
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद की गिरफ्तारी पर तब तक के लिए रोक लगा दी, जब तक कोर्ट उनकी अग्रिम जमानत फैसला न सुना दे, जिसे कोर्ट ने सुरक्षित रखा है।
इस जोड़े पर अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में एक संग्रहालय की स्थापना के लिए उनके गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सबरंग ट्रस्ट द्वारा इकट्ठा किए गए 1.5 करोड़ रुपये के गबन का आरोप है। गुलबर्ग सोसायटी में वर्ष 2002 के सांप्रदायिक दंगे के दौरान 69 लोगों की मौत हो गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिस से पूछा कि उन्हें तीस्ता को कस्टडी में रखकर पूछताछ करने की ज़रूरत क्यों है, और क्या यह ऐसा मामला है, जिसके चलते किसी की आजादी छीन ली जाए। इस पर गुजरात पुलिस ने कहा कि इसके पीछे दो बड़ी वजहें हैं। तीस्ता द्वारा सहयोग न किया जाना, और गवाहों को प्रभावित करने की आशंका के चलते उसकी कस्टडी की ज़रूरत है।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक अंग्रेज़ी उक्ति का इस्तेमाल करते हुए टिप्पणी की, "Liberty of a person is paramount... It cannot be a bartered with all the stars of sky..." (किसी की भी व्यक्तिगत आजादी सर्वोपरि है... आसमान में जितने तारे हैं, उनके बदले भी उसका मोल-भाव नहीं किया जा सकता...)
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुजरात पुलिस से कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता कौन है, यह मायने नहीं रखता। बड़ी बात यह है कि क्या किसी की व्यक्तिगत आजादी को वेंटिलेटर या आईसीयू में रखा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि हम उन्हें (आरोपियों से) जांच में सहयोग के लिए कहेंगे कि वे केस से संबंधित दस्तावेज और दानकर्ताओं की सूची जांच के लिए दें।
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