दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल

कोर्ट को देश की वास्तविकता को देखना चाहिए. चुनाव खर्च की सीमा तय करना देश का सबसे बड़ा मजाक है. प्रत्याशी अपने क्षेत्र में करीब 30 करोड़ रुपये खर्च करता है.

दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल

प्रतीकात्मक चित्र

नई दिल्ली:

दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल खड़े किए हैं. मामले पर सुनवाई के दौरान पांच जजों की संविधान पीठ ने केंद्र से पूछा, 'क्या चुनाव आयोग को ये शक्ति दी जा सकती है कि वो आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को चुनाव में उतारें तो उसे (उस उम्मीदवार को) चुनाव चिन्ह देने से इनकार कर दे?' केंद्र की ओर से AG के के वेणुगोपाल ने इसका विरोध किया, कहा कि ये चुने हुए प्रतिनिधि ही तय कर सकते हैं, कोर्ट नहीं. ये काम चुने हुए प्रतिनिधियों का है या फिर इस अदालत में बैठे पांच जजों का? CJI दीपक मिश्रा ने केंद्र से कहा, 'हम अपने आदेश में ये जोड़ सकते हैं कि अगर अपराधियों को चुनाव में प्रत्याशी बनाया गया तो उसे चुनाव चिन्ह ना जारी करें.' AG ने कहा, ' अगर ऐसा किया गया तो राजनीतिक दलों में विरोधी एक-दूसरे पर आपराधिक केस करेंगे.

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कोर्ट को देश की वास्तविकता को देखना चाहिए. चुनाव खर्च की सीमा तय करना देश का सबसे बड़ा मजाक है. प्रत्याशी अपने क्षेत्र में करीब 30 करोड़ रुपये खर्च करता है. चुनाव के वक्त प्रत्याशियों के खिलाफ ज्यादा मामले दर्ज होंगे. संसदीय स्थाई समिति मे इस पर विचार किया था और खारिज कर दिया था.' हालांकि जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने चीफ जस्टिस के कथन से असहमति जताई, कहा इससे लोग राजनीतिक बदला निकालेंगे. चुनाव लड़ने की अयोग्यता दोषी करार होने के बाद हो. जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने कहा कि कोर्ट संसद के क्षेत्राधिकार में नहीं जा रहा. जब तक संसद कानून नहीं बनाती तब तक हम चुनाव आयोग को आदेश देंगे कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव चिन्ह ना दे. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'पार्टी को मान्यता देते वक्त चुनाव आयोग कहता है कि पार्टी को कितने वोट लेने होंगे.

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वहीं चुनाव आयोग खुद ही शर्त लगा सकता है कि अपराधिक छवि वाले दलों के प्रत्याशी ना बनें. ऐसा व्यक्ति किसी राजनीतिक पार्टी से चुनाव नहीं लड़ सकता. हालांकि वो खुद चुनाव लड़ सकता है, इस तरह वो चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित नहीं होगा.' AG ने कहा, 'लेकिन इससे राजनीतिक पार्टियों का अधिकार छीन लिया जाएगा और ये असंवैधानकि होगा.' सुनवाई 28 अगस्त को जारी रहेगी. दरअसल सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में उस याचिका पर सुनवाई चल रही है जिसमें मांग की गई है कि गंभीर अपराधों में जिसमें सज़ा 5 साल से ज्यादा हो और अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप तय होते हैं तो उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए.

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अगर कोई सासंद या विधायक है तो उसकी सदस्यता रद्द होनी चाहिए. दरसअल मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था. इस मामले में अश्विनी कुमार उपाध्याय के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और एक अन्य एनजीओ की याचिकाएं भी लंबित हैं.


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