सांसदों को पेंशन और भत्ते के मामले में सुुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई की.
नई दिल्ली:
सांसदों को पेंशन और भत्ता देने का मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सांसदों को पेंशन देना संसद की बुद्धिमता का मामला है और अदालत इस पर बैठे नहीं रह सकती.
कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में कानून निर्माताओं के रूप में सांसदों को कुछ अधिकार और विशेषाधिकार मिलते हैं और वे सुविधा प्राप्त करते हैं. संसद में साल की सेवा की संख्या के साथ पेंशन का गठजोड़ नहीं होना चाहिए. कल संसद 'पेंशन' शब्द को बदल सकती है और पुरानी सेवाओं के लिए मुआवजे का नाम दे सकती है. सार्वजनिक जीवन में वे अपने जीवनकाल को सांसद बनने के लिए समर्पित करते हैं. वे एक चुनाव में हार सकते हैं और अगले चुनाव में निर्वाचित हो सकते हैं. वे चुनाव हारने के बाद भी सार्वजनिक जीवन में बने रहना जारी रखते हैं. उन्हें लोगों से मिलने और उनके साथ संपर्क में आने के लिए देश भर में जाने की जरूरत है.
यह भी पढ़ें : पूर्व सांसदों को आजीवन पेंशन और अलाउंस दिए जाने पर SC ने केन्द्र से पूछा, स्वतंत्र मैकेनिज्म का क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप पूछ सकते हैं कि क्या सांसद स्वयं को पेंशन का निर्धारण कर सकते हैं या इसके लिए एक तंत्र होना चाहिए. यह औचित्य का सवाल है. लेकिन हमारे लिए यह तय करना नहीं है कि मामलों में आदर्श हालात क्या होना चाहिए. राजनीति में अपनी सारी जिंदगी को समर्पित करते हुए, पेंशन अपने जीवन को एक सम्मानजनक तरीके से आगे बढ़ाने के लिए एक अस्तित्व भत्ता हो सकती है.
हालांकि, पीठ ने अटॉर्नी जनरल को कल सूचित करने को कहा है कि क्या पेंशन और भत्तों को सांसदों को देने के लिए कोई तंत्र बनाया जा रहा है, क्योंकि पिछले 12 सालों से यह मुद्दा केंद्र सरकार के पास लंबित है.
इससे पहले एजी ने कहा सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने पहले ही 2002 में पेंशन के अनुदान को बरकरार रखा था. ताजा फैसला लेने की कोई आवश्यकता नहीं है. उन्होंने कहा कि अदालत ने यह मान लिया था कि सांसदों को पेंशन देने के लिए संसद पर कोई रोक नहीं है. एजी ने कहा कि कानून के तहत पेंशन शब्द के बारे में कोई विशिष्ट उल्लेख नहीं है, हालांकि सांसदों को देय वेतन और भत्ते को संबंधित कानून के तहत कवर किया गया था.
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न्यायाधीश ने एजी को कल सूचित करने को कहा कि क्या पेंशन के अनुदान से निपटने के लिए संसद के अलावा कोई तंत्र है सांसदों के लिए. सुनवाई बुधवार को जारी रहेगी.
सासंदों के वेतन और भत्ते को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. याचिका में सांसदों के वेतन और भत्ते को लेकर एक स्वतंत्र आयोग बनाने की मांग की गई है. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि 12 साल से जो स्वतंत्र मैकेनिज्म बना रहे हैं, उसका क्या हुआ? कोर्ट ने पांच मार्च तक केंद्र को अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था. वहीं केंद्र सरकार ने कहा कि स्वतंत्र मैकेनिज्म अभी विचार में है.
इससे पहले पूर्व सांसदों को आजीवन पेंशन और अलाउंस दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, लोकसभा और राज्यसभा के महासचिव को नोटिस जारी किया था. लोकप्रहरी नामक NGO ने याचिका दाखिल कर कहा है कि सांसद कैसे खुद ही वेतन और भत्ता तय करते हैं. इसके लिए कोई स्थाई आयोग होना चाहिए. वहीं पूर्व सासंदों और विधायकों को आजीवन पेंशन दी जा रही है जबकि नियमों में यह शामिल नहीं है.
