बिहार सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि राज्य में कठोरतम मद्यनिषेध कानून में बदलाव किया जाएगा, जिस पर उच्च न्यायालय ने जेलों में हजारों लोगों को डालने वाले इस तरह का कानून बनाने और न्यायिक प्रणाली को अवरूद्ध करने को लेकर एक बार फिर उसे फटकार लगाई. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह चिंता का विषय है. न्यायालय ने कहा कि बिहार सरकार बगैर कोई विधायी प्रभाव अध्ययन के कानून लाई और पटना उच्च न्यायालय के 16 न्यायाधीश जमानत अर्जियों का निस्तारण करने में जुटे हुए हैं.
इस कठोरतम कानून के तहत दर्ज मामलों के आरोपियों की जमानत अर्जियों के एक समूह पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा क्या कुछ प्रभाव अध्ययन किया गया है, उस बारे में न्यायालय के समक्ष रिकार्ड पेश करने का निर्देश दिया.
पीठ ने कहा, ‘‘बिहार सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने दलील दी है कि कानून को कहीं अधिक कारगर बनाने के लिए और इसके अप्रिय परिणाम से निपटने के लिए एक संशोधन लाया जाएगा. हम जानना चाहेंगे कि बिहार मद्यनिषेध कानून लागू करने से पहले क्या विधायी प्रभाव अध्ययन किया गया है.''
बिहार मद्यनिषेध कानून 2016 में बनाया गया था, जिसके तहत पूरे राज्य में शराब की बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध है. यह कानून गंभीर अपराधों के लिए कैद की सजा के अलावा आरोपी की संपत्ति कुर्क करने का प्रावधान करता है. कानून में 2018 में संशोधन किया गया , जिसके तहत कुछ प्रावधान हल्के कर दिये गये.
सुनवाई की शुरूआत में पीठ ने कहा कि यह चिंता का विषय है कि पटना उच्च न्यायालय के 16 न्यायाधीश जमानत के विषयों की सुनवाई कर रहे हैं.
पीठ ने कहा, ‘‘यह कानून भीड़ बढ़ा रहा है. इसे ठीक करिये या हम कहेंगे कि संशोधन होने तक हर किसी को जमानत पर रिहा कर दें. आपने बगैर किसी विधायी प्रभाव अध्ययन के कानून बनाया. आपने यह अध्ययन नहीं किया कि कानून से उत्पन्न होने वाले मामलों से निपटने के लिए किस बुनियादी ढांचे की जरूरत पड़ेगी. हर विधान वाद उत्पन्न करता है.''
पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने कानून को गैर जमानती बना दिया है जो समस्या को और बढ़ा रहा है क्योंकि विषय उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय पहुंच रहा है. पीठ ने कहा, ‘‘चीजों को ठीक करने का भार आप(बिहार सरकार) पर है.''
न्यायालय ने कहा कि शराब की समस्या एक सामाजिक मुद्दा है और हर राज्य को इससे निपटने के लिए कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन इस पर कुछ अध्ययन करना चाहिए था कि यह कितनी तादाद में मुकदमे बढ़ाएगा, किस तरह के बुनियादी ढांचे की जरूरत होगी और कितनी संख्या में न्यायाधीशों की जरूरत पड़ेगी.
न्यायमूर्ति सुंदरेश ने कहा कि इस कानून के तहत गिरफ्तार किये गये ज्यादातर लोग समाज के निचले तबके से हैं. पीठ ने कहा कि राज्य जब कभी इस तरह के कानून लाये, हर पहलू पर गौर करे. पीठ इस मामले में अब मई के पहले सप्ताह में सुनवाई करेगी.
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