सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें चुनाव आयोग से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का उपयोग बंद करने और आगामी चुनावों में इसकी बजाय बैलेट पेपर का उपयोग करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी. प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता से पूछा कि 'इससे उनका कौन सा मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है?' हालांकि, कोर्ट ने यह जरूर कहा है कि याचिकाकर्ता मामले को लेकर हाईकोर्ट जा सकता है.
बता दें कि इस याचिका में कहा गया था कि ईवीएम में त्रुटि होने का खतरा अधिक है और कई अन्य देशों ने इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है क्योंकि इसकी पारदर्शिता और सटीकता पर संदेह उठाया गया है. वकील सी आर जया सूकिन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को पारंपरिक बैलेट पेपर से पूरे भारत में बदला जाना चाहिए. याचिकाकर्ता ने कहा है कि किसी भी देश की चुनावी प्रक्रिया के लिए मतपत्रों के माध्यम से मतदान करना अधिक विश्वसनीय और पारदर्शी तरीका है.
याचिका में क्या दलील दी गई है?
यह माना गया है कि 'ईवीएम में इसके निर्माण के दौरान छेड़छाड़ किया जा सकता है' और उन्हें वास्तविक मतदान प्रक्रिया में हेरफेर करने के लिए किसी हैकर या मालवेयर की भी आवश्यकता नहीं है. यह दलील दी गई है कि दुनिया में 'कहीं भी कोई मशीन अचूक नहीं है' और ईवीएम के कई खतरे हैं. ईवीएम को आसानी से हैक किया जा सकता है. ईवीएम के जरिए किसी मतदाता के पूरे प्रोफाइल तक पहुंचा जा सकता है. ईवीएम का उपयोग चुनाव के परिणामों को प्रबंधित करने के लिए किया जा सकता है. चुनाव अधिकारी ईवीएम में आसानी से छेड़छाड़ कर सकता है. यहां तक कि एक ईवीएम के चुनाव सॉफ्टवेयर को भी बदला जा सकता है.
याचिका में यह कहा गया है कि अगर प्रधानमंत्री कार्यालय में कंप्यूटर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के एम के नारायणन के निजी कंप्यूटर, को हैक कर लिया गया है, क्या यह मान लेना लाजिमी है कि जिलों और दूरदराज के ग्रामीण स्थानों में स्टोररूम में बंद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें सुरक्षित रहेंगी और उपद्रवियों का शिकार नहीं होंगी?
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं