पांच वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी के खिलाफ भोपाल में बोर्ड आफिस चौराहे पर प्रदर्शन किया गया.
नई दिल्ली:
भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच के नाम पर कल पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी को लेकर तीखी प्रतिक्रिया हुई. सामाजिक आंदोलनों से जुड़े लोग मानते हैं कि सरकार असहमत लोगों को डराने और उनकी आवाज़ दबाने की कोशिश कर रही है.
दिल्ली से हैदराबाद तक सामाजिक कार्यकर्ताओं के समर्थन में लोग सड़कों पर उतरे. कोलकाता सहित अन्य शहरों में भी विरोध प्रदर्शन देखने को मिले. सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवर राव, अरुण फ़रेरा और वनौर्न गोंजाल्विस को जो लोग जानते हैं, उनका कहना है- इन पर किसी हिंसक साज़िश का आरोप नहीं लगाया जा सकता.
जेएनयू कैंपस में ही पलीं सुधा भारद्वाज को अब भी लोग वहां याद करते हैं. अर्थशास्त्री जयति घोष ने एनडीटीवी से कहा, "मैं सुधा को बचपन से जानती हूं. उनकी मां कृष्णा भारद्वाज मेरी टीचर थीं. उन पर पुलिस का आरोप झूठा है...सुधा का भीमा-कोरेगांव की हिंसा में शामिल लोगों से कोई लेना-देना नही है."
यह भी पढ़ें : माओवादियों से संपर्क रखने के संदेह में हाउस अरेस्ट सुधा भारद्वाज ने सरकार पर साधा निशाना, दिया यह बयान...
स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज़ के डीन प्रोफेसर अजय पटनायक ने एनडीटीवी से कहा, "सुधा भारद्वाज जैसी कार्यकर्ता को फ्लिमसी ग्राउंड पर गिरफ्तार करना, उन पर आरोप लगाना बहुत गलत है. इस तरह की गिरफ्तारी सत्तर के दशक में होती थी. जो कार्यकर्ता सरकार की नीतियों से सहमत नहीं हैं उन्हें अगर इस तरह गिरफ्तार किया जाता है तो उसे हरासमेंट माना जाएगा.
यह भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट का आदेश, सभी गिरफ्तार वाम विचारक 6 सितंबर तक अपने घर में ही नजरबंद रहेंगे, 10 बातें
अपनी गिरफ़्तारी के बाद गौतम नवलखा ने बयान जारी करते हुए कहा कि ये मामला बदला लेने पर उतारू, कायर सरकार का सियासी हथकंडा है. सरकार भीमा कोरेगांव के असली अपराधियों को बचाने पर आमादा है इसके जरिए कश्मीर से केरल तक अपने घोटालों और नाकामियों से ध्यान हटाना चाहती है.
VIDEO : भीमा कोरेगांव मामले में कई स्थानों पर छापे
मंगलवार को जिस हड़बड़ी में यह गिरफ़्तारियां हुईं और दिल्ली से इन्हें पुणे ले जाने की कोशिश हुई, उसे देखते हुए सब कुछ सामान्य नहीं लगता. इस मामले में पुलिस और सरकार को सारे संदेह हटाने होंगे, वरना उनकी कार्रवाई पर सवाल उठते रहेंगे.
दिल्ली से हैदराबाद तक सामाजिक कार्यकर्ताओं के समर्थन में लोग सड़कों पर उतरे. कोलकाता सहित अन्य शहरों में भी विरोध प्रदर्शन देखने को मिले. सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवर राव, अरुण फ़रेरा और वनौर्न गोंजाल्विस को जो लोग जानते हैं, उनका कहना है- इन पर किसी हिंसक साज़िश का आरोप नहीं लगाया जा सकता.
जेएनयू कैंपस में ही पलीं सुधा भारद्वाज को अब भी लोग वहां याद करते हैं. अर्थशास्त्री जयति घोष ने एनडीटीवी से कहा, "मैं सुधा को बचपन से जानती हूं. उनकी मां कृष्णा भारद्वाज मेरी टीचर थीं. उन पर पुलिस का आरोप झूठा है...सुधा का भीमा-कोरेगांव की हिंसा में शामिल लोगों से कोई लेना-देना नही है."
यह भी पढ़ें : माओवादियों से संपर्क रखने के संदेह में हाउस अरेस्ट सुधा भारद्वाज ने सरकार पर साधा निशाना, दिया यह बयान...
स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज़ के डीन प्रोफेसर अजय पटनायक ने एनडीटीवी से कहा, "सुधा भारद्वाज जैसी कार्यकर्ता को फ्लिमसी ग्राउंड पर गिरफ्तार करना, उन पर आरोप लगाना बहुत गलत है. इस तरह की गिरफ्तारी सत्तर के दशक में होती थी. जो कार्यकर्ता सरकार की नीतियों से सहमत नहीं हैं उन्हें अगर इस तरह गिरफ्तार किया जाता है तो उसे हरासमेंट माना जाएगा.
यह भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट का आदेश, सभी गिरफ्तार वाम विचारक 6 सितंबर तक अपने घर में ही नजरबंद रहेंगे, 10 बातें
अपनी गिरफ़्तारी के बाद गौतम नवलखा ने बयान जारी करते हुए कहा कि ये मामला बदला लेने पर उतारू, कायर सरकार का सियासी हथकंडा है. सरकार भीमा कोरेगांव के असली अपराधियों को बचाने पर आमादा है इसके जरिए कश्मीर से केरल तक अपने घोटालों और नाकामियों से ध्यान हटाना चाहती है.
VIDEO : भीमा कोरेगांव मामले में कई स्थानों पर छापे
मंगलवार को जिस हड़बड़ी में यह गिरफ़्तारियां हुईं और दिल्ली से इन्हें पुणे ले जाने की कोशिश हुई, उसे देखते हुए सब कुछ सामान्य नहीं लगता. इस मामले में पुलिस और सरकार को सारे संदेह हटाने होंगे, वरना उनकी कार्रवाई पर सवाल उठते रहेंगे.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं