विवादास्पद और बहुप्रतीक्षित पृथक तेलंगाना राज्य के गठन को लोकसभा ने मंगलवार को मंजूरी दे दी और इसमें मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने सरकार का साथ दिया।
13 फरवरी को लोकसभा में पेश किए गए 'आंध्र प्रदेश पुनर्गठन विधेयक' को आज सदन में चर्चा और पारित किए जाने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने पेश किया, लेकिन आंध्र प्रदेश के विभाजन का विरोध करने वाले कुछ दलों के सदस्यों के भारी हंगामे के कारण सदन तीन बार स्थगित करना पड़ा।
विधेयक पर हुई संक्षिप्त चर्चा में केवल गृहमंत्री, विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और तेलंगाना क्षेत्र के वरिष्ठ नेता जयपाल रेड्डी ने अपनी बात रखी।
विधेयक को पारित करने की लगभग डेढ़ घंटे तक चली प्रक्रिया के बाद सदन ने इसे ध्वनिमत से अपनी मंजूरी दे दी। ऐसा करने से पूर्व, सदन ने विधेयक पर लाए गए गैर-सरकारी संशोधनों को अस्वीकार किया और सरकार की ओर से रखे गए संशोधनों को मंजूरी दी।
विधेयक के चर्चा और पारण की प्रक्रिया के दौरान माकपा सहित विभिन्न दलों के सीमांध्र क्षेत्र के सदस्य आसन के सामने एकत्र होकर आंध्र प्रदेश के विभाजन के विरोध में लगातार नारे लगाते रहे।
एहतियात के तौर पर सुशील कुमार शिंदे के आगे कांग्रेस के कई सदस्य सुरक्षा घेरा बनाकर खड़े थे, जिससे कि उनसे विधेयक की प्रति छीनने सहित कोई अप्रिय घटना नहीं होने पाए।
विधेयक पेश किए जाने के दिन सदन में माइक तोड़े जाने और मिर्च स्प्रे छिड़के जाने जैसी अप्रिय घटनाओं को देखते हुए आज विधेयक पर चर्चा के शुरू होने पर लोकसभा टेलीविजन से सदन की कार्यवाही का सीधा प्रसारण भी रोक दिया गया।
तेलंगाना मुद्दे पर भाजपा द्वारा सरकार का समर्थन किए जाने का विरोध करते हुए तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने लगातार नारे लगाए। ये सदस्य नारे लगा रहे थे 'आज का दिन काला है, भाजपा-कांग्रेस जोड़ा है, राहुल-मोदी जोड़ा है.. सोनिया-सुषमा जोड़ा है।'
इस विधेयक पर शिवसेना ने भाजपा का साथ नहीं दिया और उधर वाम मोर्चे में माकपा ने जहां इसका विरोध किया, वहीं भाकपा ने इसका समर्थन किया। जद यू के सदस्यों ने सदन में व्यवस्था के बिना विधेयक को पारित कराने के विरोध में सदन से वाकआउट किया।
विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि भाजपा शुरू से ही पृथक तेलंगाना राज्य के पक्ष में रही है। इसलिए वह अपनी विश्वसनीयता पर कायम रहते हुए विधेयक का समर्थन कर रही है। हालांकि उन्होंने कांग्रेस और उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी से शिकायत की कि उन्होंने 2004 में किए गए अपने वादे को 2014 में 15वीं लोकसभा के अंतिम सत्र के अंतिम सप्ताह में पूरा किया। उनकी यह भी शिकायत थी कि आंध्र प्रदेश का बंटवारा करते समय दोनों क्षेत्रों के बीच कांग्रेस सौहार्द और भाईचारा नहीं बनाए रख सकी।
