पणजी की एक स्थानीय अदालत ने तरुण तेजपाल की अंतरिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री प्रथम दृष्टया इस ओर इशारा करती है कि वह एक ऐसे कृत्य में शामिल थे, जो संरक्षण में रखकर बलात्कार और एक महिला की गरिमा को आहत करने के अपराध के समान है।
जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनुजा प्रभुदेसाई ने 25 पन्नों के अपने आदेश में कहा, पीड़िता का बयान और ई-मेल के रूप में मौजूद दस्तावेज, जिनका विवरण यहां प्रस्तुत किया जाना है, प्रथम दृष्टया संकेत देते हैं कि याचिकाकर्ता, जो उनके संरक्षक और पिता तुल्य थे, ने न सिर्फ पीड़िता की गरिमा को आहत किया, बल्कि उसके भरोसे को तोड़ा और शारीरिक शोषण किया।
सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों का हवाला देते हुए प्रभुदेसाई ने कहा कि उनके लिए सवाल यह है कि क्या तेजपाल जमानत के हकदार हैं या नहीं। उन्होंने कहा, मेरी सुविचारित राय में, इसका जवाब नहीं में होगा। न्यायाधीश ने कहा प्रबंध संपादक को इस मामले की रिपोर्ट करने में देरी तो हुई है, लेकिन इस चरण पर यह तर्क मान्य नहीं है।
उन्होंने कहा, यह जेहन में बैठा लेना चाहिए कि रिपोर्ट दर्ज कराने में हुई देरी जरूरी नहीं घातक हो और इसे स्पष्ट किया जा सकता है। प्राथमिकी दर्ज कराने में हुई अस्पष्ट देरी का मानदंड, जो अक्सर आरोपी के पक्ष में जाता है, यौन उत्पीड़न के मामले में लागू नहीं होता।
प्रभुदेसाई ने कहा कि इस तरह के अपराध में पीड़िता शारीरिक के साथ-साथ मानसिक पीड़ा से भी गुजर रही होती है। उसके सम्मान, गरिमा, प्रतिष्ठा, भविष्य की संभावनाएं और आर्थिक सुरक्षा दांव पर लगी होती हैं और अक्सर पीड़िता एवं उसके परिजन सामाजिक उपहास का शिकार बनते हैं। इन परिस्थितियों में अक्सर घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने में देरी हो जाती है।
उन्होंने कहा, मेरी सुविचारित नजर में, शिकायतकर्ता की सच्चाई या पीड़िता के बयान पर महज देरी होने के आधार पर शक नहीं किया जा सकता।
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