भ्रष्टाचार के दोषी को उम्रकैद की अर्जी पर बिफरा सुप्रीम कोर्ट, कहा-कल कोई कहेगा गरीबी को... 

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने इस साल भ्रष्टाचार दृष्टिकोण सूचकांक में भारत को 80वें स्थान पर रखा है. संविधान के अनुच्छेद 21 में सम्मान से खुशहाल जीवन जीने का अधिकार है, लेकिन व्यापक भ्रष्टाचार से प्रसन्नता सूचकांक में हमारी रैंकिंग बहुत निम्न है.

भ्रष्टाचार के दोषी को उम्रकैद की अर्जी पर बिफरा सुप्रीम कोर्ट, कहा-कल कोई कहेगा गरीबी को... 

BJP नेता ने Supreme Court में यह याचिका दाखिल की थी

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने काला धन (Black Money) , बेनामी संपत्ति और आय से अधिक संपत्ति को जब्त करने और भ्रष्टाचारियों (Corrupt) को उम्रकैद की सजा देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इन्कार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा, ये पब्लिसिटी पिटीशन हम नहीं सुनेंगे और आप अपनी मांगों को लेकर लॉ कमीशन जाइए.

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि कानून बनाना संसद का काम है. सीधे कोर्ट कोई कानून नहीं बना सकती. कोर्ट ने कहा कि कल कोई याचिका दाखिल कर कहेगा कि गरीबी खत्म करने का आदेश दे दो. कोर्ट क्या कर सकता है. उसका भी अपना दायरा है. बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने यह याचिका दाखिल की थी. याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ली.

इस याचिका में कालाधन, बेनामी संपत्तियों को जब्त करने की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए केंद्र को निर्देश देने के अनुरोध की मांग थी. याचिका में रिश्वतखोरी, काला धन रखने, बेनामी संपत्ति रखने, कर चोरी करने, काले धन को अवैध तरीके से सफेद में बदलने, जमाखोरी, खाद्य मिलावट, मानव और मादक पदार्थों की तस्करी, कालाबाजारी और धोखाधड़ी जैसे अपराधों के लिए उम्रकैद की सजा की मांग की गई. 

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भ्रष्टाचार से जंग में भारत की रैंकिंग अच्छी नहीं
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने इस साल भ्रष्टाचार दृष्टिकोण सूचकांक में भारत को 80वें स्थान पर रखा है. याचिका में अदालत से  (Supreme Court) कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 21 में सम्मान से खुशहाल जीवन जीने का अधिकार दिया गया है, लेकिन व्यापक भ्रष्टाचार की वजह से प्रसन्नता सूचकांक में हमारी रैंकिंग बहुत निम्न है. इसमें दावा किया गया है कि भ्रष्टाचार का जीवन, स्वतंत्रता, सम्मान के अधिकार पर विनाशकारी प्रभाव होता है और यह सामाजिक और आर्थिक न्याय, भाईचारे, लोगों के सम्मान, एकता और राष्ट्रीय अखंडता को बुरी तरह प्रभावित करता है. इस तरह यह अनुच्छेदों 14 और 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन है.