बिहार के चुनावी नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर असर, 7 प्वाइंट्स में जानिए

नीतीश कुमार के तीन कार्यकाल के बाद सत्ता विरोधी लहर होने के बावजूद एनडीए के लिए अप्रत्याशित बढ़त हासिल करने के लिए बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अभियान को जिम्मेदार ठहराया है.

बिहार के चुनावी नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर असर, 7 प्वाइंट्स में जानिए

नई दिल्ली: Bihar Assembly Election Results 2020 : कोरोना वायरस के दौर में हुए पहले बड़े चुनाव में वोटों की गिनती जारी है और सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) बिहार में एक बार फिर जीत की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है. एनडीए ने कई एग्जिट पोल को धता बताते हुए बहुमत के निशान को पीछे छोड़ दिया और गठबंधन में जूनियर पार्टनर रही बीजेपी एक बार तो सबसे बड़ी पार्टी बन गई . हालांकि, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन ने एक मजबूत लड़ाई लड़ी, जो 10 घंटे की गिनती के बाद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. नीतीश कुमार के तीन कार्यकाल के बाद सत्ता विरोधी लहर होने के बावजूद एनडीए के लिए अप्रत्याशित बढ़त हासिल करने के लिए बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अभियान को जिम्मेदार ठहराया है.

मामले से जुड़ी अहम जानकारियां :

  1. किसी राज्य के चुनावों दिशा मोड़ने की प्रधानमंत्री की क्षमता एक और महत्वपूर्ण राज्य में स्थापित हुई है, जिसमें 40 लोकसभा सीटें हैं और जहां बीजेपी ने पिछले साल के आम चुनाव में 39 सीटें जीती थी.

  2. राज्य में मजबूत नेतृत्व के बिना भी बिहार में भाजपा अब मजबूत है. बिहार में इसके सबसे वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी हैं, जो नीतीश कुमार के साथ अच्छा तालमेल रखते हैं.

  3. बिहार के साथ, भाजपा के पास एक सूखे चरण को समाप्त करने का मौका है, जिसमें उसे विभिन्न घटक दलों के जाने से राज्यों की सत्ता गंवानी पड़ी. उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में, जहां अपने पूर्व साथी शिवसेना ने राकांपा और कांग्रेस के साथ  एक अप्रत्याशित साझेदारी करके भाजपा को सत्ता में आने से रोक दिया था.

  4. एक दर्जन राज्यों में हुए उपचुनावों के आज आए नतीजों ने भी बीजेपी ने जीत दर्ज की है, जिसे पीएम मोदी की जीत की कसौटी के तौर पर देखा जाता है.

  5. जहां तेजस्वी अपनी रैलियों में शामिल होने वाली भारी भीड़ को बड़ी जीत में बदलने में नाकाम रहे, वहीं 31 वर्षीय इस नेता ने खुद को एक प्रमुख राज्य के नेता के रूप में स्थापित किया है. वह नीतीश कुमार को तीसरे स्थान पर धकेलने में सफल रहे हैं. लेकिन कांग्रेस को 70 सीटों पर चुनाव लड़ना उसका सबसे बड़ा गलत अनुमान हो सकता है.

  6. कांग्रेस ने इस बार 2015 की तुलना में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन बहुत कम सीटें जीतने में सफल हुई इसने अपने आलोचकों को एक बार फिर से कुछ नेताओं के साथ दायित्व निभाने के लिए प्रेरित किया है जो पीएम मोदी की अपील और वोट-जीतने के तरीकों से मेल खाते हैं.

  7. कांग्रेस के एकमात्र स्टार प्रचारक राहुल गांधी थे, गांधी परिवार से कोई अन्य प्रचार के लिए नहीं आया, ना ही उनकी मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका गांधी वाड्रान ने बिहार की यात्रा की.