तसलीमा नसरीन 1994 से निर्वासित जीवन बिता रही हैं (फाइल फोटो)
जयपुर:
लोकप्रिय साहित्य सम्मेलन जयपुर लिट्रेरी फेस्टिवल में सोमवार को विवादित बांग्ला लेखिका तसलीमा नसरीन पहुंची. कार्यक्रम में उनकी शिरकत को लेकर पहले से किसी को जानकारी नहीं दी गई थी. सम्मेलन में तसलीमा के आने को पूरी तरह गोपनीय रखा गया था. ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि आयोजकों को डर था कि तसलीमा का विरोध किया जाएगा इसलिए इसके बारे में किसी को सूचित नहीं किया गया. तसलीमा यहां 'Exile' (देश निकाला) सत्र में अपनी बात रख रही थीं लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इस फेस्टिवल की वेबसाइट पर न तो इस सत्र का ज़िक्र है और न ही स्पीकरों की लिस्ट में तसलीमा का नाम है.
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अपनी राय रखते हुए तसलीमा ने कहा कि मुसलमान नहीं चाहते कि वह इसका हिस्सा बनें लेकिन महिलाओं के हक़ के लिए इसकी बहुत ज्यादा जरूरत है. इस्लामिक कट्टरपंथ पर बात करते हुए तसलीमा ने कहा कि 'जब भी मैं इस्लाम धर्म की आलोचना करती हूं तो इस्लामिक कट्टरपंथी मुझे मारने को दौड़ते हैं, यह सब दूसरे धर्म में नहीं होता. इस्लाम का सहिष्णु होना जरूरी है.' साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह हिंदू कट्टरपंथ और तरह के कट्टरपंथ के भी खिलाफ हैं.
पढ़ें - संघ के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आरक्षण पर क्या कहा
असहिष्णुता के मुद्दे पर तसलीमा ने कहा कि भारत में वह हमेशा सुरक्षित महसूस नहीं करती लेकिन यहां हालात इतने भी ख़राब नहीं है कि देश छोड़ना पड़ जाए. बांग्लादेश में तो धर्मनिरपेक्ष लेखकों को मौत के घाट उतार दिया जाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि वह राष्ट्रवाद में यकीन नहीं रखती और उनके लिए पूरी दुनिया एक है.
देश निकाले के मुद्दे पर बात करते हुए तसलीमा ने कहा कि 'अगर मेरा बस चलता तो मैं बिल्कुल बांग्लादेश में रहना चाहती. लेकिन उसके बाद भारत ही वो देश जहां मैं घर जैसा महसूस करती हूं.' उन्होंने यह भी कहा है कि जब उन्हें हाल ही में भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया गया तब उन्हें उतना ही दुख हुआ जितना उन्हें 2008 में भारत छोड़ने पर हुआ था.
इससे पहले रविवार को निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने नई दिल्ली में अपने अज्ञात वास से पीटीआई से बातचीत की थी. उन्होंने कहा था कि साल 2011 में ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें पश्चिम बंगाल में अपनी वापसी के लिए स्थिति सुधरने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें लगता है कि तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो इस मामले में वाम मोर्चा की सरकार से ज्यादा ‘कठोर’ हैं.
उल्लेखनीय है कि मुस्लिम कट्टपंथियों की ओर से जान से मारने की धमकियां मिलने के बाद 1994 से बांग्लोदशी लेखिका निर्वासित जीवन बीता रही हैं. यूरोप में रहने के बाद, तस्लीमा ने 2004 में भारत में शरण ली और कोलकाता में रहीं लेकिन साल 2007 में उनके लेखन को लेकर मुसलमानों के हिंसक प्रदर्शन के बाद उन्हें पश्चिम बंगाल से निकाल दिया गया. फिर कुछ दिन तक वह नयी दिल्ली में अज्ञात स्थान पर रहने के बाद वह स्वीडन चली गयीं. बाद में वह भारत लौट आयीं और इस समय नयी दिल्ली में रह रही हैं. उनसे पूछा गया कि क्या वह ममता बनर्जी से संपर्क कर, कोलकाता लौटने में उनकी मदद मांगेंगी। इस पर तस्लीमा ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री को एक चिट्ठी लिखी है, लेकिन अभी तक इसका जवाब नहीं मिला है.
(इनपुट भाषा से भी)
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अपनी राय रखते हुए तसलीमा ने कहा कि मुसलमान नहीं चाहते कि वह इसका हिस्सा बनें लेकिन महिलाओं के हक़ के लिए इसकी बहुत ज्यादा जरूरत है. इस्लामिक कट्टरपंथ पर बात करते हुए तसलीमा ने कहा कि 'जब भी मैं इस्लाम धर्म की आलोचना करती हूं तो इस्लामिक कट्टरपंथी मुझे मारने को दौड़ते हैं, यह सब दूसरे धर्म में नहीं होता. इस्लाम का सहिष्णु होना जरूरी है.' साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह हिंदू कट्टरपंथ और तरह के कट्टरपंथ के भी खिलाफ हैं.
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असहिष्णुता के मुद्दे पर तसलीमा ने कहा कि भारत में वह हमेशा सुरक्षित महसूस नहीं करती लेकिन यहां हालात इतने भी ख़राब नहीं है कि देश छोड़ना पड़ जाए. बांग्लादेश में तो धर्मनिरपेक्ष लेखकों को मौत के घाट उतार दिया जाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि वह राष्ट्रवाद में यकीन नहीं रखती और उनके लिए पूरी दुनिया एक है.
देश निकाले के मुद्दे पर बात करते हुए तसलीमा ने कहा कि 'अगर मेरा बस चलता तो मैं बिल्कुल बांग्लादेश में रहना चाहती. लेकिन उसके बाद भारत ही वो देश जहां मैं घर जैसा महसूस करती हूं.' उन्होंने यह भी कहा है कि जब उन्हें हाल ही में भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया गया तब उन्हें उतना ही दुख हुआ जितना उन्हें 2008 में भारत छोड़ने पर हुआ था.
इससे पहले रविवार को निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने नई दिल्ली में अपने अज्ञात वास से पीटीआई से बातचीत की थी. उन्होंने कहा था कि साल 2011 में ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें पश्चिम बंगाल में अपनी वापसी के लिए स्थिति सुधरने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें लगता है कि तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो इस मामले में वाम मोर्चा की सरकार से ज्यादा ‘कठोर’ हैं.
उल्लेखनीय है कि मुस्लिम कट्टपंथियों की ओर से जान से मारने की धमकियां मिलने के बाद 1994 से बांग्लोदशी लेखिका निर्वासित जीवन बीता रही हैं. यूरोप में रहने के बाद, तस्लीमा ने 2004 में भारत में शरण ली और कोलकाता में रहीं लेकिन साल 2007 में उनके लेखन को लेकर मुसलमानों के हिंसक प्रदर्शन के बाद उन्हें पश्चिम बंगाल से निकाल दिया गया. फिर कुछ दिन तक वह नयी दिल्ली में अज्ञात स्थान पर रहने के बाद वह स्वीडन चली गयीं. बाद में वह भारत लौट आयीं और इस समय नयी दिल्ली में रह रही हैं. उनसे पूछा गया कि क्या वह ममता बनर्जी से संपर्क कर, कोलकाता लौटने में उनकी मदद मांगेंगी। इस पर तस्लीमा ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री को एक चिट्ठी लिखी है, लेकिन अभी तक इसका जवाब नहीं मिला है.
(इनपुट भाषा से भी)
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