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This Article is From Dec 05, 2017

सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले पर अहम सुनवाई आज

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच करेगी मामले की सुनवाई, हजारों पन्नों के अदालती दस्तावेजों का अंग्रेजी में अनुवाद पूरा हुआ

सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले पर अहम सुनवाई आज
प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की अहम सुनवाई होगी. जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच इस मामले की सुनवाई  करेगी .इस मामले में सबसे बड़ी बाधा थी कागजी कार्यवाही का पूरा नहीं होना, जो अब पूरी हो चुकी है.

हजारों पन्नों के अदालती दस्तावेजों का अंग्रेजी में अनुवाद न होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर पांच दिसंबर से सुनवाई करने का निर्णय लिया था. अनुवाद अब पूरा हो चुका है. अदालत ने सभी पक्षकारों को हिन्दी, पाली, उर्दू, अरबी, पारसी, संस्कृत आदि सात भाषाओं के अदालती दस्तावेजों का 12 हफ्ते में अंग्रेजी में अनुवाद करने का निर्देश दिया था. उत्तर प्रदेश सरकार को विभिन्न भाषाओं के मौखिक साक्ष्यों का अंग्रेजी में अनुवाद करने का जिम्मा सौंपा गया था.

अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराए जाने की 25वीं वर्षगांठ से एक दिन पहले राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद पर यह संभवत: अंतिम सुनवाई है जो कि मंगलवार को शुरू होगी. इसमें तीन सदस्यीय विशेष पीठ चार दीवानी मुकदमों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई करेगी.

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उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ के इस विवादित स्थल को इस विवाद के तीनों पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और भगवान राम लला के बीच बांटने का आदेश दिया था. इस बीच उत्तर प्रदेश के सेन्ट्रल शिया वक्फ बोर्ड ने इस विवाद के समाधान की पेशकश करते हुए न्यायालय से कहा था कि अयोध्या में विवादित स्थल से ‘‘उचित दूरी’’ पर मुस्लिम बाहुल्य इलाके में मस्जिद का निर्माण किया जा सकता है.

हालांकि, शिया वक्फ बोर्ड के इस हस्तक्षेप का अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विरोध किया. उसका दावा है कि उनके दोनों समुदायों के बीच पहले ही 1946 में इसे मस्जिद घोषित करके इसका न्यायिक फैसला हो चुका है जिसे छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया गया था. यह सुन्नी समुदाय की है. हाल ही में एक अन्य मानवाधिकार समूह ने इस मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध करते हुए शीर्ष अदालत में एक अर्जी दायर की और इस मुद्दे पर विचार का अनुरोध करते हुए कहा कि यह महज संपत्ति का विवाद नहीं है बल्कि इसके कई अन्य पहलू भी हैं जिनके देश के धर्म निरपेक्ष ताने बाने पर दूरगामी असर पड़ेंगे.

शीर्ष अदालत के निर्देश पर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने उन दस्तावेजों की अंग्रेजी अनुदित प्रति पेश कर दी हैं जिन्हें वह अपनी दलीलों का आधार बना सकती है. ये दस्तावेज आठ विभिन्न भाषाओं में हैं. भगवान राम लला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरण और सीएस वैद्यनाथन तथा अधिवक्ता सौरभ शमशेरी पेश होंगे और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश होंगे. अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाडे़ का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अनूप जार्ज चौधरी, राजीव धवन और सुशील जैन करेंगे.

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सर्वोच्च न्यायालय ने 11 अगस्त को उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि दस सप्ताह के भीतर उच्च न्यायालय में मालिकाना हक संबंधी विवाद में दर्ज साक्ष्यों का अनुवाद पूरा किया जाए. न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि वह इस मामले को दीवानी अपीलों से इतर कोई अन्य शक्ल लेने की अनुमति नहीं देगा और उच्च न्यायालय द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया ही अपनाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मामले में सबसे पहले सिविल सूट की अर्जियों पर सुनवाई होगी. इससे पहले करीब 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस मामले से जुड़े पक्षकारों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सारे पक्षों में जमकर गहमागहमी चली थी.

करीब सात वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सुनवाई कर रहा है. इससे पहले तत्कालीन सीजेआई खेहर ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी के जल्द सुनवाई के अनुरोध पर कहा था कि वे सोच रहे हैं कि जल्द सुनवाई के लिए बेंच का गठन कर दिया जाए. इससे पहले कोर्ट ने सलाह दी थी कि सभी पक्षों को आपसी सहमति से मसले का हल निकालने की कोशिश करनी चाहिए. कोर्ट ने कहा था कि ऐसी स्थिति में मध्यस्थता के लिए किसी जज की नियुक्ति की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संवेदनशील और आस्था से जुड़ा बताते हुए पक्षकारों से बातचीत के जरिए आपसी सहमति से मसले का हल निकालने को कहा था. कोर्ट का यह रुख इसलिए अहम है क्योंकि एक बड़ा वर्ग इसे बातचीत और सामंजस्य से ही सुलझाने की बात करता रहा है.

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने साल 2010 में विवादित स्थल के 2.77 एकड़ क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर हिस्से में विभाजित करने का आदेश दिया था. पांच दिसम्बर को सुनवाई से पहले इस मामले में कई नए मोड़ आ गए हैं. शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में सुलहनामा दायर कर मंदिर की जगह हिंदुओ को देने की बात कही है और मस्जिद लखनऊ में बनाने की. सुप्रीम कोर्ट इस सुलहनामे पर सुनवाई करेगा.

VIDEO : समझौते की कोशिश


शिया वक्फ बोर्ड ने रामजन्मभूमि विवाद के समझौते के लिए आवेदन सुप्रीम कोर्ट में दाखिल सुलहनामा में कहा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा गलत है. तोड़ी गई इमारत शिया मस्ज़िद थी. हम देश के अमन चैन को ज़्यादा अहम मानते हैं. अयोध्या में विवादों में रही पूरी ज़मीन हिंदुओं को सौंपना चाहते हैं. इसके बदले अयोध्या में किसी मस्ज़िद का निर्माण भी नहीं करना चाहते. इस फॉर्मूले पर महंत नृत्य गोपाल दास, महंत नरेंद्र गिरी रामविलास वेदांती, सुरेश दास, धर्म दास जैसे सभी हिन्दू पक्षकार सहमत हैं. समझौता पत्र की कॉपी भी कोर्ट में जमा की गई है.  इसमें इन सभी हिन्दू पक्षकारों के हस्ताक्षर हैं.

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