान का मतलब होता है योद्धा।

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एक अनुमान के मुताबिक करीब एक लाख बच्चे हैं जो जन्म के साथ ही शरणार्थी बन गए। लगभग 60 हज़ार बच्चे यहां हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल इन बच्चों की नागरिकता को लेकर है। सीरयाई कानून के मुताबिक बच्चे को नागरिकता उसके पिता से आधार पर मिलती है, लेकिन ऐसे कई बच्चे हैं जिन्होंने सीरिया की लड़ाई में अपने पिता को खो दिया है।