सुषमा ने पृथक तेलंगाना का पुरजोर समर्थन करने के साथ ही आंध्र प्रदेश के बंटवारे के कारण सीमांध्र को होने वाले घाटे को पूरा करने की सरकार से मांग की। उन्होंने कहा कि राज्य के बंटवारे से 148 प्रमुख संस्थान हैदराबाद में रह जाएंगे, इसलिए सीमांध्र के साथ न्याय करने के लिए वहां भी ऐसे संस्थान खोलने के लिए योजना आयोग से सरकार मंजूरी दिलाए। उन्होंने कहा कि तेलंगाना बने लेकिन सीमांध्र के साथ भी पूरा न्याय हो।
विधेयक पर तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के असदुद्दीन औवेसी द्वारा पेश किए गए कई संशोधनों पर दोनों ने मत विभाजन की मांग की, लेकिन अध्यक्ष ने सदन में आसन के सामने सदस्यों के एकत्र होने और व्यवस्था नहीं होने के चलते इलैक्ट्रोनिक पद्धति से वोटिंग ना कराकर सदस्यों को खड़ा कर, उनकी गिनती करवा कर मत विभाजन कराया। सौगत राय ने इसका कड़ा विरोध करते हुए कहा कि हम कोई भेड़ बकरी नहीं हैं जिनकी गिनती की जाए।
वहीं इस विधेयक को पेश करते हुए शिंदे ने कहा कि केंद्र सीमांध्र को विशेष आर्थिक पैकेज देगा। उन्होंने कहा कि दोनों क्षेत्रों में शांति और सौहार्द बनाए रखने का पूरा प्रयास किया जाएगा और बंटवारे से दोनों क्षेत्रों के बीच प्राकृतिक संसाधनों सहित हर तरह के संसाधनों के बंटवारे में भी न्याय बरता जाएगा।
गृह मंत्री ने कहा कि सरकार की दोनों में से किसी भी क्षेत्र को नुकसान होने देने की कोई मंशा नहीं है। उन्होंने कहा कि दोनों क्षेत्रों को बराबर का न्याय देने के लिए वित्त मंत्रालय, ऊर्जा मंत्रालय, मानव संसाधन मंत्रालय, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, रेलवे मंत्रालय और योजना आयोग आदि से गहन विचार विमर्श होगा। शिंदे ने सीमांध्र के लोगों को आश्वासन दिया कि उन्हें विशेष पैकेज दिया जाएगा।
जिस समय विधेयक को पारित किए जाने की प्रक्रिया चल रही थी, उस समय एक ओर जहां सीमांध्र क्षेत्र के लगभग सभी दलों के सदस्य आसन के समक्ष एकत्र होकर राज्य के बंटवारे के विरोध में नारे लगा रहे थे तो वहीं, तेलंगाना राष्ट्र समिति और तेलंगाना क्षेत्र के अन्य सदस्य अपने स्थानों पर खड़े होकर खुशी में अपने हाथ बार-बार ऊपर लहरा रहे थे।
विधेयक पारित होने के तुरंत बाद सदन में तेलंगाना क्षेत्र के कांग्रेस के कुछ सदस्य सोनिया गांधी के बड़े-बड़े पोस्टर खोलते नजर आए लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।
अब यह विधेयक मंजूरी के लिए राज्यसभा में जाएगा । सरकार ने 45 दिनों के भीतर तेलंगाना के गठन के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन का वादा किया है, जो बाकी बचे आंध्र प्रदेश की राजधानी के संबंध में अपने सुझाव देगी। विधेयक में प्रावधान किया गया है कि हैदराबाद दस साल तक तेलंगाना और सीमांध्र की साझा राजधानी रहेगा, जिसमें वृहत हैदराबाद नगर निगम के रूप में अधिसूचित मौजूदा इलाके भी शामिल हैं।
केंद्र सरकार ने उचित मौद्रिक उपाय कर सीमांध्र क्षेत्र के लोगों की शिकायतों के समाधान का प्रयास भी किया है, जिसमें कर संबंधी पहल, औद्योगिकीकरण को बढ़ावा तथा दोनों राज्यों में आर्थिक विकास भी शामिल है।
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