सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि मृत्युदंड पाए अपराधियों की दया याचिका पर अनिश्चितकाल की देरी नहीं की जा सकती और देरी किए जाने की स्थिति में उनकी सजा को कम किया जा सकता है।
इसके साथ ही, शीर्ष अदालत ने 15 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने का आदेश दिया। इनमें से चार दोषी वीरप्पन के सहयोगी हैं, जिन्हें 22 पुलिसवालों की लैंड माइन ब्लास्ट कर हत्या करने के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी।
इन चारों के अलावा इस फैसले का प्रभाव पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आरोप में फांसी की सजा पाए मुरुगन, अरुवि और संथन की दया याचिकाओं पर भी पड़ सकता है, जो लंबे समय से लंबित हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा कि मृत्युदंड का सामना करने वाला कैदी यदि मानसिक रूप से अस्वस्थ है, तो उसे फांसी नहीं दी जा सकती और उसकी सजा कम करके आजीवन कारावास में बदली जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार मृत्युदंड का सामना करने वाले अपराधी और अन्य कैदियों को एकांत कारावास में रखना असंवैधानिक है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलो में दोषी के मानसिक रोग के आधार पर उनकी सजा-ए-मौत उम्रकैद की सजा में बदल दी जानी चाहिए। आज के फैसले का कई मामलों में निहितार्थ हो सकता है, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में सजा-ए-मौत का इंतजार कर रहे तीन दोषियों की ओर से दायर दयायाचिका शामिल है। उन्होंने अपनी दया याचिका रद्द करने के राष्ट्रपति के कदम को चुनौती दी थी।
दया याचिकाओं के निबटारे और सजा-ए-मौत पर अमल करने के संबंध में मार्गनिर्देश तय करते हुए प्रधान न्यायाधीश पी सताशिवम की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने व्यवस्था दी कि सजा-ए-मौत दिए गए कैदियों को उनकी दयायाचिका रद्द होने की सूचना अवश्य ही दी जानी चाहिए। उन्हें फांसी देने से पहले अपने परिवार के सदस्यों से मुलाकात का एक मौका अवश्य देना चाहिए।
अदालत ने फांसी की सजा का इंतजार कर रहे बंदियों समेत किसी भी बंदी को कैदे-तन्हाई में रखने को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि कारागाहों में इसकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। खंडपीठ ने यह भी कहा कि दया याचिका रद्द होने के 14 दिनों के अंदर सजा-ए-मौत पर अमल कर लिया जाना चाहिए।
(इनपुट भाषा से भी)
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