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अगर एक दिन के लिए भी कोई सांसद बन जाता है तो वह न केवल आजीवन पेंशन का हकदार हो जाता है, उसकी पत्नी को भी पेंशन मिलती है. साथ ही वह जीवन भर एक साथी के साथ ट्रेन में फ्री यात्रा करने का हकदार हो जाता है जबकि राज्य के गर्वनर को भी आजीवन पेंशन नहीं दी जाती. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वर्तमान जजों को भी साथी के लिए मुफ्त यात्रा का लाभ नहीं दिया जाता. चाहे वह आधिकारिक यात्रा पर ही क्यों ना जा रहे हों. ऐसे में यह व्यवस्था आम लोगों के लिए बोझ है और यह व्यवस्था राजनीति को और भी लुभावना बना देती है. अगर असल में देखा जाए तो यह खर्च ऐसे लोगों पर किया जाता है जो जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते, इसलिए इस व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में कानून निर्माताओं के रूप में सांसदों को कुछ अधिकार और विशेषाधिकार मिलते हैं और वे सुविधा प्राप्त करते हैं. संसद में साल की सेवा की संख्या के साथ पेंशन का गठजोड़ नहीं होना चाहिए. कल संसद 'पेंशन' शब्द को बदल सकती है और पुरानी सेवाओं के लिए मुआवजे का नाम दे सकती है. सार्वजनिक जीवन में वे अपने जीवनकाल को सांसद बनने के लिए समर्पित करते हैं. वे एक चुनाव में हार सकते हैं और अगले चुनाव में निर्वाचित हो सकते हैं. वे चुनाव हारने के बाद भी सार्वजनिक जीवन में बने रहना जारी रखते हैं. उन्हें लोगों से मिलने और उनके साथ संपर्क में आने के लिए देश भर में जाने की जरूरत है.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप पूछ सकते हैं कि क्या सांसद स्वयं को पेंशन का निर्धारण कर सकते हैं या इसके लिए एक तंत्र होना चाहिए. यह औचित्य का सवाल है. लेकिन हमारे लिए यह तय करना नहीं है कि मामलों में आदर्श हालात क्या होना चाहिए. राजनीति में अपनी सारी जिंदगी को समर्पित करते हुए, पेंशन अपने जीवन को एक सम्मानजनक तरीके से आगे बढ़ाने के लिए एक अस्तित्व भत्ता हो सकती है.
हालांकि, पीठ ने अटॉर्नी जनरल को कल सूचित करने को कहा है कि क्या पेंशन और भत्तों को सांसदों को देने के लिए कोई तंत्र बनाया जा रहा है, क्योंकि पिछले 12 सालों से यह मुद्दा केंद्र सरकार के पास लंबित है.
इससे पहले एजी ने कहा सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने पहले ही 2002 में पेंशन के अनुदान को बरकरार रखा था. ताजा फैसला लेने की कोई आवश्यकता नहीं है. उन्होंने कहा कि अदालत ने यह मान लिया था कि सांसदों को पेंशन देने के लिए संसद पर कोई रोक नहीं है. एजी ने कहा कि कानून के तहत पेंशन शब्द के बारे में कोई विशिष्ट उल्लेख नहीं है, हालांकि सांसदों को देय वेतन और भत्ते को संबंधित कानून के तहत कवर किया गया था.
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न्यायाधीश ने एजी को कल सूचित करने को कहा कि क्या पेंशन के अनुदान से निपटने के लिए संसद के अलावा कोई तंत्र है सांसदों के लिए. सुनवाई बुधवार को जारी रहेगी.
सासंदों के वेतन और भत्ते को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. याचिका में सांसदों के वेतन और भत्ते को लेकर एक स्वतंत्र आयोग बनाने की मांग की गई है. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि 12 साल से जो स्वतंत्र मैकेनिज्म बना रहे हैं, उसका क्या हुआ? कोर्ट ने पांच मार्च तक केंद्र को अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था. वहीं केंद्र सरकार ने कहा कि स्वतंत्र मैकेनिज्म अभी विचार में है.
इससे पहले पूर्व सांसदों को आजीवन पेंशन और अलाउंस दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, लोकसभा और राज्यसभा के महासचिव को नोटिस जारी किया था. लोकप्रहरी नामक NGO ने याचिका दाखिल कर कहा है कि सांसद कैसे खुद ही वेतन और भत्ता तय करते हैं. इसके लिए कोई स्थाई आयोग होना चाहिए. वहीं पूर्व सासंदों और विधायकों को आजीवन पेंशन दी जा रही है जबकि नियमों में यह शामिल नहीं है.
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अगर एक दिन के लिए भी कोई सांसद बन जाता है तो वह न केवल आजीवन पेंशन का हकदार हो जाता है, उसकी पत्नी को भी पेंशन मिलती है. साथ ही वह जीवन भर एक साथी के साथ ट्रेन में फ्री यात्रा करने का हकदार हो जाता है जबकि राज्य के गर्वनर को भी आजीवन पेंशन नहीं दी जाती. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वर्तमान जजों को भी साथी के लिए मुफ्त यात्रा का लाभ नहीं दिया जाता. चाहे वह आधिकारिक यात्रा पर ही क्यों ना जा रहे हों. ऐसे में यह व्यवस्था आम लोगों के लिए बोझ है और यह व्यवस्था राजनीति को और भी लुभावना बना देती है. अगर असल में देखा जाए तो यह खर्च ऐसे लोगों पर किया जाता है जो जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते, इसलिए इस व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए.
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