भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर अब रिटायर हो चुके जस्टिस अरुण मिश्रा (Justice Arun Mishra) की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के फैसले पर CJI एस ए बोबडे ने टिप्पणी की है. CJI ने कहा है कि भूमि अधिग्रहण पर संविधान पीठ के फैसले ने सभी सवालों के जवाब नहीं दिए हैं और भ्रम की गुंजाइश है. एसजी तुषार मेहता को इस मामले में सहायता करने के लिए कहा गया है. मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि कुछ सवाल हैं जिन पर चर्चा की आवश्यकता थी और कुछ पहलुओं को 5-जजों की बेंच के फैसले ने अनसुना कर दिया गया है.
इस संदर्भ में, सीजेआई एसए बोबडे ने टिप्पणी की कि पीठ कुछ पहलुओं के बारे में स्पष्ट होना चाहेगी और सॉलिसिटर जनरल की सहायता की मांग करेगी. अदालत ने कहा कि फैसले ने सरकार को ढील दी है, जिसे संसद सरकार को नहीं देना चाहती थी. इस पृष्ठभूमि में, न्यायालय ने कहा कि पीठ उचित निर्णय लेगी और दो सप्ताह के बाद मामले को सूचीबद्ध करेगी.
कोर्ट ने वकील को अपना जवाब दायर करने की अनुमति भी दी.
जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'आमतौर पर ऑनर किलिंग यूपी और हरियाणा में होती है, तमिलनाडु में यह कैसे?'
5 मार्च, 2020 को सुप्रीम कोर्ट की 5-जजों की बेंच ने फैसला किया था कि अगर भूमि का मुआवजा खजाने में जमा कर दिया गया है तो भूमि अधिग्रहण कानून 1894 के तहत कार्रवाई नहीं होगी. पीठ ने पुणे नगर निगम मामले में 2014 के फैसले को पलटते हुए 2018 इंदौर विकास प्राधिकरण मामले में दृष्टिकोण की पुष्टि की थी. जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस एस रवींद्र भट की संविधान बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की थी. हालांकि इस दौरान याचिकाकर्ताओं ने जस्टिस अरुण मिश्रा से इस मामले में सुनवाई से खुद को अलग करने का आग्रह किया था लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया था.
VIDEO:संकट में तीनों अंगों को मिलकर काम करना है- CJI
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