प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
दिल्ली-नोएडा-दिल्ली (DND)टोल के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट तीन महीने में सुनवाई पूरी कर फैसला सुनाने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने दोटूक कहा कि अगर हाईकोर्ट इस दौरान सुनवाई पूरी नहीं कर पाता तो फिर उस अंतरिम याचिका पर सुनवाई की जाए जिसमें टोल एग्रीमेंट को रद्द करने की मांग की गई है।
गैरकानूनी तरीके से टोल वसूले जाने की की गई है शिकायत
गौरतलब है कि फेडरेशन आफ नोएडा रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में डीएनडी टोल को रद्द करने की मांग की है। एसोसिएशन ने कहा है कि यहां गैरकानूनी तरीके से टोल वसूला जा रहा है।
2012 से चल रही है सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्जी में फेडरेशन ने कहा है कि 2012 से उनकी जनहित याचिका हाई कोर्ट में लंबित है। 69 बार मामला सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में लगा। तीन बार टोल प्लाजा पर टोल उगाही पर रोक लगाने की अर्जी लगाई गई लेकिन हाई कोर्ट ने अब तक उस पर कोई फैसला नहीं दिया है। आखिरकार फेडरेशन ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले को जल्द निपटाने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट से यह भी मांग की गई थी कि टोल प्लाज़ा पर टोल उगाही बंद हो लेकिन कोर्ट ने कहा कि तीन महीने में अगर हाई कोर्ट याचिका का निपटारा नहीं करता तो याचिकाकर्ता वापस सुप्रीम कोर्ट आ सकते हैं।
क्या हैं आरोप
हाई कोर्ट में दायर याचिका में फेडरेशन ने कहा है कि टोल वसूलने वाली कंपनी नॉएडा टोल ब्रिज कंपनी ने नॉएडा अथॉरिटी के साथ 1997 में करार किया था। करार एकतरफा किया गया ताकि हर हाल में टोल वसूलने वाली कंपनी को फायदा हो। पूरा करार एक घपला है। 407 करोड़ की प्रोजेक्ट लागत बताई गई। जबकि 6 दिसम्बर 2012 की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक कम्पनी को 581 करोड़ का फायदा हुआ।
एग्रीमेंट के मुताबिक नॉएडा अथॉरिटी ने कम्पनी को 68 एकड़ जमीन अधिग्रहण करके दी। किसानों को सारा पैसा अथॉरिटी ने दिया। इस जमीन पर कम्पनी को महज़ एक साल के एक रूपये एकड़ के हिसाब से लीज रेंट अथॉरिटी को देना पड़ेगा। जो 30 साल बाद 50 रुपये प्रति एकड़ हो जाएगा। इस ज़मीन का कंपनी किसी भी तरह इस्तेमाल कर सकती है। 10 साल या जब तक 16000 सवारी गाड़ी प्रतिदिन का टारगेट टोल कंपनी हासिल नहीं कर लेती, नॉएडा अथॉरिटी टोल रोड के आसपास कोई और ब्रिज नहीं बना सकती। टोल वसूलने वाली कंपनी की आय और व्यय का कोई इंडिपेंडेंट ऑडिट नहीं होता। मेंटेनेंस पर कम्पनी टोल रोड बनाने में आई लागत से ज्यादा रकम दिखाती है। 30 साल के concessional agreement को बढ़ाकर 100 साल का कर दिया गया है।
याचिकाकर्ता के मुताबिक अब तक कंपनी लागत से चार गुना ज्यादा पैसा वसूल चुकी है लेकिन फिर भी टोल प्लाजा चल रहा है। यह भी कहा गया है कि खुद प्लानिंग कमीशन की एक रिपोर्ट कहती है की यह पूरा करार एक पब्लिक लूट है। करार कुछ ऐसा किया गया है कि अगर आज नॉएडा अथॉरिटी इस करार को खत्म करना चाहे तो उसे 53 हजार करोड़ कम्पनी को देना होगा।
गैरकानूनी तरीके से टोल वसूले जाने की की गई है शिकायत
गौरतलब है कि फेडरेशन आफ नोएडा रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में डीएनडी टोल को रद्द करने की मांग की है। एसोसिएशन ने कहा है कि यहां गैरकानूनी तरीके से टोल वसूला जा रहा है।
2012 से चल रही है सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्जी में फेडरेशन ने कहा है कि 2012 से उनकी जनहित याचिका हाई कोर्ट में लंबित है। 69 बार मामला सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में लगा। तीन बार टोल प्लाजा पर टोल उगाही पर रोक लगाने की अर्जी लगाई गई लेकिन हाई कोर्ट ने अब तक उस पर कोई फैसला नहीं दिया है। आखिरकार फेडरेशन ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले को जल्द निपटाने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट से यह भी मांग की गई थी कि टोल प्लाज़ा पर टोल उगाही बंद हो लेकिन कोर्ट ने कहा कि तीन महीने में अगर हाई कोर्ट याचिका का निपटारा नहीं करता तो याचिकाकर्ता वापस सुप्रीम कोर्ट आ सकते हैं।
क्या हैं आरोप
हाई कोर्ट में दायर याचिका में फेडरेशन ने कहा है कि टोल वसूलने वाली कंपनी नॉएडा टोल ब्रिज कंपनी ने नॉएडा अथॉरिटी के साथ 1997 में करार किया था। करार एकतरफा किया गया ताकि हर हाल में टोल वसूलने वाली कंपनी को फायदा हो। पूरा करार एक घपला है। 407 करोड़ की प्रोजेक्ट लागत बताई गई। जबकि 6 दिसम्बर 2012 की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक कम्पनी को 581 करोड़ का फायदा हुआ।
एग्रीमेंट के मुताबिक नॉएडा अथॉरिटी ने कम्पनी को 68 एकड़ जमीन अधिग्रहण करके दी। किसानों को सारा पैसा अथॉरिटी ने दिया। इस जमीन पर कम्पनी को महज़ एक साल के एक रूपये एकड़ के हिसाब से लीज रेंट अथॉरिटी को देना पड़ेगा। जो 30 साल बाद 50 रुपये प्रति एकड़ हो जाएगा। इस ज़मीन का कंपनी किसी भी तरह इस्तेमाल कर सकती है। 10 साल या जब तक 16000 सवारी गाड़ी प्रतिदिन का टारगेट टोल कंपनी हासिल नहीं कर लेती, नॉएडा अथॉरिटी टोल रोड के आसपास कोई और ब्रिज नहीं बना सकती। टोल वसूलने वाली कंपनी की आय और व्यय का कोई इंडिपेंडेंट ऑडिट नहीं होता। मेंटेनेंस पर कम्पनी टोल रोड बनाने में आई लागत से ज्यादा रकम दिखाती है। 30 साल के concessional agreement को बढ़ाकर 100 साल का कर दिया गया है।
याचिकाकर्ता के मुताबिक अब तक कंपनी लागत से चार गुना ज्यादा पैसा वसूल चुकी है लेकिन फिर भी टोल प्लाजा चल रहा है। यह भी कहा गया है कि खुद प्लानिंग कमीशन की एक रिपोर्ट कहती है की यह पूरा करार एक पब्लिक लूट है। करार कुछ ऐसा किया गया है कि अगर आज नॉएडा अथॉरिटी इस करार को खत्म करना चाहे तो उसे 53 हजार करोड़ कम्पनी को देना होगा।
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