रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद भूमि विवाद (Ram Janmbhoomi Babri Masjid dispute) में दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) शुक्रवार को सुवनाई करेगा. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ यह भी तय करेगी कि उचित बेंच राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले की सुनवाई कब करेगी. शुक्रवार को होने वाली सुनवाई से यह साफ हो सकता है कि आखिर इस विवाद (Ram Janmbhoomi Babri Masjid dispute) में कोई फैसला लोकसभा चुनाव से पहले आ सकता है या नहीं. इस मामले की सुनावई तीन जजों की बेंच (Supreme Court) को करनी है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की पीठ अयोध्या विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई कर रहा है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या (Ram Janmbhoomi Babri Masjid dispute) में 2.77 एकड़ के इस विवादित स्थल को इस विवाद के तीनों पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बांटने का आदेश दिया था.
यह भी पढ़ें: BJP सांसद साक्षी महाराज का चौंकाने वाला दावा: जामा मस्जिद तोड़ो
इस मामले में पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई से इनकार कर दिया था. उस दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा था कि उसने पहले ही अपीलों को जनवरी में उचित पीठ के पास सूचीबद्ध कर दिया है. अखिल भारतीय हिंदू महासभा की ओर से उपस्थित अधिवक्ता बरुण कुमार के मामले पर शीघ्र सुनवाई करने के अनुरोध को खारिज करते हुए पीठ ने कहा था कि हमने आदेश पहले ही दे दिया है. अपील पर जनवरी में सुनवाई होगी.
यह भी पढ़ें: अयोध्या मामले की जल्द सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, याचिका ठुकराई
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि अदालत की अपनी प्राथमिकताएं हैं. उचित पीठ ही जनवरी में तय करेगी कि इसकी सुनवाई जनवरी, फरवरी में हो या उसके बाद. ध्यान हो कि इससे पहले पिछले साल 27 सितंबर को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच ने 2-1 के बहुमत से फैसला दिया था कि 1994 के संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है, जिसमें कहा गया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है.
यह भी पढ़ें: केंद्रीय मंत्री उमा भारती बोलीं- राम मंदिर का निर्माण मेरा सपना, जो भी हो करने के लिए तैयार हूं
उस समय तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण ने बहुमत के फैसले में मुस्लिम दलों में से एक के लिए पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन की दलीलों को ठुकरा दिया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि 1994 के पांच जजों के संविधान पीठ के फैसले जिसमें " मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है और नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है, यहां तक की खुले में भी" की बात कही गई थी पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है. जस्टिस अशोक भूषण ने फैसला पढ़ते हुए कहा था कि ये टिप्पणी सिर्फ अधिग्रहण को लेकर की गई थी. सभी धर्म, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च बराबर हैं. इस फैसले का असर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 में टाइटल के मुकदमे के फैसले पर नहीं पड़ा. इसलिए इस पर फिर से विचार की जरूरत नहीं है.
यह भी पढ़ें: राम मंदिर निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण करने और कानून बनाए जाने की जरूरत: RSS
पीठ ने जमीनी विवाद मामले की सुनवाई 29 अक्तूबर से शुरू होने वाले हफ्ते से करने के निर्देश जारी किए थे. वहीं तीसरे जज एस जस्टिस अब्दुल नजीर इससे सहमत रहे. उन्होंने कहा कि 1994 के इस्माईल फारूखी फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है क्योंकि इस पर कई सवाल हैं. ये टिप्पणी बिना विस्तृत परीक्षण और धार्मिक किताबों के की गईं. उन्होंने कहा कि इसका असर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले पर भी पड़ा था, इसलिए इस मामले को संविधान पीठ में भेजना चाहिए.
VIDEO: राम मंदिर मुद्दे पर बोले पीएम मोदी.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं